- शुभ्रता मिश्रा (Twitter handle : @shubhrataravi)
वास्को-द-गामा (गोवा), 06अगस्त : देश भर में एक विस्तृत कृषि क्षेत्र अनुपजाऊ या बंजर भूमि में बदल रहा है। भारतीय शोधकर्ताओं के एक ताजा अध्ययन में दक्षिण भारत के उपजाऊ क्षेत्रों के बंजर भूमि में परिवर्तित होने के चिंताजनक परिणाम सामने आए हैं।
इस अध्ययन में पाया गया है कि वर्ष 2011 से 2013 के बीच आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में इन राज्यों के कुल भौगोलिक क्षेत्र का क्रमशः 14.35, 36.24 और31.40 प्रतिशत भूभाग धरती को बंजर बनाने वाली प्रक्रियाओं से प्रभावित हुआ है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, आंध्रप्रदेश में भूमि को बंजर बनाने में सबसे बड़ा योगदान पेड़-पौधों तथा अन्य वनस्पतियों में गिरावट होना है। इसके अलावा, जमीन के बंजर होने में जल के कारण मिट्टी का कटाव और जल भराव जैसी प्रक्रियाएं भी उल्लेखनीय रूप से जिम्मेदार पायी गई हैं। कर्नाटक में भूमि को बंजर बनाने में पानी से मिट्टी का कटाव सबसे अधिक जिम्मेदार पाया गया है। इसके अलावा वनस्पतियों में कमी और लवणीकरण भी इस राज्य में भूमि के बंजर होने के लिए जिम्मेदार पाया गया है।
इस अध्ययन के दौरान रिमोट सेंसिंग से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में बंजर हो रही भूमि की वर्तमान स्थितिदर्शाने वाले मानचित्र तैयार किए गए हैं और इन भूमियों में हुए परिवर्तनों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है।पेड़-पौधों तथा वनस्पतियों मेंगिरावट,पानी एवं हवा से मिट्टी के कटाव, मिट्टी की लवणता में बढ़ोत्तरी, जलभराव, भूमि का अत्यधिक दोहन, पहले से बंजर चट्टानी मिट्टीयुक्त भूमि औरविभिन्न के समझौतों के तहत भूमि उपयोग जैसी परिस्थितियों को अध्ययन में आधार बनाया गया है।
इस अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉ राजेंद्र हेगड़े ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “प्राकृतिक संसाधनों के खराब प्रबंधन और प्रतिकूल जैव-भौतिक और आर्थिक कारकों के कारण दक्षिणी राज्यों की उपजाऊ भूमि का एक बड़ा हिस्सा पिछले कुछ वर्षों में बंजर हुआ है।भूमि विशेष का अत्यधिक दोहन,मिट्टी के गुण, कृषि प्रथाएं, औद्योगीकरण, जलवायु और अन्य पर्यावरणीय कारक जमीन को बंजर बनाने के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार होते हैं।”
नागपुर स्थित राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो तथा इसके बंगलुरू केंद्र और अहमदाबाद स्थित अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्रके वैज्ञानिकों द्वारा किए गए भूमि सर्वेक्षणोंमें ये तथ्य उजागर हुए हैं। अध्ययन के नतीजे शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किए गए हैं।
डॉ हेगड़ेके अनुसार, “भूमि के बंजर होने से उसका प्रतिकूल प्रभाव मिट्टी की उर्वरता, स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र और आजीविका पर पड़ता है। इसलिए उपजाऊ से अनुपजाऊ भूमि में बदल रहे भूभागों का समय-समय पर मूल्यांकन करना जरूरी है।उचित कृषि और नियमित भूमि प्रबंधन को अपनाकर धरती के बंजर होने की प्रक्रिया को कम किया जा सकता है।”
इस अध्ययन में शामिल एक अन्य शोधकर्ता एस. धर्मराजन के अनुसार,“आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में संवेदनशीलबंजर क्षेत्रोंकी पहचान प्राकृतिक संसाधनों के विकास के लिए रणनीति निर्धारित करने में महत्वपूर्ण हो सकती है। तैयार किए गए मानचित्रों से भविष्य में इन बंजर क्षेत्रों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा। देश के दूसरे राज्यों में भी रिमोट सेंसिंग और जीआईएस तकनीक के साथ-साथ अन्य सहायक आंकड़ों द्वारा भूमि मानचित्र तैयार करके बंजर हो रहे भू-क्षेत्र की प्रभावी निगरानी की जा सकती है।”
अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, शोध के नतीजे प्राकृतिक या मानवीय दखल से बंजर हो रही भूमि की बढ़ती प्रवृत्ति को नियंत्रित करने और भूमि-सुधार के उपायों को तैयार करने में सहायक हो सकते हैं।
शोधकर्ताओं में डॉ हेगड़े और एस. धर्मराजन के अलावा एम. ललिता, एन. जननि, ए.एस. राजावत, के.एल.एन. शास्त्रीऔर एस.के. सिंह शामिल थे।
(इंडिया साइंस वायर)