- प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ने 7 फरवरी, 2018 को ‘मिनामाता पारद अभिसमय’ (Minamata Convention on Mercury) की अभिपुष्टि संबंधी प्रस्ताव व इससे संबंधित प्रपत्र के सौपने को मंजूरी दे दी जिससे भारत इस अभिसमय का पक्षकार बन जाएगा।
जिस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई उनमें अभिसमय की अभिपुष्टि के अलावा वर्ष 2025 तक पारद (पारा) उत्पादों व पारद यौगिक युक्त प्रक्रिया के उपयोग की छूट संबंधी प्रस्ताव भी शामिल हैं। - इस अभिसमय का क्रियान्वयन सतत विकास के संदर्भ में किया जाएगा जिसका उद्देश्य मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण की सुरक्षा है।
क्या है मिनामाता पारद अभिसमय?
- मीनामाता पारद अभिसमय, मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण पर पारद के प्रतिकूल प्रभाव से सुरक्षा वाली वैश्विक संधि है। इस संधि का नाम जापान के मीनामाता शहर के नाम पर रखा गया है जो पारद के विषैले प्रभाव का साक्षी रहा है।
- इस संधि पर स्विटजरलैंड के जेनेवा में 19 जनवरी, 2013 को सहमति बनी थी तथा 10 अक्टूबर, 2013 को जापान के कुओमितांग में इसे अपनाया गया।
- 16 अगस्त, 2017 को यह अभिसमय लागू हुआ। फिलहाल विश्व के 128 देश इसके हस्ताक्षरी हैं जबकि 88 देशों ने इसकी अभिपुष्टि कर दी है।
- भारत ने इस संधि पर 30 सितंबर, 2014 को हस्ताक्षर किया था। भारत का पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रलय इस अभिसमय का नोडल विभाग है।
- यह अभिसमय, जो कि बाध्यकारी है, पारद के खानों पर प्रतिबंध लगाता है, उसे चरणबद्ध ढ़ंग से समाप्त करना है।
- अभिसमय के तहत पारद उत्पादों के विनिर्माण, आयात पर वर्ष 2020 तक अनिवार्य प्रतिबंध लगाना है। कुछ देशों को विशेष अनुमति पर पांच वर्ष तक की छूट दी जा सकती है अर्थात वे वर्ष 2025 तक इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगा सकते हैं।
- पारद विषाक्त धातु है जो पर्यावरण में उत्सर्जित होने पर खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाते हैं और आसानी से मानव शरीर में प्रवेश कर जाता है और मानव के तंत्रिका प्रणाली को प्रभावित करता है।
मिनामाता रोग
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- मिनामाता रोग एक स्नायविक सिंड्रोम है जो विषाक्त पारद या पारा के कारण होता है। इस रोग का नामकरण जापान के मिनामाता शहर के नाम पर हुआ है जहां वर्ष 1956 में सर्वप्रथम इसकी खोज की गई थी। मिनामाता के चिस्सो रासायन कारखाना के अपशिष्ट जल में मिथाइलमर्करी के मिलने से यह रोग फैली।