- केंद्रीय मंत्रिमंडल 7 फरवरी, 2018 को ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों (एमएसएमई) के वर्गीकरण के आधार में बदलाव को मंजूरी दी।
- नये बदलाव के तहत इन उद्यमों की परिभाषा ‘संयंत्र एवं मशीनरी/उपकरण में निवेश’ के बार्षिक ‘वार्षिक कारोबार’ यानी एन्युल टर्नओवर से तय होगी।
- सरकार के अनुसार इस कदम से व्यापार करने में आसानी होगी और वर्गीकृत वृद्धि के नियम बनेंगे और जीएसटी के दायरे में नयी कर प्रणाली वजूद में आएगी।
- नये बदलाव से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रम विकास (एमएसएमईडी) अधिनियम, 2006 की धारा 7 में संशोधन हो जाएगा और वस्तु तथा सेवाओं के संबंध में वार्षिक कारोबार को ध्यान में रखते हुए इकाईयों को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जाएगा:
- वैसी इकाइयों को सूक्ष्म इकाई माना जाएगा जहां 5 करोड़ रुपये से अधिक का वार्षिक कारोबार नहीं होगा,
- वैसी इकाइयों को लघु उद्योग माना जाएगा जहां वार्षिक कारोबार 5 करोड़ से अधिक, लेकिन 75 करोड़ से ज्यादा नहीं होगा,
- वैसे उद्योगों को मध्यम उद्योग माना जाएगा जहां वार्षिक कारोबार 75 करोड़ रुपये से अधिक है परंतु 250 करोड़ रुपये से अधिक नहीं हो।
- उपर्युक्त के अतिरिक्त केंद सरकार ने अधिसूचना के जरिए कारोबार सीमा में बदलाव कर सकती है, जो एमएसएमईडी अधिनियम की धारा 7 में उल्लेिखित सीमा से तिगुनी से अधिक नहीं हो सकती।
बदलाव का कारण व लाभ
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- ज्ञातव्य है कि मौजूदा एमएसएमईडी अधिनियम (धारा 7) में निर्माण इकाइयों के संबंध में संयंत्र और मशीनरी में निवेश तथा सेवा उपक्रमों के लिए उपकरण में निवेश के आधार पर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रमों का वर्गीकरण करता है। संयंत्र और मशीनरी में निवेश की घोषणा स्वयं करती है जिसकी पुष्टि अनिवार्य होती है और इसमें काफी लागत आती है।
- केंद्र सरकार के मुताबिक जीएसटी नेटवर्क के संबंध में कारोबार के आंकड़ों को भरोसेमंद माना जा सकता है। इसके साथ अन्य उपायों के तहत भी संयंत्र एवं मशीनरी/उपकरण, रोजगार के संबंध में निवेश के आधार पर वर्गीकरण संभव है। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और निरीक्षण की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी।
- इसके अलावा व्यापार करने की आसानी में भी इजाफा होगा। संशोधन से सरकार को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों के वर्गीकरण में लचीला रूख अपनाने में मदद मिलेगी ताकि बदलते आर्थिक परिदृश्य में विकास हो सके। इस संबंध में एमएसएमईडी अधिनियम में संशोधन की आवश्यकता नहीं रहेगी।
- वर्गीकरण के मानकों में बदलाव से व्यापार करने में होने वाली आसानी को बढ़ावा मिलेगा। परिणामस्वरूप वृद्धि होगी तथा देश के एमएसएमई क्षेत्र में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रोजगार को बढ़ाने का रास्ता खुलेगा।