हमेशा प्रासंगिक बने रहेंगे डॉ. विक्रम साराभाई

  • नवनीत कुमार गुप्ता (Twitter handle: @NavneetKumarGu8)

नई दिल्ली, 13 अगस्त (इंडिया साइंस वायर): किसी देश के विकास में वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। हमारे देश में भी अनेक वैज्ञानिक हुए हैं, जिनके योगदान से देश विकास के पथ पर आगे बढ़ा है। ऐसे वैज्ञानिकों में डॉ. विक्रम अंबालाल साराभाई का नाम प्रमुख है। डॉ. विक्रम साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक के रूप में जाना जाता है। वर्ष 2019 को डॉ विक्रम साराभाई के जन्मशताब्दी वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है।

डॉ. विक्रम साराभाई का जन्म अहमदाबाद में 12 अगस्त 1919 को हुआ था। गुजरात कॉलेज से इंटरमीडिएट तक विज्ञान की शिक्षा पूरी करने के बाद वे 1937 में इंग्लैंड चले गए, जहां उन्होंने कैम्ब्रिज में अध्ययन किया। वर्ष 1940 में उन्होंने वहां से भौतिक विज्ञान में ट्राइपोज की डिग्री प्राप्त की। द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने के समय वे भारत लौट आए और बंगलौर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में अपनी सेवाएं देने लगे। यहां उन्होंने प्रख्यात वैज्ञानिक सर सी.वी. रामन के मार्गदर्शन में ब्रहांडीय विकिरणों पर अनुसंधान कार्य किया। उनका पहला शोध आलेख ”टाइम डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ कास्मिक रेज़” भारतीय विज्ञान अकादमी की पत्रिका में प्रकाशित हुआ। वर्ष 1940 से 1945 के दौरान साराभाई के शोध कार्य में बंगलौर और कश्मीर-हिमालय में उच्च स्तरीय केन्द्र के गेइजर-मूलर गणकों पर ब्रहांडीय विकिरण के समय-रूपांतरणों का अध्ययन शामिल था।

द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के समय वे ब्रहांडीय विकिरण पर केंद्रित भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में उच्च अध्ययन के लिए कैम्ब्रिज गए। वर्ष 1947 में उष्णकटीबंधीय अक्षांक्ष (ट्रॉपीकल लैटीच्यूड्स) में कॉस्मिक रे पर अपने शोध कार्य के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डाक्ट्ररेट की उपाधि प्रदान की गयी। भारत लौटने पर साराभाई ने ब्रहांडीय विकिरण भौतिक विज्ञान पर अपना अनुसंधान कार्य जारी रखा। भारत में उन्होंने अंतर-भूमंडलीय अंतरिक्ष, सौर-भूमध्यरेखीय संबंध और भू-चुम्बकत्व पर अध्ययन किया। डॉ. विक्रम साराभाई के 86 वैज्ञानिक शोध पत्र राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए।

 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की नींव रखने के लिए डॉ. साराभाई के योगदान को मुख्य रूप से याद किया जाता है। रूस द्वारा प्रथम अंतरिक्ष अभियान स्पूतनिक के प्रमोचन के बाद साराभाई ने भारत सरकार को अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्व से परिचित कराया, जिससे भारत ने भी अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को आरंभ किया। अंतरिक्ष अभियान के पीछे साराभाई के विचार आज भी प्रासंगिक लगते हैं, जिसमें उन्होंने कहा है- “ऐसे कुछ लोग हैं, जो विकासशील राष्ट्रों में अंतरिक्ष गतिविधियों की प्रासंगिकता पर सवाल उठाते हैं। हमारे सामने उद्देश्य की कोई अस्पष्टता नहीं है। हम चंद्रमा या ग्रहों की गवेषणा या मानव सहित अंतरिक्ष-उड़ानों में आर्थिक रूप से उन्नत राष्ट्रों के साथ प्रतिस्पर्धा की कोई कल्पना नहीं कर रहें हैं। लेकिन, हम आश्वस्त हैं कि अगर हमें राष्ट्रीय स्तर पर, और राष्ट्रों के समुदाय में कोई सार्थक भूमिका निभानी है, तो हमें मानव और समाज की वास्तविक समस्याओं के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियों को लागू करने में किसी से पीछे नहीं रहना चाहिए।”

आरंभ में कुछ भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा भारतीय अंतरिक्ष अभियानों पर कई सवाल उठाए गए थे। लेकिन, साराभाई के प्रयासों और विश्व स्तर पर अंतरिक्ष अभियानों की अहमियत को देखते हुए अनेक वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष कार्यक्रमों के महत्व को समझा और साराभाई का साथ दिया। भारतीय परमाणु विज्ञान कार्यक्रम के जनक के रूप में विख्यात डॉ. होमी जहाँगीर भाभा ने भारत में प्रथम रॉकेट प्रमोचन केंद्र की स्थापना में डॉ. साराभाई का सहयोग किया था। उसी समय अंतरिक्ष संबंधी प्रक्षेपण के लिए थुम्बा में एक केंद्र की स्थापना की गयी। यह केंद्र मुख्यतः भूमध्य रेखा से उसकी निकटता की दृष्टि से, अरब सागर के तट पर, तिरुवनंतपुरम के निकट स्थापित किया गया।

साराभाई को एक संस्थान निर्माता के रूप में भी याद किया जाता है। उन्होंने देश के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक संस्थाओं की स्थापना में अहम भूमिका निभाई। साराभाई ने देश में विज्ञान के संस्थानों की स्थापना में हर संभव मदद की। भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला इस दिशा में उनका पहला कदम था। 11 नवंबर, 1947 को अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला की बुनियाद रखी गयी। उस समय उनकी उम्र केवल 28 वर्ष थी। विक्रम साराभाई ने 1966 से 1971 तक भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला में कार्य किया। डॉ. विक्रम साराभाई अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रहे। वह परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष भी रहे थे।

उन्होंने अहमदाबाद में स्थित कई उद्योगपतियों के साथ मिलकर भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके प्रयासों से स्थापित कुछ प्रमुख संस्थानों में- वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रॉन प्रॉजेक्ट, कोलकाता,फास्टर ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (एफबीटीआर), कल्पक्कम, इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल), हैदराबाद एवं यूरेनियम कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल), जादूगुडा, हैं। डॉ. विक्रम साराभाई सभी के लिए विज्ञान की शिक्षा को अनिवार्य मानते थे। साराभाई मानते थे कि विज्ञान जीवन की अनेक समस्याओं को हल करने की क्षमता रखता है। उनके प्रयासों से 1966 में सामुदायिक विज्ञान केंद्र की स्थापना अहमदाबाद में की गई। आज यह केंद्र विक्रम साराभाई सामुदायिक विज्ञान केंद्र कहलाता है।

डॉ. विक्रम साराभाई ने अंतरिक्ष के अलावा अन्य विभिन्न क्षेत्रों, जैसे- वस्त्र, भेषज, आणविक ऊर्जा और इलेक्ट्रॉनिक्स में भी अहम योगदान दिया। डॉ. साराभाई विज्ञान के अलावा सांस्कृतिक गतिविधियों में भी गहरी रुचि रखते थे। एक वैज्ञानिक होने के साथ-साथ साराभाई कला-प्रेमी के रूप में भी याद किए जाते हैं। अपनी पत्नी मृणालिनी के साथ मिलकर उन्होंने मंचन कलाओं की संस्था ‘दर्पण’ का गठन किया था। वे संगीत, फोटोग्राफी, पुरातत्व, ललित कलाओं और अन्य अनेक क्षेत्रों से जुड़े रहे। उनकी बेटी मल्लिका साराभाई भी भारतनाट्यम और कुचीपुड़ी की सुप्रसिद्ध नृत्यांग्ना के रूप जानी जाती हैं।

साराभाई को देश-विदेश के अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। वर्ष 1962 में शांति स्वरूप भटनागर मेडल प्रदान किया गया। सन् 1966 में साराभाई को विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया। 30 दिसम्बर, 1971 को डॉ. साराभाई का केरल के कोवलम, तिरूवनंतपुरम में निधन हुआ। इस महान वैज्ञानिक के सम्मान में तिरूवनंतपुरम में स्थापित थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (टीईआरएलएस) और संबद्ध अंतरिक्ष संस्थाओं का नाम बदल कर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र रख दिया गया। इस संस्थान की पहचान आज भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक प्रमुख अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र के रूप में है। (इंडिया साइंस वायर)

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