खनन के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए सलाह, परामर्श और योजना कार्रवाई हेतु कोयला मंत्रालय में एक पूर्ण विकसित सतत विकास प्रकोष्ठ (Sustainable Development Cell: SDC) की स्थापना की गई है।
- आगे का रास्ता सुझाने और इसके कार्यान्वयन और निगरानी के अलावा यह सतत विकास प्रकोष्ठ (एसडीसी) हमारे देश के कोयला और लिग्नाइट क्षेत्र में पर्यावरणीय शमन के लिए भविष्य की नीतिगत रूपरेखा भी तैयार कर रहा है।
- सिंगरेनी कोल कंपनी लिमिटेड (एससीसीएल) और एनएलसी इंडिया लिमिटेड (एनएलसीआईएल) के साथ कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) तथा उसकी सहायक कंपनियों द्वारा व्यापक काम पहले ही शुरू हो चुका है, जिसका प्रभाव अब इनमें से कुछ खनन कंपनियों में देखा जा सकता है।
- अब से वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को एक अरब टन तक कम करने की देश की प्रतिबद्धता के अनुरूप, सभी कोयला कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान के माध्यम से खनन की गई भूमि पर जैविक सुधार पहले ही बड़े पैमाने पर किये जा चुके हैं।
- अगले पांच वर्षों में वृक्षारोपण के लिए 12000 हेक्टेयर से अधिक भूमि को कवर करने का लक्ष्य है जो प्रति वर्ष एक लाख टन से अधिक कार्बन सिंक क्षमता रखने में मदद करेगा। ऐसे प्रयासों की निगरानी रिमोट सेंसिंग)के जरिए की जा रही है।
- वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाने की हमारी प्रतिबद्धता में योगदान करने के लिए कोयला और लिग्नाइट कंपनियों ने 15,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश के साथ अतिरिक्त 5560 मेगावाट नवीकरणीय क्षमता स्थापित करने की योजना बनाई है।
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