अनानास आधारित कृषि वानिकी, जो दक्षिणी असम में ‘हमार’ जनजाति द्वारा पारंपरिक रूप से प्रचलित है, पूर्वोत्तर भारत में झूम खेती का एक स्थायी विकल्प हो सकती है।
एक नए अध्ययन के अनुसार, यह पारंपरिक प्रथा जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान की दोहरी चुनौतियों समाधान कर सकती है।
झूम खेती को स्विडन एग्रीकल्चर भी कहा जाता है और यह इस क्षेत्र की प्रमुख कृषि पद्धति है। यह मुख्य तौर पर परती चक्र में कमी के कारण अस्थिर हो गई है जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी की उर्वरता में कमी आने के अलावा महत्वपूर्ण मिट्टी का कटाव और कृषि उत्पादकता में कमी जैसी समस्याएं पैदा हुई हैं।
इसलिए, पूर्वोत्तर भारत और कई दक्षिण एशियाई देश पिछले कुछ दशकों के दौरान पारंपरिक झूम प्रथाओं से कृषि वानिकी एवं उच्च मूल्य वाली फसल प्रणालियों में स्थानांतरित हुए हैं।
इन फसल प्रणालियों को कहीं अधिक टिकाऊ और लाभदायक विकल्प माना जाता है। शोधकर्ता ऐसे कृषि वानिकी विकल्पों की तलाश कर रहे हैं जो जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान की दोहरी चुनौतियों का समाधान करने के साथ-साथ उच्च भंडारण क्षमता और वृक्षों की विविधता बरकरार रख सकेंगे।
पाइनएप्पल एग्रोफोरेस्ट्री सिस्टम (पीएएफएस) भारतीय पूर्वी हिमालय और एशिया के अन्य हिस्सों में प्रमुख भूमि उपयोग है और इसके तहत मुख्य तौर पर बहुउद्देश्यीय पेड़ों के साथ अनानास उगाए जाते हैं। दक्षिणी असम में ‘हमार’ जनजाति सदियों से अनानास की खेती करती रही है।
वर्तमान में वे घरेलू खपत और आर्थिक लाभ दोनों के लिए स्वदेशी पीएएफएस को अपना रहे हैं। उन्होंने एक अनोखी कृषि वानिकी प्रणाली विकसित करने के लिए अपने पारंपरिक ज्ञान का इस्तेमाल किया है।