वैज्ञानिकों ने की FMD पशु संक्रमण के आनुवांशिक कारणों की खोज

  • शुभ्रता मिश्रा (Twitter handle: @shubhrataravi)

वास्को-द-गामा (गोवा), 4 जुलाई (इंडिया साइंस वायर): खुरपका व मुंहपका रोग पशुओं में होने वाला संक्रामक विषाणुजनित रोग है। भारतीय वैज्ञानिकों ने इस रोग विषाणु के फैलने के लिए जिम्मेदार आनुवांशिक और पारिस्थितिकी कारकों का पता लगाने में सफलता पाई है।

नैनीताल-स्थित खुरपका मुंहपका रोग निदेशालय के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किये गए शोध मेंएक डेयरी फ़ार्म पर मवेशियों और भैंसों में प्राकृतिक रूप से होने वाले लगातार संक्रमण फैलाने वालेएफएमडीवीसीरोटाइप ओ/एमई-एसए/इंड2001डी नामकउप-वंशावली के विषाणु के आनुवंशिक और प्रतिजनी विविधताओं के विश्लेषण किए गए ।

मुंहपका खुरपका रोग विषाणु के सात सीरोटाइप होने के कारण इसके विरुद्ध कोई एक टीका बनाना कठिन है। कई बार पारम्परिक टीकों का असर भी नहीं होता है। इन टीकों में जीवंत विषाणु होते हैं और कई बार टीका लगाने से भी बीमारी फैल जाती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह विषाणु पशुओं की लसिका ग्रंथियों और अस्थिमज्जा में भी जीवित रह जाता है, इसलिए इसको जड़ से समाप्त करना मुश्किल होता है।

डॉ. सर्वानन सुब्रमण्यम

पीड़ित पशुओं के लक्षणों में उनको तेज बुखार होना, मुंह से लार निकलना, मुंह व खुरों में छाले पड़ना, लंगड़ाकर चलना शामिल हैं। इसके अलावा पशुओं की कार्यक्षमता क्षीण हो जाती है। इस रोग का समय से इलाज न मिलने पर पशुओं की मौत भी हो जाती है।

शोध में यह पाया गया है कि मवेशियों और भैंस में मिले विषाणुओं के आरएनए में कोई अंतर नहीं था। लेकिन मवेशियों में इनकी मात्रा अधिक थी, जबकि भैंस में ये काफी देर तक रहते पाए गए। रोगवाहक पशु के अंदर पाए जाने वाले वाहक विषाणुओं की आनुवांशिक और प्रतिजैनिक संरचनाओं में भी परिवर्तन देखा गया।विषाणु की आनुवांशिक और प्रतिजन संरचनाओं में परिवर्तन का प्रभाव संभावित रूप से संक्रमित मवेशियों और भैंसों के बीमार होने पर पड़ता है।

पशुओं में यह रोग अलग अलग तरीके से फैल सकता है क्यों कि खुरपका मुंहपका विषाणु इनमे फैलने के लिए अलग-अलग मार्गों का अनुसरण करता है । अध्ययन में अतिसंवेदनशील मवेशियों और भैंसों में इस विषाणु के लगातार संक्रमण फैलाने वाले विषाणवीय और वाहक कारकों की भूमिका आरएनए संरचना में देखे गए बदलावों के माध्यम से स्पष्टहुई है।

खुरपका मुंहपका रोग निदेशालयके शोधकर्ता डॉ. सर्वानन सुब्रमण्यम ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “इस रोग पर सफलतापूर्वक नियंत्रण के लिए संक्रमित पशु, वैक्सीन लगे पशु और रोगवाहक पशु में भेद करना बड़ी चुनौती है। पशु को जब इसका टीका लगाया जाता है, तो वायरस प्रोटीन तुरंत ही सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया शुरु कर देते हैं। पहली बार इस अध्ययन में वायरस के आनुवांशिक पदार्थ आरएनए में हुए उत्परिवर्ती और प्रतिजनी बदलावों के आधार पर संक्रमित और संक्रमणवाहक पशुओं में वायरस के पारिस्थितिकीय विकास का अध्ययन किया गया है।”

डॉ सर्वानन ने बताया कि “इस अध्ययन से पता चला है कि पचास प्रतिशत से अधिक संक्रमित पशु स्थायी संक्रमण वाहक बन जाते हैं। अभी तक नए स्वस्थ पशुओं में रोग पैदा करने के लिए संक्रमण वाहकों की भूमिका स्पष्ट रूप से समझ में नहीं आई थी। इस अध्ययन से वाहक अवस्था के दौरान विषाणु में वाहक के अंदर और पशुओं के झुंड के भीतर उसमें होने वाले विकास को समझने में सहायता मिली है।”

शोधकर्ताओं का कहना है कि प्रभावी नियंत्रण रणनीतियों को तैयार करने के लिए खुरपका मुंहपका रोगविषाणु के महामारी विज्ञान को समझना बहुत आवश्यक है।इसलिएइस रोग से प्रभावित स्थानिक क्षेत्रों में खुरपका मुंहपका रोग पारिस्थितिकी की समझ में सुधार बीमारी के नियंत्रण के लिए आधार प्रदान करेगी।

यह अध्ययन शोध पत्रिका प्लाज वन में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं में खुरपका मुंहपका रोग निदेशालय, मुक्तेश्वर, नैनीताल के डॉ जितेंद्र के. बिस्वाल, राजीव रंजन, सर्वानन सुब्रमण्यम, जजाति के. महापात्राएवंडॉ. ब्रह्मदेव पटनायक के अलावा एबीआईएस डेयरी, राजनांदगांव के संजय पाटीदार और मुकेश के. शर्मा तथा अमेरिका के प्लम आइलेंड एनिमल डिसीज सेंटर, ग्रीनपोर्ट के मिरेंडा आर. बरत्राम, बारबरा ब्रिटो, लुईसएल. रोड्रिज़ और ज़ोनाथन आर्ट्ज़ शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर)

 

 

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