- भारत ने 29 दिसंबर, 2018 को जैव विविधता सम्मेलन (सीबीडी) को अपनी छठी राष्ट्रीय रिपोर्ट (एनआर6) प्रस्तुत की। यह रिपोर्ट पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी), नई दिल्ली में राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) द्वारा आयोजित राज्य जैव विविधता बोर्डों (एसबीबी) की 13वीं राष्ट्रीय बैठक के उद्घाटन सत्र के दौरान केंद्रीय पर्यावरण मंत्री डॉ हर्षवर्धन द्वारा सीबीडी सचिवालय को ऑनलाइन प्रस्तुत की गई। मंत्री ने इस अवसर पर ‘‘भारत की राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्यों पर प्रगति: एक पूर्वावलोकन’’ दस्तावेज भी जारी किया।
- भारत विश्व के पहले पांच देशों में, एशिया में पहला तथा जैव विविधता समृद्ध मेगाडायवर्स देशों में पहला है, जिसने सीबीडी सचिवालय को एनआर6 प्रस्तुत किया है।
- राष्ट्रीय रिपोर्टों की प्रस्तुति सीबीडी सहित अंतरराष्ट्रीय संधियों में पक्षकारों के लिए एक अनिवार्य बाध्यता है। एक जिम्मेदार देश के रूप में भारत ने कभी भी अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को नहीं छोड़ा है और इससे पहले सीबीडी को समय पर पांच राष्ट्रीय रिपोर्ट प्रस्तुत कर चुका है। पक्षकारों द्वारा 31 दिसम्बर, 2018 तक अपना एनआर6 प्रस्तुत कर देना वांछनीय है।
- एनआर6 20 वैश्विक एआईसीएचई जैव विविधता लक्ष्यों के अनुरूप संधि प्रक्रिया के तहत विकसित 12 राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्यों को अर्जित करने की दिशा में प्रगति की ताजा जानकारी उपलब्ध कराता है।
- इस रिपोर्ट में 20 वैश्विक आइची जैव विविधता लक्ष्य के अनुरूप विकसित किए 12 राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्यों के क्षेत्र में हुयी प्रगति का विवरण है।
- रिपोर्ट के अनुसार भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 20 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र पर जैव विविधता संरक्षण है जो कि आईची के लक्ष्य संख्या 11 के तहत 17 प्रतिशत के लक्ष्य से अधिक है।
- भारत में जंगली बाघों की दो तिहाई आबादी भारत में है।
- भारत में शेरों की संख्या 1968 के 177 से बढ़कर 2015 में 520 हो गई है।
- इसी तरह हाथियों की संख्या 1970 के दशक के 12,000 से बढ़कर 2015 में 30,000 हो गई है।
- 20वीं शताब्दी के आरंभ में भारत में एक सिंग वाले गैंडा विलुप्ति के कगार पर पहुंच गया था परंतु आज इनकी संख्या 2400 हो गई।
- वैश्विक स्तर पर दर्ज प्रजातियों में 0.3 प्रतिशत चरम संकटापन्न स्थिति में है जबकि भारत में केवल 0.08 प्रतिशत प्रजातियां ही चरम संकटापन्न में है।
जैव विविधता अभिसमय
- जैव विविधता अभिसमय 29 दिसंबर, 1993 को प्रभावी हुआ। इसके तीन लक्ष्य हैंः
- जैव विविधता का संरक्षण
- जैव विविधता के घटकों का सतत उपयोग
- आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न लाभों का उचित एवं न्यायपूर्ण वितरण।
कार्टागेना प्रोटोकॉल
- जैव विविधता अभिसमय पर कार्टागेना जैव सुरक्षा प्रोटोकॉल का मुख्य उद्देश्य सजीव संवदिर्धत जीवों की सुरक्षित हैंडलिंग, परिवहन एवं उपयोग की सुरक्षा है।
नागाया प्रोटोकॉल
- नागोया प्रोटोकॉल जैव विविधता अभिसमय के तहत आनुवांशिक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न लाभों का उचित एवं न्यायपूर्ण वितरण से संबंधित है। इसे वर्ष 2010 में जापान के नागोया में स्वीकार किया गया था। यह प्रोटोकॉल 12 अक्टूबर, 2014 को प्रभावी हुआ।