सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या में विवादित स्थल पर मंदिर बनाने का आदेश दिया

मुख्य न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय सर्वोच्च न्यायालय के संविधान पीठ ने 9 नवंबर, 2019 को सर्वसम्मति से अयोध्या में उस विवादित 2.77 एकड़ जमीन पर मंदिर बनाने की अनुमति दे दी जहां कभी बाबरी मस्जिद खड़ी थी। न्यायालय उपर्युक्त जमीन ‘भगवान श्री राम विराजमान’ को देने का आदेश दिया। उपर्युक्त निर्णय सर्वसम्मति से दिया गया।

हालांकि न्यायलय ने यह भी कहा कि वर्ष 1949 में जो मूर्ति रखी गयी थी वह भी गलत था तथा 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद का जो विध्वंस किया गया वह ‘विधि के शासन’ का उल्लंघन था।

न्यालालय ने मंदिर निर्माण के लिए एक अयोध्या कमेटी के गठन का आदेश दिया परंतु यह कमेटी गठित करने का अधिकार केंद्र सरकार को दिया गया है।

न्यायालय ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा अयोध्या में ही 5 एकड़ की जमीन उपयुक्त जगह देने का भी आदेश दिया।

सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ में मुख्य न्यायामूर्ति रंजन गोगोई के अलावा, न्यायमूर्ति एस.ए. बोब्डे, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़, अशोक भूषण तथा न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर शामिल थे।
न्यायालय ने निर्णय देते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की उस रिपोर्ट का भी उल्लेख किया जिसमें कहा गया है कि विध्वंस कर दी गई बाबरी मस्जिद के नीचे ‘गैर-इस्लामिक संरचना’ का साक्ष्य प्राप्त होता है।

सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत विशेष अधिकार का प्रयोग करते हुए अयोध्या में उस स्थल पर मंदिर बनाने का आदेश दिया जहां 1992 से पहले पहले बाबरी मस्जिद खड़ी थी। अनुच्छेद 142 कहता है कि सर्वोच्च न्यायालय ऐसा कोई भी आदेश पारित कर सकता है या निर्णय दे सकता है यदि लंबित मामले में पूर्ण न्याय देने के लिए जरूरी हो। और यह आदेश या निर्णय संपूर्ण भारत में लागू होगा।

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