के. कस्तूरीरंगन समिति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर मसौदा प्रस्तुत किया

  • डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति ने 31 मई 2019 को नई दिल्ली में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री, श्री रमेश पोखरियाल निशंक और मानव संसाधन राज्यमंत्री श्री संजय शामराव धोत्रे के सामने प्रस्तुत किया।
  • भारत सरकार ने पहले से ही एक नई शिक्षा नीति को तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी ताकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, नवाचार और अनुसंधान के संबंध में जनसंख्या की बदलती हुई आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। उसका उद्देश्य छात्रों को आवश्यक कौशल और ज्ञान से युक्त करना तथा विज्ञान, प्रौद्योगिकी, शिक्षाविदों और उद्योग में जनशक्ति की कमी को समाप्त करके भारत को ज्ञान की एक महाशक्ति बनाने का लक्ष्य हासिल करना था।
  • वर्ष 1992 में शिक्षा पर मौजूदा राष्ट्रीय नीति, 1986 में संशोधन किया गया जिसके माध्यम से विस्तृत युवा आबादी की समकालीन जरूरतों और भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक बदलाव किए गए।
  • नई शिक्षा नीति के क्रमिक विकास हेतु एक समिति’ का गठन, स्वर्गीय श्री टी.एस. सुब्रमण्यन, पूर्व कैबिनेट सचिव, की अध्यक्षता में किया गया, जिन्होंने अपना रिपोर्ट मई, 2016 को सुपूर्द किया। इस रिपोर्ट के आधार पर, मंत्रालय द्वारा ‘सम इमपुटस फ़ॉर द ड्राफ्ट नेशनल एजुकेशन पॉलिसी, 2016’ को तैयार किया गया।

प्रस्ताव

  • यह रिपोर्ट अगले 20 वर्षों की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार की गई थी। यह ड्राफ्ट नेशनल एजुकेशन पॉलिसी, 2019 अभिगम्यता, निष्पक्षता, गुणवत्ता, वहनयोग्यता और जवाबदेही के आधारभूत संरचना पर बनी हुई है। समिति ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय (एमओई) रखने का भी प्रस्ताव रखा है।
  • स्कूली शिक्षा में, अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन (ईसीसीई) के साथ पाठयक्रम और शैक्षणिक संरचना को स्कूली शिक्षा के अभिन्न अंग के रूप में शामिल करके एक बहुत बड़े पुनर्गठन का प्रस्ताव रखा गया है।
  • समिति ने 3 वर्ष से लेकर 18 वर्ष के बच्चों को शामिल करने के लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 को भी विस्तृत करने की सिफारिश की है।
  • बच्चों के ज्ञानात्मक और सामाजिक-भावनात्मक विकास के चरणों के आधार पर, एक 5 + 3 + 3 + 4 रूपी पाठयक्रम और शैक्षणिक संरचना: मूलभूत चरण (आयु 3-8 वर्ष); 3 साल का पूर्व-प्राथमिक ग्रेड 1-2; प्रारंभिक चरण (8-11 वर्ष), ग्रेड 3-5; मध्य चरण (11-14 वर्ष), ग्रेड 6-8 और माध्यमिक चरण (14-18 वर्ष), ग्रेड 9-12।
  • विद्यालयों के परिसरों को फिर से व्यवस्थित किया जाएगा। इस स्कूली शिक्षा पाठ्यक्रम सामग्री के भार को कम करने के प्रयासों की बात कही गई है। सीखने वाले क्षेत्रों में, पाठ्यक्रम, सह-पाठयक्रम या पाठ्येतर क्षेत्रों के हिसाब से कोई भी कठिन अलगाव पैदा नहीं किया जाएगा और कला, संगीत, शिल्प, खेल, योग, सामुदायिक सेवा आदि समेत सभी विषय पाठयक्रम शामिल होंगे। इस माध्यम से एक सक्रिय शिक्षाशास्त्र को बढ़ावा दिया जाएगा जो मूल क्षमताओं और जीवन कौशल के विकास पर ध्यान केंद्रित करेगा इसमें 21 वीं सदी का कौशल विकास भी शामिल है।
  • समिति ने स्तरहीन शिक्षक-शिक्षण संस्थानों को बंद करने और सभी शिक्षण तैयारी/ शिक्षा कार्यक्रमों को बड़े बहुविषयक विश्वविद्यालयों/ कॉलेजों में स्थानांतरित करके शिक्षक शिक्षण के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बदलाव का भी प्रस्ताव रखा है। 4-वर्षीय एकीकृत चरण वाले विशिष्ट बी.एड. कार्यक्रम के माध्यम से शिक्षकों को अंततः न्यूनतम डिग्री की योग्यता प्राप्त हो सकेगी।
  • उच्च शिक्षा के क्षेत्र में, तीन प्रकार के उच्च शिक्षण संस्थानों के पुनर्गठन की योजना भी प्रस्तावित है- टाइप 1: विश्व स्तरीय अनुसंधान और उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षण टाइप 2: अनुसंधान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के साथ ही विषयों में उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षण पर ध्यान केंद्रित करना। यह कार्यक्रम दो मिशनों द्वारा संचालित होंगा- मिशन नालंदा और मिशन तक्षशिला। 3 या 4 साल की अवधि के अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम (जैसे बीएससी, बीए, बीकॉम, बीवीओसी) की पुन:संरचना होगी और इसमें कई निर्गम और प्रवेश के विकल्प उपलब्ध होंगे।
  • सभी प्रकार के शैक्षणिक पहलों और कार्यक्रमों संबंधी क्रियाकलापों के समग्र और एकीकृत कार्यान्वयन को सक्षम बनाने के लिए तथा केंद्र और राज्यों के बीच चलने वाले प्रयासों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए एक नया शीर्ष निकाय, राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का प्रस्ताव दिया गया है। उच्च शिक्षा में अनुसंधान क्षमता के निर्माण के लिए और एक मजबूत अनुसंधान संस्कृति बनाने के लिए एक सर्वोच्च निकाय, नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के निर्माण की योजना भी प्रस्तावित है।
  • मान दण्ड स्थापित करने, कोष उपलब्ध कराने, प्रमाणित करने और विनियमित करने के चार कार्यों को पृथक किया जाना चाहिए और स्वतंत्र निकायों द्वारा संचालित किया जाना चाहिए। व्यावसायिक शिक्षा सहित सभी उच्च शिक्षा के लिए एकमात्र नियामक-राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक प्राधिकरण होगा। प्रस्तावित एनएएसी के द्वारा ईको-सिस्टम का निर्माण किया जाएगा। प्रत्येक क्षेत्र की व्यावसायिक शिक्षा के लिए व्यावसायिक मानक निर्धारण निकाय की स्थापना की जानी चाहिए। उच्च शिक्षा अनुदान आयोग (एचईजीसी) में बदलान के लिए यूजीसी को जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों का समानता के आधार पर मूल्यांकन किया जाना चाहिए और शिक्षा को “लाभ के लिए नहीं”गतिविधि मानी जानी चाहिए।
  • उच्च शिक्षा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने, खुले और दूरस्थ शिक्षा की गुणवत्ता को मजबूत करने, शिक्षा के सभी स्तरों पर प्रौद्योगिकी के एकीकरण के लिए नई नीतिगत पहलों को लागू करने, वयस्कों और आजीवन सीखने वालों तथा कम-प्रतिनिधित्व रखने वाले समूहों की भागीदारी को बढ़ावा देने और शिक्षा के लिए आने वाले परिणामों में लिंग, सामाजिक श्रेणी और क्षेत्रीय विसंगतियों को समाप्त करने की सिफारिशें की गई हैं। भारतीय और शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने तथा पाली, फारसी और प्राकृत के लिए तीन नए राष्ट्रीय संस्थानों और एक भारतीय अनुवाद और व्याख्या संस्थान (आईआईटीआई) के स्थापना की सिफारिश की गई है। इस प्रकार के सुझाए गए मौलिक व नवीन विचार तब एक आवश्यक बदलाव लाएंगे जब हमारे छात्रों, शिक्षकों और शैक्षिक संस्थानों में सही दक्षताओं और क्षमताओं के आधार पर आवश्यक बदलाव लाया जाएगा। इससे एक जीवंत भारत के लिए एक सक्षम और सुदृढ़ शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जा सकेगा।

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