आरबीआई (भारतीय रिज़र्व बैंक) ने 17 अप्रैल 2020 को वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने एवं जरूरतमंदों तथा वंचितों की आर्थिक मदद करने के लिए कई और अहम कदमों की घोषणा की. प्रमुख घोषणाएं निम्नलिखित हैं:
लक्षित दीर्घकालिक रेपो परिचालन (टीएलटीआरओ) 2.0: 50,000 करोड़ रुपये की कुल प्रारंभिक राशि के साथ ‘लक्षित दीर्घकालिक रेपो परिचालन (Long-term repo operations : TLTRO 2.0)’ का दूसरा सेट कार्यान्वित किया जाएगा। यह कदम एनबीएफसी और एमएफआई सहित छोटे एवं मध्यम आकार की उन कंपनियों तक धन प्रवाह को सुगम बनाने के लिए उठाया जा रहा है, जो कोविड-19 के कारण आए व्यवधानों से बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। टीएलटीआरओ 2.0 के तहत बैंकों द्वारा लिए जाने वाले धन को निवेश योग्य बॉन्डों, वाणिज्यिक प्रपत्रों एवं गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के गैर-परिवर्तनीय डिबेंचरों में निवेश किया जाना चाहिए और इसके तहत ली जाने वाली कुल राशि का कम से कम 50 प्रतिशत छोटी एवं मझोली एनबीएफसी तथा माइक्रोफाइनेंस संस्थानों (एमएफआई) को दिया जाना चाहिए।
अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों के लिए पुनर्वित्त सुविधाएं: 50,000 करोड़ रुपये की कुल राशि के लिए विशेष पुनर्वित्त सुविधाएं राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) और राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी) को प्रदान की जाएंगी, ताकि उन्हें विभिन्न सेक्टरों की ऋण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम बनाया जा सके। इसके तहत क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी), सहकारी बैंकों एवं माइक्रोफाइनेंस संस्थानों (एमएफआई) को पुनर्वित्त प्रदान करने के लिए नाबार्ड को 25,000 करोड़ रुपये; आगे उधार देने/पुनर्वित्त प्रदान करने के लिए सिडबी को 15,000 करोड़ रुपये; और आवास वित्त कंपनियों (एचएफसी) को आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए एनएचबी को 10,000 करोड़ रुपये दिए जाएंगे। ये सुविधाएं इसलिए दी जा रही हैं क्योंकि ये संस्थान कोविड-19 से उत्पन्न कठिन वित्तीय परिस्थितियों के मद्देनजर बाजार से वित्त जुटाने में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि इस सुविधा के तहत लिए जाने वाले अग्रिम दरअसल आरबीआई के पॉलिसी रेपो रेट पर ही उपलब्ध होंगे, ताकि वे अपने उधारकर्ताओं को किफायती ब्याज दरों पर ऋण दे सकें।
तरलता समायोजन सुविधा के तहत रिवर्स रेपो रेट में कमी: रिवर्स रेपो रेट को तत्काल प्रभाव से 4.0% से 0.25 प्रतिशत कम करके 3.75% कर दिया गया है, ताकि बैंकों को अपने अधिशेष धन को निवेश करने और अर्थव्यवस्था के उत्पादक सेक्टरों को ऋण देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। आरबीआई गवर्नर ने बताया कि बैंकिंग प्रणाली में अधिशेष (सरप्लस) तरलता होने से ही यह निर्णय लेना संभव हो पाया है।
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अर्थोपाय अग्रिम की सीमा में वृद्धि: राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अर्थोपायअग्रिम (Ways and Means Advances: WMAs) की सीमा में 60% की वृद्धि की गई है जो 31 मार्च, 2020 की निर्दिष्ट सीमा के अलावा है। इसका उद्देश्य कोविड-19 को नियंत्रण में रखने एवं इसमें कमी लाने के प्रयासों के लिए राज्यों को अधिक से अधिक सहूलियत प्रदान करना और उनके बाजार उधारी कार्यक्रमों की योजना बेहतर ढंग से बनाने में उनकी मदद करना है।
WMA आरबीआई द्वारा प्रदान की जाने वाली अस्थायी ऋण सुविधाएं हैं, जो सरकारों की प्राप्तियों और व्यय में अस्थायी असंतुलन को कम करने में उनकी मदद करती हैं। बढ़ी हुई सीमा 30 सितंबर, 2020 तक उपलब्ध या मान्य होगी।