केंद्रीय कैबिनेट ने तुरंत तीन बार तलाक (talaq-e-biddat) को अपराध ठहराने वाले विधेयक में संशोधन अध्यादेश को मंजूरी दे दी। राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने 19 सितंबर, 2018 को ही इस अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिया।
इस अध्यादेश के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैंः
- इस अध्यादेश का नाम है ‘मुस्लिम महिला (निकाह के अधिकार का संरक्षण)अध्यादेश 2018’ (Muslim Women (Protection of Rights of Marriage) Ordinance 2018)।
- यह अध्यादेश जम्मू-कश्मीर को छोड़कर सारे देश में लागू होगा।
- अध्यादेश के तहत त्वरित तीन तलाक (बोलकर या लिखित रूप में) को गैर-कानूनी व विधिशून्य करार दिया गया है और ऐसा करने वाले पति को तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान किया गया है। यह सजा बढ़ाई जा सकती है।
- सामान्य कानूनों की रहते हुए भी यदि पति द्वारा मुस्लिम महिला को तलाक दिया जाता है तो उसकी पत्नी व बच्चे जीवन निर्वाह भत्ते का अधिकारी होगी। इस भत्ते का निर्धारण न्यायिक दंडाधिकारी द्वारा किया जाएगा।
पति द्वारा तलाक की घोषणा के बाद भी मुस्लिम महिला नाबालिग बच्चे का अभिभावक होंगी। - यदि तलाक के पश्चात मुस्लिम महिला द्वारा पुलिस अधिकारी को इत्तला दी जाती है तो यह संज्ञेय प्रकृति का तलाक होगा।
- त्वरित तीन तलाक गैर-जमानती अपराध होगा। पुलिस, पुलिस स्टेशन में जमानत नहीं दे सकती परंतु आरोपी मुकदमा शुरू होने से पहले जमानत के लिए न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष आवेदन दे सकता है।
अध्यादेश की जरूरत क्यों?
- केंद्रीय विधि मंत्रलय के अनुसार अगस्त 2017 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तीन तलाक को प्रतिबंधित के बावजूद इसके 201 मामले सामने आए हैं। जनवरी 2017 से 13 सितंबर तक तीन तलाक के 430 मामले सामने आए हैं। इसका मतलब यह है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी तीन तलाक जारी है। इस हेतु एक विधेयक लोकसभा में पारित हो चुका है परंतु अभी राज्यसभा में लंबित है।