गेहूं के लिए उभरता खतरा है नया रतुआ संक्रमण

  • डॉ अदिति जैन (Twitter handle:@AditiJain1987)

नईदिल्ली, 8मई (इंडिया साइंस वायर): भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने गेहूं में पीले रतुआ रोग के लिए जिम्मेदार फफूंद के फैलने की आशंका के बारे में आगाह किया है। देश में उगाई जाने वाली गेहूं की फसल में इसके प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता देखी गई है। यह स्थिति गंभीर हो सकती है क्योंकि डबल-रोटी या ब्रेड के लिए उपयोग होने वाले गेहूं की किस्म एचडी-267, जिसकी खेती एक करोड़ हेक्टेयर से भी ज्यादा क्षेत्र में होती है, को इसके प्रति संवेदनशील पाया गया है।

गेहूं का पीला रतुआ, जिसे गेहूं का धारीदार रतुआ रोग भी कहते हैं, ‘पुसीनिया’ नामक फफूंद के कारण होता है। यह फफूंद अक्सर ठंडे क्षेत्रों, जैसे-उत्तर-पश्चिमी मैदानी और उत्तर के पहाड़ी इलाकों में उगाए जाने वाले गेहूं की प्रजातियों में पाया जाता है।इस संक्रमण के कारण गेहूं की बालियों मेंदानों की संख्या और उनका वजन दोनों कम हो जाते हैं। इससे गेहूं की पैदावार में 70 प्रतिशत तक गिरावट हो सकती है।

भारत में उगाए जाने वाले गेहूं की किस्मों में सरसों या राई के पौधों का आंशिक गुणसूत्र होता है, जो पीले रतुआ की बीमारी से गेहूं को बचाए रखता है। लेकिन, संक्रामक फफूंद की कुछ नई प्रजातियां मिली हैं, जो गेहूं की इन किस्मों को भी संक्रमित कर सकती हैं। यह चिंताजनक है क्योंकि फफूंद की ये प्रजातियां तेजी से फैल रही हैं। हालांकि, प्रोपिकोनाजोल, टेबुकोनाजोल और ट्राइएडीमेफौन जैसे फफूंद नाशी गेहूं के पीले रतुआ रोग से निपटने में मददगार हो सकते हैं। लेकिन, वैज्ञानिकों का कहना यह भी है कि पौधों में नैसर्गिक आनुवंशिक प्रतिरोधक क्षमता का विकास बीमारियों से लड़ने का प्रभावी, सस्ता और पर्यावरण हितैषी तरीका है।

करनाल स्थित भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान और शिमला स्थित इसके क्षेत्रीय केंद्र के वैज्ञानिकों ने इस संक्रामक फफूंद की तीन नई किस्मों का पता लगाया है,जो बहुत तेजी से फैलती हैं। फफूंद की ये किस्में भारत में गेहूं की उत्पादकता को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं। इन्हें भारत में पहली बार वर्ष 2013-14 के दौरान खोजा गया था और अब इनकी संख्या आक्रामक रूप से बढ़ रही है।

वैज्ञानिकों ने फफूंदों के जीन समूह (जीनोम) के एक अंश की रचना का तुलनात्मक अध्ययन किया है। उनका कहना है कि रोगजनकों का आनुवांशिक सूचीकरण रोगों के फैलने और उस कारण हुए नुकसान पर नजर रखने में सहायक हो सकता है।

वैज्ञानिकों ने गेहूं की 56 नई प्रजातियों पर इन फफूंदों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का परीक्षण किया है। इसके लिए, इन प्रजातियों के बीज उगाए गए और अंकुरों को जानबूझकर इन फफूंदों से संक्रमित किया गया। लेकिन, इन नई प्रजातियों में से कोई भी उन तीनों फफूंदों के लिए प्रतिरोधी नहीं पायी गई। इसके बाद, गेहूं की 64 अन्य किस्मों पर इन फफूंदों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का पता लगाने के लिए शोध किया गया, जिसमें से 11 किस्में इन फफूंदों के प्रति प्रतिरोधी पायी गईं। गेहूं की इन प्रजातियों की खेती करके नए रोगजनकों से लड़ने में मदद मिल सकती है।

शोधर्ताओं में शामिल, भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ सुभाष चंदर भारद्वाज ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “इस तरह के संक्रामक फफूंद के नए रूपों से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता वाले संसाधनों के साथ हमारी पूरी तैयारी है। इसके साथ ही, भावी शोध कार्यों में उपयोग के लिए उन्नत आनुवांशिक सामग्री की पहचान भी निरंतर की जा रही है। हम संक्रामक फफूंद प्रजातियों के पैदा होने की घटनाओं पर भी लगातार नजर रख रहे हैं और इसके नए रूपों के प्रबंधन के लिए रणनीति तैयार करने में जुटे हैं।”

शोधकर्ताओं की टीम में ओम प्रकाश गंगवार, सुबोध कुमार, प्रमोद प्रसाद, सुभाष चंदर भारद्वाज, प्रेमलाल कश्यप और हनीफ खान शामिल थे। यह अध्ययन जर्नल ऑफ प्लांट पैथोलॉजी में प्रकाशित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)

 

भाषांतरण : पीयूष पाण्डेय

Written by 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *