भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का जीएसएलवी रॉकेट भू-अवलोकन उपग्रह ईओएस-03 को कक्षा में स्थापित करने में 12 अगस्त को विफल रहा।
- रॉकेट के ‘कम तापमान बनाकर रखने संबंधी क्रायोजेनिक चरण’ में खराबी आने के कारण यह मिशन पूरी तरह संपन्न नहीं हो पाया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अनुसार पहले और दूसरे चरण में रॉकेट का प्रदर्शन सामान्य रहा था।
- इसरो की ओर से जारी एक अधिसूचना के अनुसार, 51.70 मीटर लंबे रॉकेट जीएसएलवी-एफ10/ईओएस-03 ने 26 घंटे की उलटी गिनती के समाप्त होने के तुरंत बाद सुबह पांच बजकर 43 मिनट पर श्रीहरिकोटा के दूसरे लॉन्च पैड (प्रक्षेपण स्थल) से सफलतापूर्वक उड़ान भरी थी। पहले और दूसरे चरण में रॉकेट का प्रदर्शन सामान्य रहा था। ‘क्रायोजेनिक अपर स्टेज’ तकनीकी खराबी के कारण पूर्ण नहीं हो पाई।
क्रायोजेनिक चरण
- क्रायोजेनिक चरण स्पेस लॉन्च व्हीकल का आखिरी चरण होता है, जिसमें भारी सामग्री को उठाकर अंतरिक्ष में ले जाने के लिए सामग्री को बहुत कम तापमान पर इस्तेमाल किया जाता है।
- क्रायोजेनिक इंजन प्रोपेल्लेन्ट्स के तौर पर लिक्विड हाइड्रोजन और लिक्विड ऑक्सीजन का इस्तेमाल करता है. दोनों अपने-अपने टैंक में मौजूद होते हैं. यहां से उसे अलग अलग बूस्टर पंप के जरिए टर्बो पंप में पंप किया जाता है, जिससे प्रोपेल्लेन्ट्स का तेज प्रवाह दहन कक्ष में पहुंचना सुनिश्चित हो सके.
जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क II (GSLV Mk II)
- जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क II (GSLV Mk II) भारत द्वारा विकसित सबसे बड़ा लॉन्च व्हीकल है, जो वर्तमान में ऑपरेशन में है। चौथी पीढ़ी का यह प्रक्षेपण यान चार तरल स्ट्रैप-ऑन के साथ तीन चरणों वाला वाहन है।
- स्वदेशी रूप से विकसित क्रायोजेनिक अपर स्टेज (सीयूएस), जो उड़ान सिद्ध है, जीएसएलवी एमके II के तीसरे चरण का निर्माण करता है।
- जनवरी 2014 से, वाहन ने लगातार चार सफलताएँ हासिल की हैं। क्रायोजेनिक अपर स्टेज प्रोजेक्ट (CUSP) के तहत विकसित, CE-7.5 भारत का पहला क्रायोजेनिक इंजन है, जिसे लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर द्वारा विकसित किया गया है।
- जीएसएलवी के प्राथमिक पेलोड संचार उपग्रहों के इन्सैट वर्ग हैं जो भूस्थिर कक्षाओं से संचालित होते हैं और इसलिए जीएसएलवी द्वारा भूतुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षाओं में रखे जाते हैं।