- भारतीय मानक ब्यूरो ने पशमिना उत्पादों की शुद्धता प्रमाणित करने के लिए उसकी पहचान, निशानी और लेबल लाने की प्रक्रिया को भारतीय मानक के दायरे में रख दिया है। मानकों को 2 अगस्त को लेह में जारी किया गया।
- इस प्रमाणिकरण से पशमिना उत्पादों में मिलावट में रोक लगेगी और पशमिना कच्चा माल तैयार करने वाले घुमंतू कारीगरों तथा स्थानीय दस्तकारों के हितों की रक्षा होगी। इससे उपभोगताओं के लिए पशमिना की शुद्धता भी सुनिश्चित होगी।
- श्रीमती स्मृति जुबिन इरानी ने कहा कि पशमिना के बीआईएस प्रमाणीकरण से नकली या घटिया उत्पादों पर रोक लगेगी। उल्लेखनीय है कि ऐसे उत्पादों को बाजार में असली पशमिना के नाम पर बेचा जाता है।
- उल्लेखनीय है कि घुमंतू पशमिना बकरी पालक समुदाय छांगथांग के दुर्गम स्थानों में रहते हैं और आजीविका के लिए पशमिना पर ही निर्भर हैं। इस समय 2400 परिवार ढाई लाख बकरियों का पालन कर रहे हैं। पशमिना के बीआईएस प्रमाणीकरण से इन परिवारों के हितों की रक्षा होगी और युवा पीढ़ी इस व्यवसाय की तरफ आकर्षित होंगे। इसके अलावा अन्य परिवार भी इस व्यवसाय को अपनाने के लिए प्रोत्साहित होंगे। लद्दाख विश्व में सबसे उन्नत किस्म के पशमिना का उत्पादन करता है। इस समय वहाँ 50 मीट्रिक टन पशमिना का उत्पादन होता है। कपड़ा मंत्रालय का लेह में बकरियों के बाल काटने के लिए 20 करोड़ रुपये की लागत से एक संयंत्र लगाने का प्रस्ताव है। उपरोक्त कदम से लद्दाख के पशमिना उत्पादन में बढ़ोत्तरी होगी।
- छांगथांगी या पशमिना बकरी लद्दाख के ऊंचे क्षेत्रों में पाई जाती है। इन्हें बेहतरीन कश्मीरी ऊन के लिए पाला जाता है। इसे हाथ से बुना जाता है और कश्मीर में इसकी शुरुआत हुई थी। छांगथांगी बकरी के बाल बहुत मोटे होते हैं और इनसे विश्व का बेहतरीन पशमिना प्राप्त होता है जिसकी मोटाई 12-15 माइक्रोन के बीच होती है।
- इन बकरियों को घर में पाला जाता है और ग्रेटर लद्दाख के छांगथांग क्षेत्र में छांगपा नामक घुमंतू समुदाय इन्हें पालता है। छांगथांगी बकरियों की बदौलत छांगथांग, लेह और लद्दाख क्षेत्र में अर्थव्यवस्था बहाल हुई है।