बायो-इलेक्ट्रॉनिक उपकरण ला सकते हैं स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांति

  • डॉ स्वाती सुबोध (Twitter handle: @swatisubodh)

 

नई दिल्ली, 12 अक्तूबर : वैश्विक स्तर पर लोगों की उम्र और उनको होने वाली बीमारियों के आंकड़े तेजी से बदल रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2050 तक 65 साल से अधिक उम्र के लोगों की संख्या दोगुनी हो जाएगी,जोदुनिया की कुल आबादी केलगभग 17 प्रतिशतके बराबर होगी। वर्ष 2020 तक स्थायी बीमारियों की दर 57 प्रतिशत तक बढ़ने की आशंका है। ये आंकड़े भविष्य में स्वास्थ्य संबंधी विषम परिस्थितियों से निपटने के लिए गुणवत्तापूर्ण एवं प्रभावी स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं।

रोगियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए उनकी देखभाल संबंधी सेवाएं अस्पतालों के बजाय मरीजों के घर पर केंद्रित होरही हैं। इस तरह अस्पताल में सिर्फ गंभीर बीमारियों के लिए ही देखभालको बढ़ावा मिलेगा। ऐसे में मरीज के शारीरिक और जैव-भौतिक मानकों की निरंतर निगरानी और संबंधित सूचनाओं को वास्तविक समय में हेल्थकेयर प्रदाताओं को भेजना जरूरी है।

इन चुनौतियों से निपटने के लिए चिकित्सा, जैविक तथा इंजीनियरिंग विज्ञान, मैटेरियल डिजाइन, और नवाचार प्रणालियों को एकीकृत रूप से उपयोग किया जा रहा है। पेसमेकर और इमेजिंग सिस्टम जैसे पुराने उत्पादों की जगह सामान्य फिटनेस ट्रैकिंग और हृदयगतिकी निगरानी करने वालेऐसे उत्पाद लाए जा रहे हैं, जिन्हें आसानी से उपयोग किया जा सकता है। शोधकर्ता स्वास्थ्य समस्याओं के निर्धारण और उसे रिकॉर्ड करने तथा विश्लेषण करने के लिए छोटे-छोटे बायो-इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के विकास और परीक्षण की ओर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

किसी तरह का नुकसान न पहुंचाने वाले ऐसे बायो-इलेक्ट्रॉनिक त्वचा सेंसर तैयार किए गए हैं, जिनके आशाजनक परिणाम मिल रहे हैं। ये सेंसर लार, आंसू और पसीने में उपस्थित तत्वोंके आधार पर मनुष्य में तनाव के स्तर का आकलन कर सकते हैं। कोर्टिसोल, लैक्टेट, ग्लूकोज और क्लोराइड आयनों के मापन द्वारा मधुमेह और सिस्टिक फाइब्रोसिस की पहचान करने में भी ये मदद कर सकते है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली के शोधकर्ताओं ने मधुमेह के लिए लार के नमूनों में ग्लूकोज का पता लगाने वालाएक बायोसेन्सर विकसित किया है।इसकेपरिणाम सीधे उपयोगकर्ता के स्मार्टफोन पर देखे जा सकते हैं। भारत में इस तरह के कई अध्ययन अभी जारी हैं।

फैशन के लिए पहने गए गहने की तरह दिखने वालेसंवाहक जैल और पैच सेंसर भी हृदयसंबंधी, मस्तिष्क और मांसपेशियों की गतिविधि को रिकॉर्ड करने के लिए विकसित किए जा रहे हैं जो परंपरागत रक्त विश्लेषण और नैदानिक ​​परीक्षणों के पूरक हो सकते हैं। मेकेनो-एकास्टिक त्वचा सेंसर तैयार किए जा रहे हैं जो बोलने की शैली और निगलने जैसी आंतरिक ध्वनियों को मापकर पक्षाघात से गुजरे रोगियों की स्थिति में हो रहे सुधार का मात्रात्मक मापन कर सकते हैं।

रोगों के उपचार के लिए ऐसे छोटे-छोटे मिनिस्कल इम्प्लांट्स तैयार किए गए हैं, जिनको शरीर के अंदर प्रत्यारोपित किया जाता है और फिर वे दवा को सीधे उसी जगह पर पहुंचाते हैं, जहां उसकी जरूरत होती है। इन इम्प्लांटों में उन अंगों तक भी पहुंचने की क्षमता है, जिनके अंदर पहुंचना मुश्किल होता है। इनउपकरणों से एक ओर दवाओं के दुष्प्रभाव और विषाक्तता को कम किया जा सकेगा, वहीं दूसरी ओर दवा का पूरा असर रोग विशेष पर पड़ सकेगा। इन उपकरणों से ऐसे रोगी, जिनकी विशेष रूप से लंबे समय तक देखभाल करने की जरूरत है या वे किसी संज्ञान संबंधी मनोरोग से पीड़ित हैं, की सेवाएं सुनिश्चित की जा सकती हैं। हाल में अनुमोदित डिजिटल गोली के उपयोग की दिशा में यह एक अच्छा कदम हो सकता है।

हृदय की अनियमित धड़कनों, स्नायु विकारों और संज्ञानात्मक बाधाओं जैसी स्थितियों के इलाज के लिए कुछ प्रत्यारोपण हृदय या मस्तिष्क के ऊतकों को बिजली के झटकोंद्वारा उत्तेजित भी कर सकते हैं। आंखों में कृत्रिम रेटिना और कानों में काक्लियर इम्प्लांट्स जैसे अन्य प्रत्यारोपण क्षतिग्रस्त ऊतकों को ठीक करके फिर से काम करने लायक बना देते हैं। शरीर के अंदर सूक्ष्म उपकरणों से किए जाने वाले ऐसे प्रयोग, जिनको चिकित्सकीय भाषा में ‘बायोसेक्यूटिकल्स’ के नाम से जाना जाता है, का उपयोग पारंपरिक चिकित्सीय विकल्पों को नया रूप दे सकते हैं।

भारत में, इस क्षेत्र में काफी काम शुरू हो चुका है। कुछ अध्ययनों के शुरुआती परीक्षणों के सकारात्मक परिणाम भी मिले हैं। आईआईटी, खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने इस साल के शुरुआत में कैंसर कोशिकाओं के बायो-इम्पीडिमेट्रिक विश्लेषण किए थे, जिसमें उन्होंने प्रयोगशाला में सामान्य कोशिकाओं की तुलना में कैंसर कोशिकाओं की आक्रामकता का मापन विद्युत क्षेत्र प्रतिबाधा द्वारा किया था। इस अध्ययन के निष्कर्ष साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित हुए थे। इसी साल जर्नल सेंसर्स में प्रकाशित एक और अध्ययन मेंआईआईटी, दिल्ली के शोधकर्ताओं ने काफी कम कीमत वाले सेंसर-आधारित कृत्रिम अंग तैयार किए हैं, जिनका उपयोग करके अपंग लोग भी सामान्य रूप से चल सकते हैं।

आईआईटी, खड़गपुर एक बायोइलेक्ट्रॉनिक्स इनोवेशन लेबोरेटरी स्थापित कर रहा है, जिसका उद्देश्य ऐसे बैटरी मुक्त इम्प्लांट करने योग्यसूक्ष्म इंजीनियरिंग तंत्र तैयार करना है, जिनको मस्तिष्क, तंत्रिका, मांसपेशियों या रीढ़ की हड्डी के विकारों के इलाज के लिए उपयोग किया जा सकेगा। इन युक्तियों से उन अंगोंमें क्षतिग्रस्त ऊतकों को ठीक करके फिर से काम करने लायक बनाया जाएगा। सिक्के के आकार का यह प्रस्तावित इम्प्लांट वायरलेस से संचालित होगा और पुनर्वास तथा सर्जरी के दौरान मस्तिष्क गतिविधियों का पता लगाने में उपयोग होने वाले परीक्षणों, जैसे- इलेक्ट्रिक सिमुलेशन, बायो-पोटेंशियल रिकॉर्डिंग और न्यूरो-केमिकल सेंसिंग का एकीकृत रूप होगा।

अभी सिर्फ रोगी की जांच के समय के ही आंकड़े मिल पाते हैं। बायो-इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उपयोग से 24 घंटे के आंकड़े एकत्रित होते रहेंगे। इससे रोगियों की स्वास्थ्य स्थिति के लिए बेहतर प्रबंधन किए जा सकेंगे। विभिन्न मरीजों के एकत्रित आंकड़ों से कृत्रिम बुद्धिमत्ता एल्गोरिदम और पूर्वानुमानित उपकरण विकसित करने में मदद मिल सकती है। इन उपकरणोंसे प्राप्त परिणाम चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा सामान्यतौर पर किये जा रहे परीक्षणों से मेल खा रहे हैं।कई बार इनके प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर देखे गए हैं। भारत जैसे देश में,जहां दूरदराज के इलाकों में डॉक्टरों की कमी के कारण समय पर इलाज नहीं हो पाता, वहां ये आधुनिक उपकरण महत्वपूर्ण हो सकते हैं। हालांकि, इन उपकरणों के उपयोग की शुरुआत के पहले आंकड़ों के मानकीकरण, उनकी सुरक्षा और गोपनीयता से संबंधित तथ्यों की परख और नियम-कानून बनाया जाना जरूरी है।

अगले कुछ वर्षों में, स्वास्थ्य निगरानी, तंत्रिका प्रोस्थेटिक्स और जैव रासायनिक प्रोस्थेटिक्स के जरिये इस क्षेत्र में बड़े बदलाव देखे जा सकते हैं। हालांकि,बाजार की थाह लेने के लिए निगरानी उपकरणों का परीक्षण शुरू हो चुका है। पर, प्रत्यारोपण या इम्प्लांट्स को स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचने में 5-10 साल का समय लग सकता है क्योंकि इन्हें विकास और नियामक प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है।

(इंडिया साइंस वायर)

भाषांतरण- शुभ्रता मिश्रा

 

Written by 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *