- उमाशंकर मिश्र (Twitter handle : @usm_1984)
जालंधर, 5 जनवरी : भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 106वें संस्करण में लगी प्राइड ऑफ इंडिया एक्स्पो में देश की वैज्ञानिक उपलब्धियों की झलक देखने को मिल रही है। जालंधर की लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी (एलपीयू) में लगी यह प्रदर्शनी हर उम्र के लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है, जिसे देखने के लिए भारी संख्या में लोग पहुंच रहे हें।
परमाणु हमले की स्थिति में रेडियोधर्मी विकिरण के खतरे से बचाव के लिए विकसित की गई संपूर्ण शरीर विकिरण काउंटर वैन और जमीन से हवा में मार करने वाली आकाश मिसाइल, ड्रोन्स समेत विभिन्न सैन्य साजो-सामान, रक्षा उपकरण और लाइफ सपेर्ट डिवाइसें लोगों को अधिक आकर्षित कर रही हैं। इन उपकरणों को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के पैवेलियन में प्रदर्शित किया गया है।
डीआरडीओ द्वारा विकसित उपकरणों में 90 किलोग्राम की क्षमता वाला एक अत्याधुनिक बैग भी शामिल है, जिसे सैनिकों के लिए खासतौर पर डिजाइन किया गया है। इस बैग को कुछ इस तरह डिजाइन किया गया है कि अधिक भार को देर तक उठाकर सैनिक चल सकते हैं। डीआरडीओ के वैज्ञानिकों के अनुसार, भारत-तिब्बत सीमा बल ने इस बैग को आजमाया है और वे इससे काफी खुश हैं।
डीआरडीओ के महानिदेशक (लाइफ साइंसेज) डॉ ए.के.सिंह ने इंडिया साइंस वायर से बात करते हुए कहा कि ‘विकिरण काउंटर वैन में सिर्फ प्रति व्यक्ति 15 मिनट रेडियोधर्मिता का पता लगा सकते हैं। इससे यह भी पता चल सकता है कि कौन-सा रेडियोधर्मी तत्व पीड़ित के शरीर में मौजूद है। इसका उपयोग फील्ड में भी किया जा सकता है। विध्वंसकारी आतंकी खतरों की आशंका को देखते हुए यह वैन विकसित की गई है। इसमें शामिल उपकरणों में संपूर्ण शरीर विकिरण काउंटर, रेडियोधर्मी कचरे के लिए भंडारण प्रणाली और प्रभावित क्षेत्रों में प्रारंभिक परिशोधन के प्रावधान शामिल हैं।’
डीआरडीओ के ही एक अन्य वैज्ञानिक डॉ प्रदीप गोस्वामी ने बताया कि ‘रेडियो विकिरण के निदान के लिए बनायी गई वैन में लोग खुद आकर विभिन्न उपकरणों को देखते हैं और कई तरह के सवाल पूछते हैं। हम उन्हें बताते हैं कि परमाणु हमले के दौरान सैनिकों के रेडियोधर्मी विकिरण से प्रभावित होने की स्थिति में उनके शरीर में रेडियोधर्मी तत्वों की पहचान के लिए इस विकिरण काउंटर वैन का उपयोग तत्काल राहत प्रदान करने के लिए किया जाता है।
डीआरडीओ की अलावा एक्स्पो में 150 से अधिक प्रमुख संगठनों ने अपनी प्रमुख तकनीकों, वैज्ञानिक उत्पादों, सेवाओं, नवाचारों और उपलब्धियों को दर्शाया है। इन संगठनों में मुख्य रूप से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, सीएसआईआर, आईसीएआर, आईसीएमआर, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, जूलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, भारतीय ताराभौतिकी संस्थान, इसरो और परमाणु ऊर्जा विभाग शामिल हैं। नये विचारों और नवोन्मेषी उत्पादों के केंद्र के रूप में यह प्रदर्शनी लोगों को सबसे अधिक लुभा रही है। विज्ञान शिक्षा, अंतरिक्ष विज्ञान, लाइफ सांइसेज, हेल्थकेयर, कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, ऊर्जा, पर्यावरण, ढांचागत संसाधनों का निर्माण, ऑटोमोबाइल और आईसीटी में विज्ञान की भूमिका को खासतौर पर इसमें प्रदर्शित किया गया है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के पैवेलियन में दिखाई जा रही विज्ञान आधारित प्रायोगिक गतिविधियों में लोग काफी रुचि ले रहे हैं। इन गतिविधियों में बच्चों के विज्ञान के खेलों के अलावा रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी चीजों को मुख्य रूप से दर्शाया गया है, जिनमें खेती की नयी तकनीक के रूप में उभरती जलकृषि, घरेलू चीजों से बनाए गए सस्ते शिक्षण टूल्स, अंधविश्वासों के रूप में प्रचलित चमत्कारों या जादू के पीछे छिपा विज्ञान, कागज से बनायी जाने वाली चीजों से जुड़ी ओरेगामी कला, प्रायोगिक गणित शामिल और प्राकृतिक अध्ययन शामिल हैं। इन प्रायोगिक गतिविधियों का आयोजन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की स्वायत्त संस्था विज्ञान प्रसार तथा राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद (एनसीएसटीसी) की पहल पर किया गया है।
विज्ञान प्रसार के वैज्ञानिक डॉ भारतभूषण ने बताया कि “इन गतिविधियों में लोगों को चमत्कार दिखाने वाले जादूगरों या ढोंगी लोगों द्वारा अपनायी जाने वाली युक्तियों के पीछे छिपे विज्ञान तथा उन रहस्यों को दिखाया जा रहा है, जिसे देखकर अक्सर लोग जालसाज लोगों के जाल में फंस जाते हैं। इसके अलावा प्रायोगिक गणित के जरिये यहां ज्यामिति की 90 प्रतिशत बारीकियों को आसानी से सीख सकते हैं। खानपान की चीजों में मिलावट की पहचान करने के लिए सरल और सस्ती वैज्ञानिक युक्तियों के बारे में भी लोगों को बताया जा रहा है, जिनमें बच्चे और बड़े समान रूप से रुचि ले रहे हैं।”
जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और जूलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पैवेलियन में भी लोगों का हुजूम देखने को मिल रहा है। जूलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पंडाल में पशु, पक्षियों और कीटों की सैकड़ों प्रजातियों के संरक्षित रूपों को देखकर लोग चकित थे। वहीं, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक डॉ राजिंदर कुमार ने बताया कि हर उम्र के लोग यहां आकर बड़ी उत्सुकता सवाल पूछ रहे हैं, जैसे- कोई जैविक पदार्थ जीवाश्म में कैसे तब्दील हो जाता है, चट्टानें कैसे बनती हैं और कार्बन डेटिंग कैसे की जाती है इत्यादि।
एलपीयू कैंपस में यह प्रदर्शनी छह बड़े पंडालों में करीब 15000 वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्र में लगी हुई है। करीब 20,000 स्कूली विद्यार्थी अपने अध्यापकों, प्रशिक्षकों, अभिभावकों के साथ इस प्रदर्शनी को देखने के देश के प्रमुख निरंतर पहुंच रहे हैं। प्राइड ऑफ इंडिया एक्स्पो भारतीय विज्ञान कांग्रेस का एक अहम हिस्सा है, जो छात्रों, शोधार्थियों, वैज्ञानिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को मंच प्रदान करती है। एलपीयू में 3-7 जनवरी तक चलने वाली इस प्रदर्शनी का उद्घाटन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ हर्ष वर्धन ने किया था। पिछले साल इंफाल में विज्ञान कांग्रेस के दौरान प्राइड ऑफ एक्स्पो का आयोजन किया गया था, जिसमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग को बेस्ट पैवेलियन का पुरस्कार मिला था। (इंडिया साइंस वायर)