भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया चावल के दाने से छोटा राडार

उमाशंकर मिश्र (Twitter handle :@usm_1984)

नई दिल्ली, 28 जनवरी (इंडिया साइंस वायर): दीवार के आर-पार की गतिविधियों की जानकारी मिल जाए तो घटनास्थल पर सबसे पहले पहुंचने वाले पुलिसकर्मियों, दमकलकर्मियों और सुरक्षा बलों को आपात स्थितियों से निपटने में मदद मिल सकती है। भारतीय शोधकर्ताओं नेअब चावल के दाने से भी छोटी चिप पर एक ऐसा राडार विकसित किया है, जो इस तरह की परिस्थितियों से निपटने में मददगार हो सकता है।

चावल के एक दाने की तुलना में टीडब्ल्यूआर रडार-ऑन-चिप का सूक्ष्मदर्शी से लिया गया चित्र(फोटो : आईआईएससी)

भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलूरू के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह थ्रू-द-वॉल राडार (टीडब्ल्यूआर) है, जो एक तरह की इमेजिंग तकनीक है। इस तरह के राडार रक्षा क्षेत्र से लेकर कृषि, स्वास्थ्य और परिवहन समेत विभिन्न क्षेत्रों में उपयोगी हो सकते हैं।

इस राडार को विकसित करने वाले शोध दल का नेतृत्व कर रहे भारतीय विज्ञान संस्थान के इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर गौरब बैनर्जी ने बताया कि “दुनिया के कुछ मुट्ठी भर देशों के पास ही आज किसी राडार के पूरे इलेक्ट्रॉनिक्स को एक चिप पर स्थापित करने की क्षमता है।”

संपूरक धातु ऑक्साइड अर्धचालक (सीमॉस) तकनीक के उपयोग से विकसित इस राडार में एक ट्रांसमिटर, एक उन्नत फ्रीक्वेंसी सिंथेसाइजर और तीन रिसीवर लगाये गए हैं, जो जटिल राडार संकेत उत्पन्न कर सकते हैं। इन सभी इलेक्ट्रॉनिक घटकों को एक छोटी-सी चिप पर लगाया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि छोटा आकार होने के कारण इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर आसानी से किया जा सकता है। राडार किसी चीज से संकेतों के टकराकर वापस लौटने के सिद्धांत पर काम करते हैं और इनका उपयोग करते समय संकेतों के वापस लौटने में लगने वाले समय का आकलन किया जाता है। इस तरह के संकेतों के आधार पर वस्तु या इन्सान का एक खाका तैयार किया जा सकता है और यह निर्धारित करने में भी मदद मिल सकती है कि वह वस्तु किस गति से चलायमान है। टीडबल्यूआर तकनीक आम राडार से एक कदम आगे की चीज है, जो रेडियो तरंगों के जरिये दीवारों को भेदने के सिद्धांत पर काम करती है, जिसे प्रकाश की किरणें भेद नहीं पाती हैं।

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