- सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायामूर्ति (सेवानिवृत्त) श्री पिनाकी चंद्र घोष को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय लोकपाल चयन समिति ने देश का प्रथम लोकपाल के रूप में नामित किया (द हिंदू, 18 मार्च, 2019)।
- लोकपाल चयन समिति के अन्य सदस्य थेः मुख्य न्यायमूर्ति श्री रंजन गोगोई, लोकसभाध्यक्षा सुमित्रा महाजन व न्यायविद् मुकुल रोहतगी। लोकसभा में विपक्ष के नेता श्री मल्लिकार्जुन खर्गे भी इस समिति के सदस्य थे परंतु उन्होंने चयन समिति की कार्रवाई में हिस्सा नहीं लिया।
- इससे पूर्व न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में आठ सदस्यीय लोकपाल खोज कमेटी का गठन किया गया था।
लोकपाल एवं लोकायुक्त एक्ट 2011
उल्लेखनीय है कि कुछ श्रेणियों के लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए केंद्रीय स्तर पर लोकपाल एवं राज्य स्तर पर लोकायुक्त की नियुक्ति हेतु लोकपाल एवं लोकायुक्त एक्ट वर्ष 2013 में पारित किया गया था। लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक 2011 को राज्यसभा ने 17 दिसंबर, 2013 को और लोकसभा ने 17 दिसंबर, 2013 को पारित किया था । इस विधेयक् की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-
- केन्द्र में लोकपाल और राज्य स्तर पर लोकायुक्त होंगे
- लोकपाल में एक अध्यक्ष और अधिकतम आठ सदस्य होंगे, जिनमें से 50 प्रतिशत न्यायिक सदस्य होंगे
- लोकपाल के 50 प्रतिशत सदस्य अनुसूचित जाति /जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों और महिलाओं में से होंगे
- लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों का चयन एक चयन समिति द्वारा किया जाएगा, जिसके सदस्य होंगे-
– प्रधानमंत्री
– लोकसभा अध्यक्ष
– लोकसभा में विपक्ष के नेता
– भारत के प्रधान न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित उच्चतम न्यायालय का वर्तमान न्यायाधीश
– चयन समिति के पहले चार सदस्यों द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामित प्रख्यात विधिवेत्ता - प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाया गया है
- सभी श्रेणियों के सरकारी कर्मचारी लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में आएंगे
- विदेशी अनुदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए) के संदर्भ में विदेशी स्रोत से 10 लाख रूपए वार्षिक से अधिक का अनुदान प्राप्त करने वाले सभी संगठन लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में होंगे
- ईमानदार और सच्चे सरकारी कर्मचारियों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की गई है
- सीबीआई सहित किसी भी जांच एजेंसी को लोकपाल द्वारा भेजे गए मामलों की निगरानी करने और निर्देश देने का लोकपाल को अधिकार होगा
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक उच्च अधिकारप्राप्त समिति सीबीआई के निदेशक के चयन की सिफारिश करेगी
- अभियोजन निदेशक की अध्यक्षता में अभियोजन निदेशालय होगा, जो पूरी तरह से निदेशक के अधीन होगा
- सीबीआई के अभियोजन निदेशक की नियुक्ति केन्द्रीय सतर्कता आयोग की सिफारिश पर की जाएगी।
- लोकपाल द्वारा सीबीआई को सौंपे गए मामलों की जांच कर रहे अधिकारियों का तबादला लोकपाल की मंजूरी से होगा
- विधेयक में भ्रष्टाचार के जरिए अर्जित संपत्ति की कुर्की करने और उसे जब्त करने के प्रावधान शामिल किए गए हैं, चाहे अभियोजन की प्रक्रिया अभी चल रही हो
- विधेयक में प्रारंभिक पूछताछ, जांच और मुकदमें के लिए स्पष्ट समय-सीमा निर्धारित की गई है और इसके लिए विधेयक में विशेष न्यायालयों के गठन का भी प्रावधान है
- अधिनियम के लागू होने के 365 दिनों के अंदर राज्य विधानसभाओं द्वारा कानून के माध्यम से लोकायुक्तों की नियुक्ति की जानी अनिवार्य होगी