उमाशंकर मिश्र (Twitter handle : @usm_1984)
नई दिल्ली, 18 नवंबर (इंडिया साइंस वायर): भारत में अत्यधिक आबादी के कारण किफायती चिकित्सीय एवं नैदानिक उपकरणों और कुशल लैब तकनीशियनों की बड़े पैमाने पर आवश्यकता है। भारतीय शोधकर्ताओं ने एक स्मार्ट माइक्रोस्कोपी तकनीक विकसित की है जो इस कमी को दूर करने में मददगार हो सकती है।
डीप लर्निंग एल्गोरिद्म पर आधारित इस माइक्रोस्कोपी तकनीक में ऐसे सॉफ्टवेयर का उपयोग किया गया है जो रक्त नमूनों की माइक्रोस्कोपिक इमेज का उपयोग करके लाल एवं सफेद रक्त कोशिकाओं की गणना कर सकता है। सफेद रक्त कोशिकाओं के अलग-अलग रूपों और लाल रक्त कोशिकाओं की पहचान तथा गणना में इस सॉफ्टेवयर को 93 प्रतिशत तक सटीक पाया गया है।
यह तकनीक वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर) के चंडीगढ़ स्थित केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन (सीएसआईओ) के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित की गई है। सीएसआईओ के शोधकर्ताओं का कहना है कि इस सॉफ्टवेयर को सीएसआईओ द्वारा विकसित डिजिटल माइक्रोस्कोप पर लगाया जा सकता है, जिसकी तकनीक हाल में हैदराबाद स्थित एक कंपनी को हस्तांतरित की गई है।
सीएसआईओ के शोधकर्ता सुमन तिवारी ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “नैदानिक केंद्रों में किए जाने वाले रक्त परीक्षण के लिए विभिन्न चिकित्सीय केंद्रों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर इस तकनीक को अधिक बेहतर बनाया जा सकता है। नैदानिक परिणाम और रक्त कोशिकाओं की वास्तविक समय में गणना के लिए यह तकनीक एकीकृत स्वचालित समाधान के रूप में विकसित हो सकती है।”
कोलकाता में हाल में इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल-2019 के अंतर्गत आयोजित हेल्थ रिसर्च कॉन्क्लेव में इस माइक्रोस्कोपी तकनीक को मेडिकल इनोवेशन्स वर्ग में प्रदर्शित किया गया था, जहां इस तकनीक को प्रथम पुरस्कार मिला है।
सीएसआईओ के निदेशक प्रोफेसर आर.के. सिन्हा ने इस माइक्रोस्कोपी तकनीक को विकसित करने वाले शोधकर्ताओं को बधाई देते हुए कहा है कि “भारत की अत्यधिक आबादी और दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों तक रोगों के नैदानिक परीक्षण के लिए उपकरणों और विशेषज्ञों की सीमित पहुंच एक प्रमुख समस्या है। यह स्मार्ट तकनीक सस्ती और सुलभ नैदानिक सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित करने में उपयोगी हो सकती है।”
आमतौर पर पैथोलॉजी केंद्रों पर मैन्युअल तरीके से माइक्रोस्कोप के उपयोग से रक्त परीक्षण किया जाता है। लेकिन भारत में अत्यधिक आबादी के कारण महंगे नैदानिक उपकरणों और कुशल लैब विशेषज्ञों की बड़े पैमाने पर पहुंच सुनिश्चित करना कठिन है।
मैन्युअल रूप से रक्त कोशिकाओं की गणना कठिन है और इसमें समय भी अधिक लगता है तथा गलतियों की आशंका रहती है। कई कंपनियों के पास इस तरह के परीक्षणों के लिए डिफरेंशिअल काउंटर उपलब्ध हैं। हालांकि, इस ये परीक्षण महंगे होते हैं और उनके संचालन एवं रखरखाव के लिए प्रशिक्षित विशेषज्ञों की जरूरत होती है। (इंडिया साइंस वायर)