- सर्वोच्च न्यायालय के चार न्यायाधीशों (न्यायमूर्ति जे- चेलामेश्वर, रंजन गोगोई, मदन बी- लोकुर व कुरियन जोसेफ) ने 12 जनवरी, 2018 को प्रेस कॉन्फ्रेंस के द्वारा जिन विषयों को मीडिया व राष्ट्र के समक्ष रखा था, उनमें सर्वोच्च न्यायालय की ‘रोस्टर प्रणाली’ भी शामिल थी। चारों न्यायाधीशों ने मुख्य न्यायाधीश (न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा) पर आरोप लगाये थे कि कुछ विशेष व गंभीर मामलों को पसंदीदा पीठ को सौपे जा रहे हैं और वरिष्ठतम न्यायाधीशों की अनदेखी की जा रही है। इसी के पश्चात 1 फरवरी, 2018 को सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर ‘नई रोस्टर प्रणाली’ जारी की गई है जो 5 फरवरी, 2018 से लागू हो रही है।
- नई रोस्टर प्रणाली में नये जनहित मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में होगी। इसी तरीके से 12 वरिष्ठ न्यायाधीशों की 12 खंडपीठ को विभिन्न्न विषय सौपे गये हैं।
- न्यायालय की विभिन्न पीठों के बीच मामलों की सुनवाई का बंटवारा ही ‘रोस्टर प्रणाली’ है जिसे अमूमन मुख्य न्यायाधीश द्वारा निर्धारित की जाती है।
- वैसे सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को ही ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ कहा जाता है और इस आधार पर वे ही इस बात का निर्णय करते हैं कि कौन सा मुकदमा किस पीठ में सुना जाएगा। इस निर्णय को किसी न्यायिक आदेश के द्वारा पलटा नहीं जा सकता। मुख्य न्यायाधीश के ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ संबंधी अधिकार को नवंबर 2017 में सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने भी न्यायोचित ठहराया था। तत्समय एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पी-एस-नरसिम्हा ने तर्क दिया था कि यदि सर्वोच्च न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश मुख्य न्यायाधीश की तरह व्यवहार करना आरंभ कर दे तो न्यायिक संख्या चरमरा जाएगी। गौरतलब है कि न्यायमूर्ति जे- चेमालेश्वर ने एक मामले की सुनवाई एक विशेष खंडपीठ को आवंटित किया था। बाद में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने आदेश दिया कि मास्टर ऑफ रोस्टर होने के नाते पीठ निर्धारित करने का अधिकार उनके पास है। विवाद यहीं से आरंभ हुआ।
- सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश सहित कुल 31 न्यायाधीश हैं और इन न्यायाधीशों की 12 खंडपीठ हैं। प्रत्येक खंडपीठ की क्रम संख्या न्यायाधीशों की वरिष्ठता के आधार पर तय होती है। मुख्य न्यायाधीश वाली पीठ कोर्ट संख्या-1 कहलाती है।