- लोकसभा ने 22 जुलाई 2019 को सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित कर दिया। इस संशोधन में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 में संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया है, ताकि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों का कार्यकाल, वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें वही होंगी, जैसा केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाए।
- संशोधन के तहत केंद्रीय सूचना आयुक्तों एवं राज्य सूचना आयुक्तों का कार्यकाल अब केंद्र सरकार तय करने का प्रावधान किया गया है। मूल एक्ट में इनका कार्यकाल पांच वर्ष या उसके 65 वर्ष की आयु होने तक तय किया गया है।
- संशोधन के तहत केंद्रीय सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्त के वेतन एवं भत्ते तथा सेवा शर्तें अब केंद्र सरकार तय करेगी। मूल एक्ट में वेतन एवं भत्ते मुख्य चुनाव आयुक्त के समान है। सरकार के मुताबिक सूचना आयुक्तों को मुख्य चुनाव आयुक्त के बराबर दर्जा देना, उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर लाने के समान है। जबकि केंद्रीय सूचना आयुक्त द्वारा पारित आदेश को उच्च न्यायालय में भी चुनौती दी जा सकती है। सरकार का तर्क है कि इसी खामी को दूर करने के लिए मौजूद संशोधन किया जा रहा है।
- केन्द्रीय कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह के मुताबिक सरकार ने आरटीआई की संख्या कम करने के लिए सरकारी विभागों को अधिकतम जानकारी देने के विस्तार को सरकार ने स्वत: प्रोत्साहित किया है। इसके अलावा सरकार नागरिकों की भागीदारी के माध्यम से शिकायतों के निवारण पर ध्यान दे रही है। इसने आरटीआई के प्रमुख सिद्धांत को मजबूत किया है और पिछले पांच वर्षों के दौरान आरटीआई आवेदनों के लंबित मामले काफी कम हुए हैं।
- उन्होंने बताया कि 2005 के मूल आरटीआई अधिनियम के अनुसार सूचना आयुक्तों के संबंध में नियम लागू करने का अधिकार न तो केंद्र न राज्य और न ही समवर्ती सूची के दायरे में आता है, इसलिए राज्य सूचना आयोगों के संबंध में भी कानून बनाना केंद्र सरकार के शेष अधिकारों के अंतर्गत आता है।
- सूचना आयोगों और निर्वाचन आयोगों की सेवा शर्तों की तुलना करने के मुद्दे का जवाब देते हुए डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि केन्द्रीय सूचना आयोग को राज्य सूचना आयोग सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के प्रावधानों के तहत स्थापित वैधानिक निकाय हैं। इसलिए भारत के निर्वाचन आयोग तथा केन्द्र और राज्य सूचना आयोग के अधिदेश अलग-अलग हैं। इसी के अनुसार इनकी स्थिति और सेवा शर्तों को तर्कसंगत बनाने की जरूरत है। इसलिए सूचना आयुक्तों की नियुक्ति संबंधी मूल अधिनियम में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। इसलिए सूचना आयुक्तों की स्वायत्ता कम करने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता है।