- अमलेन्दु उपाध्याय (Twitter handle : @mediaamlendu)
नई दिल्ली, 20 मई (इंडिया साइंस वायर) : पिछले साल केरल में निपा वायरस के संक्रमण के कारणों को लेकर जो भ्रांतियां थीं, वे एक नए अध्ययन से दूर हो गई हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि निपा का यह संक्रमण फलभक्षी चमगादड़ों से ही फैला था। संक्रमण के दौरान भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने निपा वायरस के वाहक के रूप में चमगादड़ों की भूमिका को लेकर जो आशंका जतायी थी, अब उसकी पुष्टि हो गई है।
नए अध्ययन से पता चला है कि निपा वायरस से संक्रमित चमगादड़ों के मूत्र या लार के संपर्क में आने वाले फलों का सेवन मनुष्यों में निपा वायरस के संक्रमण का कारण हो सकता है। यह अध्ययन शोध पत्रिका इमर्जिंग इन्फेक्शियस डिजीज़ेस में प्रकाशित हुआ है।
पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गएइस अध्ययन में संक्रमित व्यक्तियों औरचमगादड़ों के नमूने पिछले साल केरल के कोझिकोड जिले से लिए गए हैं। इन नमूनों में वायरस के विश्लेषण करने पर पाया गयाकि केरल में निपा वायरस के नमूने कुछ समय पहले बांग्लादेश में मिले वायरस से मिलते-जुलते थे।
केरल में पाए गए निपा संक्रमित मानव नमूनों और चमगादड़ों के नमूनों में लगभग 100 प्रतिशत समानता पायी गई है। यही नहीं, मलेशिया, कंबोडिया और बांग्लादेश में पाए गए निपा के नमूनों से तुलना करने पर केरल के नमूनों में 85–96 प्रतिशत तक समानता पायी गई है।
इस प्रकोप के फैलने में चमगादड़ों की भूमिका का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिकों ने परीक्षण किए जा रहे रोगियों की बीमारी शुरू होने के 21-30 दिन के भीतर उनके घरों के नजदीक से विशेष जाल का प्रयोग करते हुए चमगादड़ पकड़े हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार, यह वायरस केरल के चमगादड़ों में स्थानीय तौर पर विकसित हो रहा था। इसके साथ ही इसके विकासक्रम में कुछ ऐसे रूपांतरण भी हो सकते हैं जो इसे उत्तरी बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल में पाए गए निपा वायरस के नमूनों से अलग करते हैं।
लेकिन, अभी यह नहीं पता चल सका है कि यह वायरस चमगादड़ों से मनुष्य में कैसा पहुंचा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह निर्धारित करने के लिए अभी और अध्ययन की आवश्यकता है। अध्ययन में यह माना जा रहा है कि चमगादड़ों के इलाके में सक्रिय रूप से संक्रमण था।
शोधकर्ताओं का कहना है कि निपा वायरस से संक्रमण के लिए प्रभावी उपचार या वैक्सीन की कमी के कारणइस वायरस के नियंत्रण पर जोर दिया जाना चाहिए। रोगियों को आइसोलेशन वार्ड में रखने और स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा जोखिम कम करने के एक भाग के रूप में व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों के स्पष्ट उपयोग सहित अस्पतालों में संक्रमण नियंत्रण नीतियों पर मजबूती से अमल करने की आवश्यकता है।
इस अध्ययन में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे की शोधकर्ता डॉ. प्रज्ञा डी यादव, एएम शेटे, पी. सरकाले, आर.आर. सहाय, आर. लकड़ा, पी. परदेशी एवं डी. टी. मौर्य, मणिपाल सेंटर फॉर वायरस रिसर्च, मणिपाल के जी.ए. कुमार, गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, कोझीकोड के सी. राधाकृष्णन तथावी.आर. राजेंद्रन, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के एन. गुप्ता और आर.आर. गंगाखेड़कर औरकेरल के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभागके आर. सदानंदन शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर)