ऊर्जा को विकासकी गाड़ी का ईंधन कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। लेकिन, उत्तरोत्तर बढ़ती ऊर्जा-आवश्यकताओं के मध्य इसके अंधाधुंध इस्तेमाल ने संकट भी खड़ा कर दिया है। आज दुनिया के सामने न्यूनतम पर्यावरणीय क्षरण के साथ व्यापक और समावेशी विकास को साधने की चुनौती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने के लिए दुनिया ऊर्जा के उन्हींपारंपरिक संसाधनों पर प्रमुखता सेनिर्भर रही है, जिनके उपयोग से कठिन पर्यावरणीय संकट खड़े हो गए हैं। आज पूरी दुनिया इस संकट से उबरने की राह ढूंढ़ रही है। नए विकल्प तलाशे जा रहे हैं। इसी कड़ी में हाइड़्रोजन को ऊर्जा के एक कारगर वैकल्पिक स्रोत के रूप में देखा जा रहा है। यह न केवल ऊर्जा की असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक है, बल्कि साथ ही साथ इसके उपयोग से पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं पहुँचता।
भारत जैसे द्रुत गति से विकसित होते देशों में हाइड्रोजन-ऊर्जा के उपयोग के दोहरे लाभ हैं। एक यहकि इससे देश की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने का एक स्वच्छ एवं अक्षय स्रोत मिलेगा और दूसरा जीवश्म ईंधनों के आयात पर खर्च होने वाली बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत भी हो सकेगी।
विगत 26 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अक्षय ऊर्जा से जुड़े कार्यक्रम वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा निवेश बैठक और प्रदर्शनी(री-इन्वेस्ट-2020) का वर्चुअल उद्घघाटन किया। यह आयोजन अक्षय ऊर्जा के स्रोतों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है। वास्तव में, पिछले कुछ समय से इन स्रोतों को लेकर जो भी पहल हुई है, उसमें भारत की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। स्वच्छ ऊर्जा के इस भारतीय संकल्प की सिद्धि में हाइड्रोजन-ऊर्जा के एक महत्पवूर्ण भूमिका निभाने की भरपूर संभावनाएं हैं।
आज दुनिया के अनेक देशों में हाइड्रोजन ऊर्जा के क्षेत्र में संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। हाइड्रोजन फ्यूल सेल तकनीक रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है। इसमें हाइड्रोजन गैस और ऑक्सीजन का उपयोग होता है। हाइड्रोजन के दहन से कोई प्रदूषण भी नहीं होता। दुनिया की दिग्गज कंपनियां भी हाइड्रोजन फ्यूल सेल से चलने वाली कारें बना रही हैं। इस दिशा में व्यापक स्तर पर निवेश भी किया जा रहा है। हाइड्रोजन ऊर्जा से चलने वाली कारें आज इलेक्ट्रिक कारों से प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। जहां इलेक्ट्रिक कारों को पूरी तरह चार्ज करने में 10 से 12 घंटे लगते हैं, वहीं हाइड्रोजन ऊर्जा से चलने वाली कारों को बेहद कम अवधि में चार्ज किया जा सकता है। फुल चार्च होने पर हाइड्रोजन कारें एक बार में 400 से 600 किलोमीटर तक चल सकती हैं।
बस और कारों के अलावा जलयान और वायुयान चलाने में भी हाइड्रोजन ऊर्जा अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो रही है। भारत के नागर विमानन मंत्रालय ने आम लोगों के बीच उड़ानों को लोकप्रिय बनाने के लिए जो महत्वाकांक्षी ‘उड़ान’ योजना बनायी है, उसे मूर्त रूप देने में हाइड्रोजन ऊर्जा महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि हाइड्रोजन ऊर्जा बेहद महंगे एविएशन टरबाइन फ्यूल यानी एटीएफ की जगह लेने में सक्षम हो सकती है। यहाँ यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण होगा कि विमानन कंपनियों की लागत में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी एटीएफ की ही होती है। ऐसे में, यदि एटीएफ के विकल्प के रूप में किफायती हाइड्रोजन ऊर्जा लेती है, तो विमानन सेवाओं की लागत में भारी कमी आ सकती है। यह न केवल विमानन सेवाओं को एक नया आयाम देगा, बल्कि इससे उत्पादकता में भी कई गुना वृद्धि संभव हो सकती है।
प्रति यूनिट मास की दृष्टि से हाइड्रोजन में ऊर्जा की मात्रा काफी अधिक होती है। गैसोलीन यानी पेट्रोल की तुलना में हाइड्रोजन में संचित ऊर्जा की मात्रा तीन गुना तक अधिक होती है। यही कारण है कि हाइड्रोजन ऊर्जा में विद्यमान संभावनाओं को भुनाने के लिए सरल एवं सुगम तकनीकों को विकसित करने की दिशा में तेजी से काम हो रहा है। वर्तमान में, ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए हाइड्रोजन का उपयोग ईंधन सेल रूप पहले से ही किया जा रहा है। व्यापक ऊर्जा खपत वाले परिवहन क्षेत्र के अलावा रसायन, लौह एवं इस्पात जैसे बड़ी ऊर्जा खपत वाले क्षेत्रों को भी इससे बड़ी राहत मिल सकती है, क्योंकि इन उद्योगों पर कार्बन उत्सर्जन कम करने का भारी दबाव है।
उपयोगिता और सुगमता की दृष्टि से भी अक्षय ऊर्जा, परंपरागत-ऊर्जा से बेहतर है। इससे प्राप्त बिजली को कई महीनों तक संचित करके रखा जा सकता है। इस ऊर्जा का भंडारण बहुत महंगा नहीं है। यानी अपनी सुविधा के अनुरूप ऊर्जा उपभोग में भी यह बहुत अनुकूल है।
एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2050 तक हाइड्रोजन ऊर्जा का बाजार 2.5 खरब डॉलर का होगा। इसे देखते हुए भारत में हाइड्रोजन ऊर्जा के क्षेत्र में प्रयासों को हाल के दौर में काफी गति मिली है। भारत 19 सदस्यों वाले इंटरनेशनल पार्टनरशिप ऑन हाइड्रोजन इकोनॉमी (आइपीएचई) के संस्थापक सदस्यों में शामिल है। भारत का लक्ष्य है कि वर्ष 2026-27 तक देश में उपयोग होने वाली कुल ऊर्जा में 43 प्रतिशत हिस्सेदारी अक्षय ऊर्जा की हो। इस लक्ष्य की पूर्ति में हाइड्रोजन ऊर्जा अहम भूमिका निभा सकती है। इसके साथ ही, इससे हवा की गुणवत्ता में सुधार और ऊर्जा सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सकेगी। इसके अतिरिक्त पावर सिस्टम में लचीलापन भी बढ़ेगा। हालांकि, हाइड्रोजन-ऊर्जा की व्यापक संभावनाओं की राह में नई सामग्री के विकास, इलेक्ट्रोलाइट्स, भंडारण, सुरक्षा और मानकों के निर्धारण जैसी कई चुनौतियां बनी हुई हैं। यदि इन चुनौतियों का समय रहते समाधान ढूंढ लिया गया तो कई समस्याएं सुलझ जाएंगी और एक नई ऊर्जा क्रांति का सूत्रपात हो सकता है, जो सतत, सुरक्षित एवं स्वच्छ भी होगी। (India Science Wire)
ISW/RM/11/12/2020