- गोरखपुर स्थित बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के तीन वर्षों के डेटा के अध्ययन से इस बात की पुष्टि हुई है कि प्रति वर्ष अगस्त से अक्टूबर के बीच मेडिकल कॉलेज में एक्यूट इनसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस-Acute Encephalitis Syndrome (AES)) के अधिकांश मरीजों में स्क्रब टाइफस (scrub-typhus ) में था।
- द हिंदू के अनुसार स्क्रब टाइफस की प्रथम भूमिका 2014 में अस्पताल में कर्नाटक मणिपाल सेंटर फॉर वायरल रिसर्च के अध्ययन में सामने आई थी। बाद के वर्षों में भी अध्ययन से इसी तरह की बात सामने आई।
- वर्ष 2015 में चेन्नई के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी के मनोज मुर्शेकर के नेतृत्व वाली टीम ने 370 एईएस मरीजों के परीक्षण में 63 प्रतिशत में स्क्रब टाइफस के एंटीबॉडी पाई गई। इसे जर्नल ऑफ इन्फेक्शन में प्रकाशित किया गया। वर्ष 2016 में 407 एईएस के मरीजों में से 65 प्रतिशत में यह बीमारी पाई गई।
- जब एईएस के सभी मरीजों को स्क्रब टाइफस के इलाज के लिए एजिथ्रोमाइसिन (azithromycin) नामक दवा दी गई, तब गैर-स्क्रब टाइफस के 35 प्रतिशत मरीजों की मौत हो गई, वहीं स्क्रब टाइफस के 15 प्रतिशत मरीजों की ही मौत हुई। इसका मतलब यह था कि एईएस के मरीजों में एजिथ्रोमाइसिन प्रभावी सिद्ध हुई।
- इसके पश्चात चेन्नई स्थित वेक्टर कंट्रोल रिसर्च सेंटर का एक अध्ययन जुलाई 2018 में प्रकाशित हुआ जिसमें पूर्वी उत्तर प्रदेश के ट्रॉम्बिक्युलिड मृदा कणों में ओरिएंटिया त्सुसुगुमाशी (Orientia tsutsugumashi) पाए गए जो कि स्क्रब टाइफस के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया है।
स्क्रब टाइफस एक बीमारी है जो कि मृदा में छिपे ओरिएंटिया त्सुसुगुमाशी (Orientia tsutsugumashi) नामक बैक्टीरिया से संक्रमित होता है।