- चेन्नई स्थित भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री (Registrar of Geographical Indication) ने आधिकारिक रूप से पुष्टि की है कि ओडिशा में रसगुल्ला की भी उत्पत्ति हुई है।
- ओडिशा लघु उद्योग निगम लिमिटेड को “ओडिशा रसगुल्ला” (Odisha Rasgola) के लिए जीआई टैग दिया गया है। हालांकि, इसे ‘ओडिशा’ के साथ टैग किया गया है, जो इसे ‘बांग्लार रसगुल्ला’ से अलग करता है। नवंबर 2017 में पश्चिम बंगाल को ‘बांग्लार रसगुल्ला’ के लिए जीआई टैग प्राप्त हुआ था।
- जीआई के रजिस्ट्रार को सौंपे गए आवेदन के अनुसार, ‘ओडिशा रसगुल्ला’ चीनी सिरप में पकाया जाने वाला छेना (पनीर) से बना ओडिशा राज्य की मिठाई है, जो कि बहुत नरम और रसदार है और दांतों के दबाव के बिना निगल लिया जा सकता है।
- ओडिशा रसगुल्ला का रंग विकास बहुत विशिष्ट है, जहां बाहरी रंग को शामिल किए बिना, चीनी के कारमेलिसाइजेशन के सिद्धांत का उपयोग करके विभिन्न रंग के रसगुल्ले तैयार किए जाते हैं।
- आवेदन के अनुसार, ओडिशारसगुल्ला का उत्पादन क्षेत्र सभी 30 जिलों को दिखाया गया है।
रसगुल्ला का संदर्भ
- इसका उल्लेख भितरछा सेबारा नियम में किया गया है और रिकॉर्ड ऑफ राइट्स, भाग, III, द उड़ीसा गजट, कानून विभाग अधिसूचना दिनांक 12 अक्टूबर, 1955 में प्रकाशित किया गया है।
- रसगुल्ला का संदर्भ 15 वीं शताब्दी के अंत में बलराम दास द्वारा लिखित ओडिया रामायण में मिलता है। बलराम दास की रामायण को दांडी रामायण या जगमोहन रामायण के रूप में जाना जाता है क्योंकि इसे पुरी मंदिर के जगमोहन में रचा और गाया गया था।
- एक अन्य धार्मिक ग्रन्थ ‘अजोध्या कांड’ में, रसगुल्ला सहित छेना और छेना आधारित उत्पादों का विस्तृत वर्णन मिलता है।
- ओडिया लेखक फकीर मोहन सेनापति ने 27 अगस्त, 1892 को उत्कल दीपिका द्वारा प्रकाशित अपने लेखन ‘उत्कल भ्रामणम’ में उन दिनों ओडिशा में रसगुल्ला के भरपूर उपयोग के बारे में उल्लेख किया था।
- 14 दिसंबर, 1893 को कवि दामोदर पट्टनायक द्वारा लिखित साप्ताहिक “इंद्रधनु” नामक एक कविता प्रकाशित हुई थी। कविता कटक के प्रसिद्ध, ऐतिहासिक मेले, बाली जात्रा (इंडोनेशिया के बाली द्वीप की यात्रा) का आँखों देखा साक्ष्य है और जिसमे उल्लेख किया गया है कि मिठाई की दुकानों में रसगुल्ला और अन्य मिठाइयों की उपस्थिति आकर्षक लग रही थीं।
पश्चिम बंगाल बनाम ओडिशा
- ओडिशा और पश्चिम बंगाल दोनों ही रसगुल्ला की उत्पत्ति का दावा करते रहे हैं।
- पश्चिम बंगाल का दावा है कि रसगुल्ले का आविष्कार 19 वीं शताब्दी में नोबिन चंद्र दास ने कोलकाता में अपने बागबाजार निवास में किया था।
- ऐतिहासिक अभिलेख प्रस्तुत करते हैं कि ‘ओडिशा रसगुल्ला’ विश्व प्रसिद्ध पुरी जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा है। ओडिशा का मानना है कि निलाद्री बिजे की परंपरा जहां रसगुल्ला चढ़ाया जाता है, 12 वीं शताब्दी में शुरू किया गया था।
भौगोलिक संकेत के बारे में
- एक भौगोलिक संकेत या जीआई टैग उन उत्पादों को दिया जाता है जिनकी एक विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति होती है और उस उत्पत्ति के कारण उसकी गुण या प्रतिष्ठा होती है। इस तरह का दर्जा गुणवत्ता और विशिष्टता की मान्यता है जो अनिवार्य रूप से परिभाषित भौगोलिक इलाके में इसकी उत्पत्ति के लिए जिम्मेदार है।
- दार्जिलिंग चाय, महाबलेश्वर स्ट्रॉबेरी, जयपुर की ब्लू पोटरी, बनारसी साड़ी और तिरुपति लड्डू कुछ प्रमुख जीआई उत्पाद हैं।
जीआई उत्पाद मिलने से दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले किसी उत्पाद विशेष से जुड़े कारीगरों, किसानों, और बुनकरों की पूरक आय में वृद्धि हो सकती है। - भारत में जीआई टैग प्राप्त करने वाला पहला उत्पाद 2004 में दार्जिलिंग चाय थी।