क्या होती है ‘दलील सौदेबाजी’ (plea bargaining)?

खबरों में क्यों?

हाल में तबलिगी जमात के कई विदेशी सदस्यों ने ‘दलील सौदेबाजी’ (plea bargaining) प्रक्रिया के माध्यम से जेलों से रिहाई प्राप्त करने में सफल रहे। कोविड पैंडेमिक के दौरान दिल्ली में धार्मिक आयोजन में ये हिस्सा लेने आये थे। प्रतिबंधों के बावजूद धार्मिक आयोजन में हिस्सा लेने के कारण इन पर मुकदमा चलाया जा रहा था।

दलील सौदेबाजीः मुख्य विशेषताएं

दलील सौदेबाजी से तात्पर्य वह प्रक्रिया है जिसमें किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति अपना अपराध स्वीकार कर उस अपराध के लिए निर्धारित सजा से कम सजा प्राप्त करने में सफल रहता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में यह न्यायिक प्रक्रिया काफी सफल रही है।

भारत में दलील सौदेबाजी

भारत में सर्वप्रथम वर्ष 2006 में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के अध्याय 21ए की धारा 265ए से 275एल में दलील सौदेबाजी का प्रावधान किया गया।

भारत में दलील सौदेबाजी प्रक्रिया केवल आरोपी ही आरंभ कर सकता है। साथ ही आरोपी को इस प्रक्रिया का लाभ उठाने के लिए न्यायालय में आवेदन देना होता है।

भारत में इस प्रक्रिया की भी अपनी सीमाएं हैं। केवल वैसे अपराधों के मामलों में ही इसका इस्तेमाल किया जा सकता है जिस अपराध के लिए मृत्युदंड, आजीवन कारावास या सात वर्षों से अधिक सजा का प्रावधान हो। साथ ही देश की सामाजिक-आर्थिक को प्रभावित करने वाले अपराध, महिलाओं या 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के खिलाफ अपराध के मामले में भी इस प्रक्रिया का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

दलील सौदेबाजी के लाभ

दलील सौदेबाजी से दोषसिद्धि दर में काफी बढ़ोतरी हो जाती है। बिना मुकदमा चलाये जेलों में बंद लोगों को भी जल्द न्याय मिलने में सहायता प्राप्त होती है। मुकदमेबाजी पर आने वाली लागत में भी कमी आती है।

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