विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) द्वारा जारी वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक 2020 (Global Gender Gap Index 2020: GGI 2020) में भारत को 112वीं रैंक प्रदान हुयी है। वर्ष 2018 में भारत 108वें स्थान पर था। इस तरह भारत चार रैंक नीचे चला गया है।
इस सूचकांक में भारत अपने कई पड़ोसियों से भी पीछे है। बांग्लादेश (50वें), नेपाल (101), श्रीलंका (102) व चीन (106) से भारत पीछे है।
सूचकांक में सर्वोच्च रैंकिंग आइसलैंड को प्राप्त हुयी है और विगत 11वर्षों से यह विश्व का सर्वाधिक लैंगिक-तटस्थ देश रहा है। उसके पश्चात नॉर्वे, फिनलैंड व स्वीडेन की रैंकिंग है।
विश्व के 153 देशों में यमन सबसे नीचे है।
रैंकिंग का आधार
विश्व आर्थिक मंच के जेंडर गैप इंडेक्स में विभिन्न देशों की रैंकिंग चार मापदंडों पर आधारित है। ये चार मापदंड हैंः आर्थिक भागीदारी अवसर ( Economic Participation and Opportunity), शैक्षणिक उपलब्धि ( Educational Attainment), स्वास्थ्य व बचाव ( Health and Survival) तथा राजनीतिक सशक्तिकरण (Political Empowerment)।
उपर्युक्त चारों मापदंडों में भरत आर्थिक भागीदारी मामले में 149वें, शैक्षिक उपलब्धि के मामले में 112वें स्थान पर, स्वास्थ्य के मामले में 150वें स्थान पर तथा राजनीतिक सशक्तिकरण के मामले में 18वें स्थान पर है।
कंपनी बोर्ड में प्रतिनिधित्व के मामले में भारत की स्थिति (13.8 प्रतिशत) काफी बुरी है।
भारत के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि यहां आर्थिक लैंगिक अंतराल काफी अधिक है। सर्वे किए गए विश्व के 153 देशों में भारत एकमात्र देश है जहां आर्थिक लैंगिक अंतराल, राजनीतिक लैंगिक अंतराल से अधिक है। भारत में 82 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में महज एक चौथाई महिला ही श्रम बाजार में है।
भारत में नेतृत्व भूमिका में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 14 प्रतिशत है।
राजनीतिक सशक्तिकरण में भारत की अच्छी रैंकिंग केवल इसलिए है कि क्योंकि विगत 50 वर्षों में 20 वर्ष महिला के हाथ में नेतृत्व में था।