केरल इन दिनों भीषण बाढ़ की त्रासदी से उबरने की कोशिश कर रहा है। इस त्रासदी के बीच मुन्नार में 12 वर्षों के पश्चात खिला नीलकुरिंजी कुछ मुस्कान वापस लाने की कोशिश कर रहा है। इस विहंगम दृश्य को देखने के लिए देश-विदेश के पर्यटक केरल आ रहे हैं। हालांकि कुछ संगठनों ने पर्यटकों के इस बार कम आने का पूर्वानुमान किया है। उनके मुताबिक केरल में बाढ़ के पश्चात राहत सहायता के लिए जिस तरीके से देश-विदेश में अपील की गई, उससे पर्यटकों को लगने लगा है कि पूरा केरल बाढ़ की त्रसदी से पीडि़त था। परंतु मुन्नार इस बाढ़ से प्रभावित नहीं हुआ था। तमिलनाडु सरकार ने इस फूल के संरक्षण के लिए स्कीम की घोषणा की है।
नीलकुरिंजी के बारे में
- नीलकुरिंजी स्ट्रोबिलैंथेस (Strobilanthes kunthianus) वंश का पौधा है। यह एक उष्णकटिबंधीय पादप प्रजाति है जो एशिया व आस्ट्रेलिया में पाई जाती है।
- पूरे विश्व में स्ट्रोबिलैंथेस की 450 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें 146 भारत में पाई जाती हैं जिनमें 43 प्रजातियां केरल में है।
- नीलकुरिंजी फूल के खिलने से केरल में मुन्नार के पास राजामलाई की पहाड़ी नीले रंग से अलंकृत हो जाता है।
- यह परिघटना इराविकुलम नेशनल पार्क (Eravikulam National Park) के पास राजामलाई पहाड़ी पर घटित होती है। केरल में यात्रा करने का यह सबसे अच्छा समय है। यह फूल अक्टूबर 2018 तक खिला रहेगा। उसके पश्चात फिर 12 वर्षों तक इंजतार करना होगा।
- इस परिघटना को सर्वप्रथम 1838 में रिकॉर्ड किया गया था।
- मुथुवांस (Muthuvans) नामक आदिवासी के लिए यह फूल पवित्र है। उनका विश्वास है कि उनके देवता भगवान मुरूगन ने देवी से विवाह के समय इसी फूल की माला पहनाया था।
- नीलकुरिंजी की एक झाड़ी अपने पूरे जीवन काल में केवल एक बार फूल देती है और खिलने के पश्चात मर जाती है। इसके बीज को फूल देने लायक बनने में 12 वर्ष लग जाते हैं। इसकी झाडि़यां 30 से 60 सेंटीमीटर ऊंची होती है।
- वैसे पश्चिमी घाट में इस फूल के दो चक्र हैं। प्रथम चक्र वर्ष 2006 में खिला था इसलिए यह इस वर्ष इस चक्र की झाडि़यों में फूल खिलेगा। दूसरे चक्र के पौधों ने वर्ष 2014 में फूल दिया था, इसलिए वह चक्र वर्ष 2026 में खिलेगा।
- इस वर्ष नीलकुरिंजी के फूल खिलने की वजह से ही लॉनली प्लैनेट ने वर्ष 2018 में एशिया के 10 सर्वश्रेष्ठ गंतव्यों में चौथे स्थान पर पश्चिमी घाट को रखा है।