केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 20 नवंबर 2019 को औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक, 2019 ( Industrial Relations Code, 2019 ) को संसद में पेश करने को मंजूरी दे दी है।
लाभ :
- दो सदस्यीय ट्रिब्यूनल (एक सदस्य के स्थान पर) के गठन के जरिए एक ऐसी अवधारणा शुरू की गई है, जिससे कुछ महत्वपूर्ण मामलों पर संयुक्त रूप से अधिनिर्णय किया जाएगा, जबकि शेष मामलों पर एकल सदस्य द्वारा अधिनिर्णय लिया जाएगा, जिससे मामलों को तेजी से निपटाया जा सकेगा।
- ‘एक्जिट’ प्रावधानों (छंटनी इत्यादि से संबंधित) में लचीलापन आएगा, जिसके तहत उपयुक्त सरकार की पूर्व मंजूरी के लिए आवश्यक आरंभिक सीमा को 100 कर्मचारियों के स्तर पर यथावत रखा गया है। हालांकि, इसमें एक प्रावधान भी जोड़ा गया है, जिसके तहत अधिसूचना के जरिए ‘कर्मचारियों की इस तरह की संख्या’ को बदला जा सकता है।
- री-स्किलिंग फंड, जिसका उपयोग उस तरीके से कामगारों को ऋण देने में किया जाएगा, जिसे अभी निर्धारित किया जाना बाकी है।
- निश्चित अवधि वाले रोजगार की परिभाषा। इसके तहत कोई नोटिस अवधि नहीं होगी तथा छंटनी पर मुआवजे का भुगतान शामिल नहीं है।
- जुर्माने के रूप में पेनाल्टी से जुड़े विवादों पर अधिनिर्णय के लिए सरकारी अधिकारियों को अधिकार दिए जाएंगे, जिससे ट्रिब्यूनल का कार्यभार घट जाएगा।
पृष्ठभूमि :
औद्योगिक संबंध संहिता का मसौदा निम्नलिखित तीन केन्द्रीय श्रम अधिनियमों के संबंधित प्रावधानों के विलय, सरलीकरण एवं उन्हें तर्कसंगत बनाने के बाद तैयार किया गया है:
1. ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926
2. औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946
3. औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947