- संयुक्त अरब अमीरात सरकार ने केरल बाढ़ में हुई क्षति को देखते हुए भारत सरकार को केरल बाढ़ पीडि़तों के लिए 700 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता की घोषणा की थी।
- कुछ इसी तरह की आर्थिक सहायता की घोषणा कतर (35 करोड़ रुपए), मालदीव (50,000 डॉलर) ने भी की थी।
- परंतु भारत सरकार ने इन देशों को धन्यवाद देते हुए इन सहायता राशियों को लेने से मना कर दिया। भारत के विदेश मंत्रालय ने घोषणा की कि वह घरेलू प्रयासों से केरल की जरूरतों की पूर्ति करेगा।
- हालांकि केंद्र सरकार ने 600 करोड़ रुपए (500 करोड़ रुपए की घोषणा प्रधाानमंत्री द्वारा तथा 100 करोड़ गृह मंत्री द्वारा) की सहायता जरूर दिए है। वहीं केरल के वित्त मंत्री के अनुसार यदि विदेशी सहायता स्वीकार नहीं की जाती है तो संपूर्ण राशि केंद्र सरकार ही दे।
- वैसे ऐसा पहली बार नहीं है जब भारत सरकार ने आपदा के समय इस तरह की विदेशी सहायता को अस्वीकार किया।
- वर्ष 2004 की सुनामी के पश्चात से भारत सरकार विदेशों से मौद्रिक दान स्वीकार नहीं करता। उससे पहले वह इस तरह की सहायता स्वीकार करता रहा है।
- 1991 के उत्तरकाशी भूकंप, 1993 के लातूर भूकंप, 2001 के गुजरात भूकंप तथा 2004 की बिहार बाढ़ के समय विदेशी मौद्रिक सहायता जरूर स्वीकार किए गए। परंतु 2004 के पश्चात से इसे बंद कर दिया गया।
- दरअसल वर्ष 1991 की उदारीकरण के पश्चात भारतीय अर्थव्यवस्था काफी मजबूत हो गई है। भारत विश्व की उदीयमान अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता है। सरकार के स्तर पर यही अवधारणा है कि अब किसी भी प्रकार की आपदा से हुयी क्षति से उबरने व पुनरुद्धार में वह खुद सक्षम है। अब सरकार यह भी मानती है कि वह दान स्वीकारकर्त्ता नहीं बल्कि दाता देश हो गया है।
- ज्ञातव्य है कि केंद्र सरकार ने केरल बाढ़ को ‘गंभीर आपदा’ (Severe calamity) की श्रेणी माना है।
- हालांकि दुविधा वर्ष 2016 की राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना को लेकर भी है। इसमें कहा गया है कि आपदा के समय भारत विदेशी सहायता की अपील नहीं करेगा। हालांकि यदि कोई राष्ट्र आपदा पीडि़तों के साथ सौहाद्रता रखते हुये स्वैच्छिक स्तर पर कोई राष्ट्रीय सरकार सहायता की घोषणा करता है तो केंद्र सरकार उस ऑफर को स्वीकार कर सकता है। परंतु शर्त यह है कि केंद्रीय गृह मंत्रलय इस मामले में विदेश मंत्रलय से परामर्श कर विचार करेगा।
- हालांकि कुछ पूर्व कूटनीतिज्ञों ने इस मामले को अलग तरीके से देखने की सलाह दी है। पूर्व विदेश सचिव निरूपमा राव के अनुसार एक देश के रूप में हमें सहायता लेने के बदले सहायता देनी चाहिए किंतु खाड़ी देशों में 80 प्रतिशत भारतीय मलयाली हैं। इस क्षेत्र से बाढ़ राहत के लिए ऑफर की गई सहायता को संवेदनशील तरीके से देखना चाहिए। इसी तरह पूर्व विदेश सचिव शिव शंकर मेनन के अनुसार त्वरित राहत व दीर्घकालिक पुनर्वास के लिए विदेशी सहायता के बीच के अंतर करने की जरूरत है। वर्ष 2004 का निर्णय राहत में विदेशी भागीदारी को इनकार करने की थी परंतु मामलों के आधार पर दीर्घकालिक पुनर्वास को स्वीकार किया जा सकता है।
- वैसे पूर्व विदेश सचिव कंवल सिबल के मुताबिक आंतरिक मंथन के द्वारा इस मुद्दे को सुलझाने की जरूरत है। उनके मुताबिक ऐसा प्रतीत होता है कि भारत से बिना परामर्श किए यूएई द्वारा इस तरह की घोषणा की गई।