- मुख्य न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय खंडपीठ ने 27 अप्रैल, 2018 को विवाहेतर संबंधों को अपराध मानने संबंधी दंडव्यवस्था समाप्त कर दिया।
- प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने व्यवस्था दी है कि भारतीय दंड संहिता की धारा-497 गैर संवैधानिक और मनमानी है।
- न्यायालय के मुताबिक यह धारा भारतीय संविधाान की धारा 14 व 21 का उल्लंघन करती है।
- यदि कोई व्यक्ति विवाहित महिला से उसकी पति की सहमति के बिना शारीरिक संबंध बनाता है तो भारतीय दंड संहिता की उपर्युक्त धारा के तहत यह अपराध माना जाता रहा है और इसके लिए अधिकतम पांच वर्ष की सजा का प्रावधान है। इस धारा को लैंगिक तटस्थ बनाने के लिए जनहित याचिका दायर की गई थी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि विवाहेतर संबंध सामाजिक दृष्टि से गलत और तलाक का आधार हो सकते हैं लेकिन यह दंडनीय अपराध की श्रेणी में नहीं आते ।
- भारतीय दंड संहिता की धारा-497 के अनुसार—जो पुरूष किसी ऐसी महिला से यौन संबंध बनाएगा जिसके बारे में वह जानता है कि वह किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी है और ये संबंध उसके पति की सहमति या जानकारी के बिना बनाया गया है तो यह बलात्कार नहीं कहलायेगा बल्कि वह विवाहेतर संबंध बनाने का दोषी माना जायेगा।
- न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने कहा कि धारा-497, संविधान के तहत प्राप्त मूल अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है।
- न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने कहा कि धारा-497 से महिलाओं की यौन संबंधी स्वतंत्रता का हनन होता है। उन्होंने कहा कि सम्मानपूर्वक जीवन के लिए स्वतंत्रता मूल आवश्यकता है और धारा 497 महिलाओं को विकल्प चुनने से वंचित करती है।
- न्यायालय ने कहा कि इस धारा से महिलाओं के समानता के अधिकार और समान अवसर देने के अधिकार का उल्लंघन होता है। पांचों न्यायाधीशों ने सर्वसम्मति से यह निर्णय दिया।