नई दिल्ली, 10 दिसंबर (इंडिया साइंस वायर): पौधों के विकास के लिए नाइट्रोजन एक जरूरी पोषक तत्व है। रासायनिक उर्वरकों के अलावा शैवाल तथा कुछ जीवाणु प्रजातियां वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके मिट्टी तथा पौधों को पोषण देती हैं और फसल उत्पादकता में वृद्धि करती हैं। इस प्रक्रिया को जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण और इन सूक्ष्म जीवाणुओं को जैविक उर्वरक कहते हैं। एक विशेष प्रकार की काई – नील-हरित शैवाल, इस तरह के उर्वरकों में शामिल है, जिसका उपयोग धान की पैदावार बढ़ाने के लिए विशेष रूप से होता है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), बॉम्बे के शोधकर्ताओं के एक ताजा अध्ययन में नील हरित शैवाल में प्रोटीन उत्पादन बढ़ाने के लिए उसके डीएनए में बदलाव किया गया है।
नील हरित शैवाल सूर्य के प्रकाश का उपयोग कर अपना भोजन बनाते हैं। जैव प्रौद्योगिकी में वांछित रसायन एवं प्रोटीन्स के उत्पादन में नील हरित शैवाल को उसके प्रकाश संश्लेषण करने के इन्हीं गुणों के कारण एक बेहतर उम्मीदवार माना जाता है। इस प्रक्रिया में वैज्ञानिक प्रमोटर्स का उपयोग करते हैं, जो उपयुक्त जीवों के डीएनए का हिस्सा होते हैं, इनमें नील हरित शैवाल शामिल हैं। ये प्रमोटर्स आवश्यक प्रोटीन के उत्पादन को निर्धारित करते हैं। आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले इन प्रमोटर्स को सक्रिय करने के लिए महंगे रसायनों की जरूरत होती है। नील हरित शैवाल में प्रोटीन के बड़े पैमाने पर व्यावसायिक उत्पादन के लिए यह व्यवहारिक नहीं है। इसके अलावा, ये रसायन, जिन्हें इन्ड्यूसर्स (Inducers) कहा जाता है, प्रकाश की उपस्थिति में निष्क्रिय हो जाते हैं।
आईआईटी, बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने प्रमोटर्स का एक समूह विकसित किया है, जो प्रकाश के प्रति सहिष्णु हैं और नील हरित शैवाल के विभिन्न उपभेदों के साथ अच्छी तरह से काम करते हैं। भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के अनुदान पर आधारित यह अध्ययन, शोध पत्रिका एसीएस सिंथेटिक बायोलॉजी में प्रकाशित किया गया है।
इस अध्ययन में नये प्रमोटर्स विकसित करने के बजाय शोधकर्ताओं ने नील हरित शैवाल में पहले से मौजूद दो प्रमोटर्स – पीआरबीसीएल (PrbcL) और पीसीपीसीबी (PcpcB), जिन्हें प्रोटीन के उच्च उत्पादन के लिए जाना जाता है, को विकसित किया है। शोधकर्ताओं ने इन प्रमोटर्स में रूपांतरण (mutations) किए हैं, और इस तरह PrbcL के 36 म्यूटेंट प्रमोटर्स और PcpcB के 12 म्यूटेंट की एक लाइब्रेरी बनायी गई है। इन प्रमोटर्स का संपर्क तेजी से बढ़ने वाले नील हरित शैवाल साइनेकोकोकस एलोन्गैटस (Synechococcus elongatus) से कराया गया और एन्हांस्ड यलो फ्लूरेसेंट (eYFP) नामक प्रोटीन उत्पादन में इसकी भूमिका की जाँच की गई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि वैज्ञानिक परीक्षणों में eYFP का उपयोग अधिक सरल होता है।
इस अध्ययन का नेतृत्व कर रहे आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ता प्रोफेसर प्रमोद वांगिकर ने बताया कि “इन प्रमोटर्स की वांछित गतिविधि एवं अन्य प्रभावी गुणों को प्राप्त करने में बड़े पैमाने पर म्यूटेंट प्रमोटर्स को अलग करने की हमारी क्षमता महत्वपूर्ण रही है। इस चुनौती से निपटने के लिए एक विशिष्ट पद्धति विकसित की गई है, जो म्यूटेंट्स को अलग करके उनकी निगरानी को आसान बनाती है।”
प्रमोटर्स को जब एक अलग जीवाणु, एस्चेरिचिया कोलाई में शामिल किया गया, तो ईवाईएफपी (eYFP) के उत्पादन में भी वृद्धि देखी गई है। यह दर्शाता है कि प्रमोटरों को अन्य जीवों में भी उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, कुछ उत्परिवर्तित प्रमोटर स्विच की तरह काम करते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि इन प्रमोटर्स ने केवल किसी एक संकेत पर प्रोटीन का उत्पादन किया और अन्यथा बंद रहे। प्रोफेसर वांगिकर कहते हैं- यह व्यवहार उन प्रोटीन का उत्पादन को रोकने के लिए उपयोग किया जा सकता है, जो कोशिकाओं के लिए हानिकारक होते हैं।
अध्ययन में शामिल एक अन्य शोधकर्ता डॉ अनिशा सेनगुप्ता कहती हैं कि “जिन प्रमोटर्स को हमने विकसित किया है, उन्हें किसी भी रासायनिक दवा की आवश्यकता नहीं है। यह उन प्रमोटर्स से अलग ह़ैं, जो आमतौर पर उत्पादन के लिए नील हरित शैवाल में उपयोग किए जाते हैं, हमने उन प्रमोटरों का एक समूह विकसित किया है, जिनकी गतिविधि को पर्यावरणीय मानकों जैसे- कार्बन डाईऑक्साइड और प्रकाश का उपयोग करके संयोजित किया जा सकता है। इसलिए, इन प्रवर्तकों का उपयोग करने पर कोई अतिरिक्त लागत नहीं आती है।”
शोधकर्ताओं का कहना है कि शुरुआती परीक्षण सिर्फ एक प्रोटीन eYFP पर किया गया है। अब इन प्रमोटर्स का परीक्षण अन्य प्रोटीन्स के उत्पादन में भी किया जा रहा है। (इंडिया साइंस वायर)