- ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ (National Commission on Backward Classes: NCBC) को सांविधानिक दर्जा देने वाला 123वां संविधान संशोधन विधेयक संसद् से पारित होने के पश्चात सरकार ने इसके गठन से संबंधित प्रक्रिया आरंभ की है। इस क्रम में इसकी संरचना से संबंधित 1996 के कानून की जगह एक नया कानून जारी किया है जिसमें इसके अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति से संबंधित व्यवस्था है।
- पुराने कानून में यह व्यवस्था थी कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त न्यायाधीश होगा। उनके अलावा तीन अन्य सदस्य होंगे। नए कानून के अनुसार आयोग का अध्यक्ष सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों से ताल्लुक रखने वाला सामाजिक-राजनीतिक कार्यकत्ता होगा। इस आयोग का उपाध्यक्ष एवं अन्य तीन सदस्य होंगे। वे भी सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों से होंगे। इनमें एक महिला सदस्या भी होंगी।
- अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्षों का होगा और ये अधिकतम दो कार्यकालों के लिए नियुक्त हो सकते हैं।
- ज्ञातव्य है कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को सांविधानिक दर्जा देने वाला 123वां संविधान संशोधन विधेयक 6 अगस्त, 2018 को राज्यसभा से पारित हुआ था। लोकसभा ने इस संशोधन विधेयक को 2 अगस्त, 2018 को पारित कर दिया था।
- ज्ञातव्य है कि भारत में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का पहली बार गठन 1993 के एक्ट के द्वारा हुआ था। परंतु इसे राष्ट्रीय अनुसूचित जाति या जनजाति आयोग की तरह सांविधानिक दर्जा प्राप्त नहीं था।
- इस संशोधन के द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338बी आयोग को जांच एवं निगरानी के अधिकार दिए गए हैं तथा इसे सिविल कोर्ट के जैसा अधिकार होगा।
- अन्य पिछड़े वर्गों से जुड़े नीतियों के मामले में केंद्र एवं राज्यों को इस आयोग से सलाह लेना होगा।
- किसी मुद्दे की जांच के लिए आयोग को किसी भी व्यक्ति को उपस्थित होने के लिए समन जारी करने का अधिकार होगा।