जलवायु अनुकूलन मे महत्वपूर्ण हो सकते हैं मोटे अनाज

  • दिनेश सी. शर्मा (Twitter handle :@dineshcsharma)

नई दिल्ली, 2 जुलाई (इंडिया साइंस वायर): बढ़ते तापमान, मानसून के बदलते चक्र और चरम मौसमी घटनाओं के कारण खाद्यान्न सुरक्षा के लिए खतरा बढ़ रहा है। एक नए अध्ययन मेंपता चला है कि मोटे अनाज की तुलना मेंचावल जैसी खाद्यान्न फसलें जलवायु परिवर्तनके प्रति अधिक संवेदनशीलहैं। इसीलिए, जलवायु परिवर्तन के चलते खाद्य आपूर्ति की समस्या से निपटने में मोटे अनाज अच्छा विकल्पहो सकते हैं।

चावल की तुलना मेंरागी, मक्का, बाजरा और ज्वारकी फसलें जलवायु परिवर्तन के प्रति कम संवेदनशील होतीहैं। चरम जलवायु परिस्थितियों के कारण मोटे अनाजों के उत्पादन में मामूली कमी हो सकती है। मोटे अनाज की फसलें बारिश पर निर्भर होती हैं और खरीफ के मौसम में इनकी खेती की जाती है।

इस अध्ययन में वर्ष 1966 से 2011 के दौरान पूरे देश में फसलों की पैदावार पर पड़ने वाले जलवायुपरिवर्तनों के प्रभाव का आकलन किया गया है। यह देखा गया किइस दौरान कुल मानसूनी बरसात में गिरावट हुई है। इसके साथ ही दैनिक वर्षा के स्तर में भी बहुत अधिक बदलाव आया है और सूखेकी आवृत्ति बढ़ी है।

सिंचित और असिंचित क्षेत्रों में मोटे अनाजों की तुलना में चावल की पैदावारबारिश के कम-ज्यादा होने से अधिक प्रभावित होती है। इन स्थानों पर चावल की जगह मोटे अनाजों को अधिक उगाने सेबदलती जलवायु परिस्थितियों में भी स्थायीखाद्य आपूर्तिबनाए रखने में मदद मिल सकती है। खाद्य आपूर्ति बनाए रखने के लिए अनाजों के सुरक्षित भंडारण,सूखा-सहिष्णु किस्मोंके विकास और सिंचाई को बढ़ावा देने जैसी रणनीतियां भी जलवायुपरिवर्तन की चुनौती से निपटने मेंकारगर हो सकती हैं।

अध्ययन के लिए जिला स्तरीय फसल उत्पादन और जलवायु संबंधी आंकड़े इक्रीसैटऔर मौसम विभाग से प्राप्त किए गए हैं। इस तरहप्रत्येक जिले की पांच फसलों की जलवायु के प्रति संवेदनशीलता का मूल्यांकन किया गया है।

वर्तमान में कुल वार्षिक अनाज उत्पादन में चावल का हिस्सा 44 प्रतिशत है और खरीफ के मौसम में कुल खाद्यान्न उत्पादन में 73 प्रतिशत चावल शामिल रहता है। खरीफ के दौरान शेष 27 प्रतिशत अनाज उत्पादन में मक्का (15%), बाजरा (8%), ज्वार (2.5%) और रागी (1.5%) शामिलहैं। यह शोध जर्नल एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुआ है।

कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रमुख अध्ययनकर्ता काइल फ्रैंकेल डेविस ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “बाजरा, ज्वार और मक्काजैसे मोटे अनाज सूखेजैसी चरम जलवायु परिस्थितियों के साथ अनुकूलन स्थापित कर सकते हैं। इसी कारण अन्य अनाजों की तुलना में उनकी पैदावार में गिरावट बहुत कम दर्ज की गई है। जबकि, चावल जैसी प्रमुख खाद्यान्न फसलपरजलवायु परिवर्तन का गहरा असर पड़ने से पैदावार में भारी गिरावट देखी गई है। इससेभारत मेंचावल पर निर्भरखाद्य आपूर्ति प्रभावित होसकती है।”

आईआईटी, मुंबई में पृथ्वी प्रणाली विज्ञान के प्रोफेसर रघु मुर्तुगुडे, जो इस अध्ययन में शामिल नहीं हैं, का मानना है कि “हमारे यहां लोगों की अनाज को लेकर पसंद बहुत मायने रखती है। इसी कारण कृषि का सामाजिक-आर्थिक कारकों और बाजार के साथ गहरा संबंध है। केवल चावल उगाने वाले समृद्ध किसानों की तुलना मेंयदि गरीब और निर्धन किसान मोटे अनाजों को वैकल्पिक फसलों के तौर परचुनते हैंतो राष्ट्रीय स्तर पर इन अनाजों की पसंद औरउपज स्थायित्व कैसे बढ़ेगा? इसीलिए, वर्षा की बदलती परिस्थितियों के प्रति चावल उत्पादन की संवेदनशीलता से अवगत कराते हुएकिसानों को चावल के साथ-साथ मोटे अनाज की मिश्रित फसलों के लिए प्रोत्साहित करना बेहतर विकल्प हो सकता है।”

अध्ययनकर्ताओं में शामिल इंडियन बिजनेस स्कूल, हैदराबाद के अश्विनी छत्रे ने सुझाव दियाहै कि “खाद्य उत्पादन को जलवायु परिवर्तन से पूरी तरह सुरक्षित रखना मुश्किल है। किसानों को जलवायु के अनुकूल अनाज उत्पादनकी ओर स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित करना इस दिशा में एक आसान पहल हो सकती है। जिस तरह चावल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए सार्वजनिक नीति और सार्वजनिक खरीद पर अमल किया गया, उसी तरह हम इसका उपयोग अनाज उत्पादन में विविधता लाने के लिए भी कर सकते हैं।” (इंडिया साइंस वायर)

भाषांतरण- शुभ्रता मिश्रा

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