आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने 29 अगस्त 2018 को व्यापक योजना ‘महासागरीय सेवाओं, प्रौद्योगिकी, निगरानी, संसाधन प्रतिरूपण और विज्ञान: ओ-स्मार्ट (Ocean Services, Technology, Observations, Resources Modelling and Science: O-SMART)’ को मंजूरी दी ।
- 1623 करोड़ रुपये की कुल लागत की यह योजना 2017-18 से 2019-20 की अवधि के दौरान लागू रहेगी। इस येाजना में महासागर विकास से जुड़ी 16 उप-परियोजनाओं जैसे – सेवाएं, प्रौद्योगिकी, संसाधन, प्रेषण और विज्ञान कोशामिल किया गया है।
- ओ-स्मार्ट के अंतर्गत दी जाने वाली सेवाओं से तटीय और महासागरीय क्षेत्रों के अनेक क्षेत्रों जैसे – मत्स्य पालन, समुद्र तटीय उद्योग, तटीय राज्यों, रक्षा, नौवहन, बंदरगाहों आदि को आर्थिक लाभ मिलेगा। वर्तमान में पांच लाख मछुआरों को मोबाइल के जरिए रोजाना सूचना मिलती है, जिसमें मछली मिलने की संभावनाएं और समुद्र तट में स्थानीय मौसम की स्थिति की जानकारी शामिल है। इससे मछुआरों का तलाशी वाला समय बचेगा जिसके परिणाम स्वरूप ईंधन की बचत होगी।
- ओ-स्मार्ट के कार्यान्वयन से सतत विकास लक्ष्य -14 से जुड़े मुद्दों के समाधान में मदद मिलेगी, जिनका उद्देश्य महासागरों के इस्तेमाल, निरंतर विकास के समुद्री संसाधनों का संरक्षण करना है।
- यह योजना (ओ-स्मार्ट) नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) के विभिन्न पहलुओं के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक वैज्ञानिक और तकनीकी पृष्ठभूमि प्रदान करेगी।
- ओ-स्मार्ट योजना के अंतर्गत स्थापित आधुनिक पूर्व चेतावनी प्रणालियां, सुनामी, झंझावात जैसी समुद्री आपदाओं से प्रभावी तरीके से निपटने में मदद करेंगी।
- इस योजना के अंतर्गत विकसित प्रौद्योगिकियां भारत के आस-पास के समुद्रों से विशाल समुद्री सजीव और निर्जीव संसाधनोंको उपयोग में लाने में मदद करेंगी।
विवरण
- महासागरीय क्षेत्र में राष्ट्रीय हितों और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं वाली बहु-विषयक योजनाओं के कार्यान्वयन के महत्व को पहचानते हुए मंत्रालय ने व्यापक योजना (ओ-स्मार्ट) के एक हिस्से के रूप मेंवर्तमान योजनाओं को केन्द्र में रखकर विशेष रूप से जारी रखने का प्रस्ताव रखा है। चूंकि भविष्य की मांगों को पूरा करने के लिए जमीन पर पर्याप्त संसाधन नहीं हैं, भारत भी सतत तरीके से विशाल महासागरीय संसाधनों के उपयोगी और प्रभावशाली इस्तेमाल के लिए नीली अर्थव्यवस्था पर ध्यान दे रहा है, जिसके लिए महासागर विज्ञान के बारे में जानकारी, प्रौद्योगिकी के विकास और सेवाएं प्रदान करने की आवश्यकता होगी। साथ ही दीर्घकालिकविकास के लिए महासागरीय, समुद्री और समुद्री संसाधनों के संरक्षण और उसके स्थायी इस्तेमाल के लिए संयुक्त राष्ट्र स्थायी विकास लक्ष्य-14 (Sustainable Development Goal-14) को हासिल करने के संदर्भ में तटवर्ती अनुसंधान और समुद्री जैव विविधता वाली गतिविधियां जारी रखना जरूरी है। इसे (ओ-स्मार्ट) योजना के अंतर्गत शामिल किया गया है।
- योजना के अंतर्गत दी जाने वाली और विकसित महासागरीय परामर्श सेवाएं और प्रौद्योगिकियां दर्जनों क्षेत्रों की विकास गतिविधियों, भारत के तटवर्ती राज्यों सहित समुद्र तट के परिवेश के कामकाजमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ हीजीडीपी में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।
- इसके अलावा महासागरीय आपदाओं जैसे सुनामी, झंझावात आदि के लिए स्थापित आधुनिक पूर्व चेतावनी प्रणालियां भी भारत और हिंद महासागर के देशों को 24 घंटे सेवाएं प्रदान कर रही हैं, जिसे यूनेस्को द्वारा मान्यता दी गई है।
- अगले दो वर्षों के दौरान विचार किये जाने वाले महत्वपूर्ण विषयों में शामिल हैं। (i) महासागरीय निगरानी और प्रतिरूपण में वृद्धि(ii) मछुआरों के लिए महासागरीय सेवाओं में वृद्धि (iii) 2018 में समुद्र तटीय प्रदूषण की निगरानी के लिए समुद्र तट पर वेधशालाओं की स्थापना (iv) कावारात्ती में महासागर ताप ऊर्जा परिवर्तन संयंत्र (ओटीईसी) की स्थापना (v) तटीय अनुसंधान के लिए दो तटीय अनुसंधान पोतों का अधिग्रहण (vi) महासागरीय सर्वेक्षण जारी रखना और खनिज तथा सजीव संसाधनों का अन्वेषण(vii) गहरे समुद्र में खनन- गहरी खनन प्रणाली के लिएप्रौद्योगिकी विकसित करना (viii) मानव युक्त पनडुब्बियां और (ix) लक्षद्वीप में छह विलवणीकरण संयंत्रों की स्थापना।
पृष्ठभूमि
- नवम्बर, 1982 में बनाई गई महासागरीय नीति के विवरण के अनुसार मंत्रालय (i) महासागर सूचना सेवाओं का समूह प्रदान करने (ii) समुद्री संसाधनों को निरंतर उपायोग में लाने के लिए प्रौद्योगिकी विकसित करने (iii) अग्रिम श्रेणी के अनुसंधान को बढ़ावा देने और (iv) महासागरीय वैज्ञानिक सर्वेक्षण कराने के लिएमहासागर विकास के क्षेत्र में अनेक बहुविषयक परियोजनाओंको लागू कर रहा है।
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के कार्यक्रमों/नीतियों को उसके स्वायत्ताशासी संस्थानों यानी राष्ट्रीय महासागरीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय राष्ट्रीय महासागरीय सूचना सेवा केन्द्र, राष्ट्रीय अंटार्कटिक और महासागरीय अनुसंधान केन्द्र, तथा संबद्ध कार्यालय, समुद्र तट सजीव संसाधन और पारिस्थितिकी केन्द्र, राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केन्द्र और अन्य राष्ट्रीय संस्थानों के जरिए लागू किया जा रहा है। आवश्यक अनुसंधान सहायता प्रदान करने के लिए अनुसंधान पोतों का बेड़ा यानी प्रौद्योगिकी प्रदर्शन करने वाले पोत सागरनिधि, समुद्र विज्ञानअनुसंधानपोत सागर कन्या, मत्स्य पालन और समुद्र विज्ञान अनुसंधान पोत सागर संपदा तथा तटीय अनुसंधान पोत सागर पूर्वी को प्राप्त किया गया है।
- अवधि के दौरान, विभिन्न कार्यक्रमों के अंतर्गत अनेक प्रमुख उपलब्धियां प्राप्त की गई हैं, जिनमें पीएमएन के अन्वेषण के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (आईएसबीए) द्वारा आवंटित हिन्द महासागर के केन्द्र में 75000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में पोली-मेटेलिक नोडयूल्स (पीएमएन-PMN) के गहरे समुद्र में खनन के बारे में पथ प्रदर्शक दर्जा प्रदान करना, हाईड्रो थरमल सल्फाइड के अन्वेषण के लिए हिंद महासागर में 10,000 किलोमीटर आवंटन शामिल है।
- मंत्रालय विभिन्न तटीय साझेदारों जैसे मछुआरों, तटीय राज्यों, अपतटीय उद्योग, नौसेना, तटरक्षक आदि को समुद्र से जुड़ी अनेक सूचना सेवाएं प्रदान कर रहा है। हिंद महासागर क्षेत्र के पड़ोसी देशों को इनमें से कुछ सेवाएं दी गई हैं।
- भारत की महासागर सम्बन्धी गतिविधियों का विस्तार अब आर्कटिक से अंटार्कटिक क्षेत्र तक हो गया है, जिसमें बड़ा महासागरीय क्षेत्र शामिल है, जिस पर यथास्थान व्यापक क्षेत्र में और उपग्रह आधारित वेधशालाओं के जरिए निगरानी रखी जा रही है। भारत ने समुद्री आपदाओं जैसे सुनामी, समुद्री तूफान, झंझावातआदि के लिए आधुनिक पूर्व चेतावनी प्रणालियां स्थापित की हैं।
- भारत अंटार्कटिक संधि प्रणाली पर हस्ताक्षर कर चुका है और संसाधनों के उपयोग के लिए अंटार्कटिक समुद्र तटीयआजीविका संसाधन के संरक्षण आयोग (सीसीएएमएलआर) में शामिल हो चुका है।
- महासागरीय संसाधनों के इस्तेमाल की प्रौद्योगिकियों का विकास विभिन्न चरणों में है। इनमें से कुछ जैसे द्वीपों के लिए कम तापमान वाली तापीय विलवणीकरण प्रणाली काम कर रही है। इसके अलावा मंत्रालय तटरेखा में बदलावों और समुद्र तटीय पारिस्थितिकी प्रणाली सहित भारत के तटीय जल की सेहत की निगरानी कर रहा है। अन्य जैसे दूर से संचालित पनडुब्बी और मृदा परीक्षक, दोनों 6000 मीटर पानी की गहराई तक कार्य करने में सक्षम हैं, कम गहरी खनन प्रणाली जैसी कुछ अग्रणी प्रौद्योगिकियां विकसित की गई हैं।
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