डॉ टी.वी. वेंकटेश्वरन
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नई दिल्ली, 24 जुलाई:
- आगामी 27 जुलाई की आधी रात को लगने वाला पूर्ण चंद्रग्रहण 21वीं शताब्दी का सबसे लंबा चंद्रगहण होगा, जो लगभग 103 मिनट तक रहेगा। पिछली सदी में सबसे लंबा पूर्ण चंद्रग्रहण वर्ष 2000 में 16 जुलाई को हुआ था, जो इस बार के पूर्ण चंद्रग्रहण से चार मिनट अधिक लंबा था।
एशिया और अफ्रीका के लोगों को इस बार पूर्ण चंद्रग्रहण का सबसे बेहतर नजारा देखने को मिलेगा। यूरोप, दक्षिण अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया में यह ग्रहण आंशिक रूप से देखा जा सकेगा। जबकि, उत्तरी अमेरिका और अंटार्कटिका में यह नहीं दिखाई पड़ेगा। भारत में पूर्ण चंद्रग्रहण 27 जुलाई को रात 22:42:48 बजे शुरू होगा और 28 जुलाई की सुबह 05:00:05 बजे खत्म होगा।
वर्ष 2018 | चरण | चंद्रमा की स्थिति | समय (इंडियन स्टैंडर्ड टाइम) |
जुलाई 27 | 1 | उपछाया क्षेत्र (पेनंब्रा) में चंद्रमा का प्रवेश | 22:42:48 |
जुलाई 27 | 2 | प्रतिछाया क्षेत्र (अंब्रा) में चंद्रमा का प्रवेश | 23:53:52 |
जुलाई 28 | 3 | चंद्रग्रहण के समग्र स्वरूप का आरंभ | 00:59:39 |
जुलाई 28 | 4 | अधिकतम चंद्रग्रहण | 01:51:27 |
जुलाई 28 | 5 | चंद्रग्रहण की समग्रता का अंत | 02:43:14 |
जुलाई 28 | 6 | चंद्रमा का प्रतिछाया क्षेत्र को छोड़ना | 03:49:02 |
जुलाई 28 | 7 | चंद्रमा का उपछाया क्षेत्र को छोड़ना | 05:00:05 |
2. चंद्रग्रहण की अवधि का निर्धारण दो बातों के आधार पर होता है। सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा के केंद्रों का एक सीधी रेखा में होना और ग्रहण के समय पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी के आधार पर चंद्रगहण की अवधि का आकलन होता है। इस बार इन तीनों खगोलीय पिंडों के केंद्र लगभग एक सीधी रेखा में होंगे, और चंद्रमा की पृथ्वी से दूरी अपने अधिकतम बिंदु के बेहद करीब होगी। चंद्रमा इस बार पृथ्वी से अपने सबसे दूरस्थ बिंदु के नजदीक होगा, इसलिए यह अत्यंत छोटा दिखाई पड़ेगा। यही कारण है कि पृथ्वी की छाया को पार करने में चंद्रमा को इस बार ग्रहण के समय अधिक समय लगेगा और चंद्रग्रहण लंबे समय तक बना रहेगा।
3- पुराणों में ग्रहण का कारण राहू और केतु जैसे राक्षसों द्वारा कभी-कभार सूर्य अथवा चंद्रमा को अपना ग्रास बना लेने को बताया गया है। भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ आर्यभट्ट (476-550 ईसवीं) ने ग्रहण से संबंधित वैज्ञानिक सिद्धांत प्रस्तुत किये। उन्होंने इस बात को सिद्ध किया कि जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आती है तो पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ने से चंद्रग्रहण होता है। इसी तरह सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा के आने पर चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है तो सूर्यग्रहण होता है। यही वजह है कि चंद्रग्रहण पूर्णिमा के दिन ही होता है, जब सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी की दो विपरीत दिशाओं में होते हैं। वहीं, सूर्यग्रहण अमावस्या के दिन होता है, जब सूर्य एवं चंद्रमा पृथ्वी की एक ही दिशा में स्थित होते हैं।
4. ग्रहण वास्तव में छाया के खेल से अधिक कुछ नहीं है और इससे किसी तरह की रहस्यमयी किरणों का उत्सर्जन नहीं होता। चंद्रग्रहण को देखना पूरी तरह सुरक्षित है और इसके लिए किसी खास उपकरण की आवश्यकता भी नहीं होती। हालांकि, सूर्यग्रहण को देखते वक्त थोड़ी सावधानी जरूर बरतनी चाहिए क्योंकि सूर्य की चमक अत्यधिक तेज होती है।
5. सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के ठोस हिस्से से गुजर नहीं पाता है, लेकिन पृथ्वी को ढंकने वाले वायुमंडल से न केवल सूर्य की किरणें आर-पार निकल सकती हैं, बल्कि इससे टकराकर ये किरणें चंद्रमा की ओर परावर्तित हो सकती हैं। सूर्य के प्रकाश में उपस्थित अधिकतर नीला रंग पृथ्वी के वायुमंडल द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है, जिससे आसमान नीला दिखाई देता है। जबकि, लाल रोशनी वायुमंडल में बिखर नहीं पाती और पृथ्वी के वातावरण से छनकर चंद्रमा तक पहुंच जाती है, जिससे चंद्रमा लाल दिखाई पड़ता है। इस बार सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा के केंद्र पूर्ण चंद्रग्रहण के दौरान लगभग सीधी रेखा में होंगे तो सूर्य के प्रकाश की न्यूनतम मात्रा वायुमंडल से छनकर निकल पाएगी, जिससे चंद्रमा पर अंधेरा दिखाई पड़ेगा।
6. एक रुपये का सिक्का लें और इसके द्वारा पड़ने वाली छाया को देखें। हम आसानी से देख सकते हैं कि छाया के केंद्रीय हिस्से पर अंधेरा है, लेकिन किनारे की तरफ अंधेरा कम है। इस तरह पड़ने वाली छाया के गहरे भाग को प्रतिछाया क्षेत्र (अंब्रा) और हल्के रंग का हिस्सा उपछाया क्षेत्र (पेअंब्रा) कहा जाता है। इसी प्रकार पृथ्वी पर भी प्रतिछाया और उपछाया दोनों बनती हैं।
इस बार चंद्रग्रहण के दिन पृथ्वी के उपछाया क्षेत्र में रात के करीब 10.53 बजे चंद्रमा के प्रवेश को देखा नहीं जा सकेगा। चंद्रमा का अधिकतर हिस्सा जैसे-जैसे उपछाया क्षेत्र से ढकता जाएगा तो इसकी कम होती चमक को स्पष्ट रूप से देखा जा सकेगा।
करीब 11:54 बजे चंद्रमा प्रतिछाया क्षेत्र में प्रवेश करेगा। उस वक्त पूर्णिमा के चांद पर धीरे-धीरे गहराते अंधेरे को देखना बेहद रोचक होगा।
7. इस चंद्रग्रहण के दिन 27 जुलाई को रात के समय आकाश में एक अन्य लाल रंग का चमकता हुआ पिंड मंगल भी अपना विशेष प्रभाव छोड़ने जा रहा है। उस दिन मंगल ग्रह सूर्य के लगभग विपरीत दिशा में होगा और इसलिए यह ग्रह पृथ्वी के करीब होगा। उस दौरान लाल ग्रह मंगल और लाल रंग का चंद्रमा रात के आकाश में चकाचौंध पैदा करेंगे।
8. मध्यरात्रि लगभग 12:30 बजे चंद्रग्रहण अपने समग्र स्वरूप को धारण करने लगेगा और अगले एक घंटे के लिए चंद्रमा पूरी तरह से पृथ्वी की छाया से ढंक जाएगा। इस दौरान गहरे लाल से लेकर ईंट जैसे रंग की तरह लाग रंग के विभिन्न रूपों को देखना मजेदार अनुभव होगा।
9. आमतौर पर सूर्य-पृथ्वी-चंद्रमा पूरी तरह से एक रेखा में नहीं होते हैं, जिसके कारण सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल से छनकर निकल जाता है और चंद्रमा का रंग लाल हो जाता है। हालांकि, इस बार सूर्य-पृथ्वी-चंद्रमा सीधे रेखा में होंगे, जिससे चंद्रमा पर अंधेरा होगा। 28 जुलाई को पूर्वाहन 1:51:27 बजे चंद्रमा पर अंधेरा होगा और इसकी चमक इतनी धीमी होगी कि यह दिखाई नहीं पड़ेगा। इस समय पूर्ण चंद्रग्रहण अपने उच्चतम स्तर पर होगा और फिर जल्दी ही अपने रंग में लौटना शुरू हो जाएगा।
10. वर्ष में अधिक से अधिक सात ग्रहण और कम से कम दो ग्रहण हो सकते हैं। एक वर्ष के भीतर होने वाले ग्रहणों में चार सूर्यग्रहण और तीन चंद्रग्रहण या फिर पांच सूर्यग्रहण और दो चंद्रग्रहण का संयोजन हो सकता है। अगर एक वर्ष में सिर्फ दो ही ग्रहण होते हैं तो वे दोनों सूर्यग्रहण होते हैं।
(इंडिया साइंस वायर)
(पब्लिक आउटरीच ऐंड एजुकेशन कमेटी, एस्ट्रॉनोमिकल सोसायटी ऑफ इंडिया के इन्पुट्स पर आधारित)
भाषांतरण : उमाशंकर मिश्र