- जलवायु परिवर्तन पर 8 अक्टूबर, 2018 को जारी ‘1.5 डिग्री सेल्सियसड की वैश्विक तापवृद्धि के प्रभाव पर आईपीसीसी की विशेष रिपोर्ट 2018’ के मुताबिक विश्व द्वारा 1.5 डिग्री सेल्सियस की वैश्विक तापवृद्धि सीमा 2030 से 2052 के बीच ही पार कर जाएगी।
- वर्तमान में पूर्व औद्योगिकी क्रांति के स्तर की तुलना में विश्व 1.2 डिग्री सेल्सियस गर्म हो गया है। दक्षिण कोरिया के इंचियोन में जारी इस रिपोर्ट के अनुसार यदि वर्ष 2100 तक, ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जाता है तो वैश्विक औसत समुद्र स्तर वृद्धि लगभग 0.1 मीटर कम होने का अनुमान है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से बचने का दो ही तरीका है या तो अगले दो तीन दशकों में इतनी तेजी से उत्सर्जन कटौती करे कि इसे 1.5 डिग्री तक सीमित रख सके या फिर इस शताब्दी के मध्य तक इसे 1.5 डिग्री की सीमा पार करने दे और इस शताब्दी के अंत तक तकनीकों के माध्यम से वायुमंडल को गैर-कार्बनीकृत करे।
- 1.5 डिग्री सेल्सियस की ग्लोबल वार्मिंग के लिए लिए अनुकूलन आवश्यकता भी कम होगी। इसका तात्पर्य है कि 2 डिग्री सेल्सियस की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने से स्थलीय, ताजे पानी और तटीय पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव को कम करने और मनुष्यों को अपनी अधिकतर सेवाओं को बनाए रखने का अनुमान है।
- ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए, वर्ष 2050 तक विशुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करना होगा और वर्ष 2030 तक उत्सर्जन में कम से कम 2010 के स्तर से 45 प्रतिशत की कमी करनी होगी। साथ ही गैर-कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन में भी गंभीर कमी करनी होगी। मीथेन एवं ब्लैक कार्बन, दोनों के उत्सर्जन में वर्ष 2050 तक 2010 के स्तर से 35 प्रतिशत की कमी करनी होगी
- रिपोर्ट में उत्सर्जन कटौती करने के लिए वर्द्धित ऊर्जा कुशलता की वकालत की गई है।
- भारत के संदर्भ में रिपोर्ट में कहा गया है कि आज की तुलना में यदि तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होती है तो भारत प्रतिवर्ष 2015 की हीटवेव जैसी स्थिति का सामना करेगा जिसमें कम से कम 2000 लोगों की मौत हो गई थी।
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