चेन्नई के फल-सब्जियों मेंं कोलिस्टाइन प्रतिरोधी बैक्टीरिया के नमूने

  • चिकित्सीय क्षेत्र में कोलिस्टाइन (पॉलीमिक्सीन ई) को ‘पवित्र जल’ की संज्ञा दी जाती है क्योंकि बीमार व्यक्तियों के लिए यह अंतिम सहारा होता है। ऐसे में कोलिस्टाइन (Colistin) की प्रतिरोधकता विकसित होना निश्चित रूप से चिंता की बात है।
  • हालांकि विश्व में बैक्टीरिया में इस एंटीबायोटिक का प्रतिरोधकता विकसित होने से संबंधित शोध आलेख प्रकाशित होते रहे हैं। इसी क्रम में चेन्नई में भी इसके पाए जाने पर शोध प्रकाशित हुआ है।
  • द हिंदू के अनुसार ग्लोबल ऑफ ग्लोबल एंटीमाइक्रोबायल रेस्सिटैंस पत्रिका में अपोलो कैंसर अस्पताल चेन्नई व क्रिस्चन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर के शोधकर्त्ताओं का शोध आलेख प्रकाशित हुआ है जिसमें चेन्नई में 22 जगहों से लिए गए टमाटर व सेब के नमूनों में से 4604 प्रतिशत में कोलिस्टाइन का प्रतिरोधी बैक्टीरिया पाया गया है।

मुख्य स्रोत

  • फलों एवं सब्जियों के उपर्युक्त बैक्टीरिया से दूषित होने का मुख्य कारण मुर्गीपालन उद्योग है। पॉल्ट्री में वृद्धि कारक के रूप में कोलिस्टाइन का प्रयोग किया जाता है। मुर्गीपालन केंद्र के मल अपशिष्ट का उपयोग खेतों में उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इन्हीं क्षेत्रों में उगाए गए खाद्य का प्रतिदिन उपभोग करने से मानव के आंत पर बैक्टीरिया को हमला करने का मौका मिल जाएगा जिससे उस व्यक्ति में शक्तिशाली एंटीबायोटिक कोलिस्टाइन की प्रतिरोधकता विकसित हो जाएगा।
  • शोधकर्त्ताओं के मुताबिक भोजन को अच्छी तरह से पकाने से बैक्टीरिया मर जाता है परंतु रसोई का वह जगह तो उस बैक्टीरिया से संक्रमित हो ही जाएगा जहां वह खाद्य पदार्थ रखा होगा।

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