मॉब लिंचिंग पर सर्वोच्च न्यायालय का दिशा-निर्देश

 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने 17 जुलाई, 2018 को भारत में भीड़ के हिंसक हो जाने तथा ऐसी भीड़ द्वारा हत्या को गंभीरता से लेते हुए इसके खिलाफ कुछ दिशा-निर्देश जारी किए हैं ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा नहीं हो।
  • मुख्य न्यायाधीश श्री दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने भीड़तंत्र की खौफनाक कार्रवाई को एक नयी आदत बनने के प्रति आगाह किया और संसद् को इस संबंध में एक नया कानून बनाने पर विचार करने को कहा।
  • इस क्रम में सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किएः
    • अनुत्तरदायी मैसेज भेजने वाले लोगों को पुलिस हिरासत में लें
    • प्रत्येक पुलिस अधिकारी को ऐसी भीड़ को छितराना होगा जो हिंसक हो सकती है।
    • मॉब लिंचिंग यानी भीड़ द्वारा मारने के प्रत्येक मामले का मुकदमा फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा होना चाहिए और प्राथमिक रूप से इसे छह माह के भीतर पूरा कर लिया जाना चाहिए।
    • उदाहरण पेश करने के लिए ट्रायल कोर्ट को ऐसे अपराधियों को अधिकतम सजा देनी चाहिए।
    • केंद्र एवं राज्य सरकारों को दंड के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए रेडियो एवं टीवी प्रसारणों की सहायता ले।
    • राज्य सरकारों को लिंचिंग/भीड़ हिंसा उत्पीड़क क्षतिपूर्ति स्कीम आरंभ करनी चाहिए।
    • विस्फोटक संदेशों के प्रसारित होने से रोकने के लिए सोशल मीडिया पर निगरानी रखी जाए।
    • भीड़ हिंसा को रोकने के लिए राज्य सरकारें प्रत्येक जिला में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की तैनाती करेगी।
    • किसी घटना विशेष को रोकने में अक्षम सिद्ध होने पर पुलिस या प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
    • प्रशासन उन जिलों, सब-डिविजन या गांवों की पहचान करेगा जहां हिंसक भीड़ द्वारा हत्या की घटनाएं बार-बार घटित होती हैं।
    • उत्पीड़क के परिवार को आगे और परेशानी से बचाने के लिए उन्हें सुरक्षित किया जाएगा।
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