केंद्रीय जल संसाधन मंत्री श्री नीतिन गडकरी ने 10 अक्टूबर, 2018 को गंगा नदी में न्यूनतम पर्यावरणीय जल प्रवाह (ecological flow) बनाने संबंधी अधिसूचना जारी होने की घोषणा की।
- इसका मतलब यह है कि गंगा नदी के विभिन्न खंडों में सालों भर जल का न्यूनतम प्रवाह अनिवार्य रूप से बनाए रखना होगा जिसे विज्ञान की भाषा में ‘न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह’ की संज्ञा दी जाती है।
- पर्यावरणीय प्रवाह दरअसल वह स्वीकार्य प्रवाह है जो किसी नदी को अपेक्षित पर्यावरणीय स्थिति अथवा पूर्व निर्धारित स्थिति में बनाये रखने के लिए आवश्यक होता है। केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री श्री नितिन गडकरी ने इसे एक महत्वपूर्ण कदम बताते हुए कहा कि इस नदी के लिए ई-फ्लो की अधिसूचना जारी हो जाने से इसके ‘अविरल प्रवाह’ को सुनिश्चित करने में काफी मदद मिलेगी। ‘अविरल और निर्मल गंगा’ के लिए सरकारी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए यह जानकारी दी कि गंगा अधिनियम के मसौदे को मंजूरी के लिए शीघ्र ही कैबिनेट के पास भेजा जाएगा।
- सरकार द्वारा जारी गई अधिसूचना से यह सुनिश्चित होगा कि सिंचाई, पनबिजली, घरेलू एवं औद्योगिक उपयोग इत्यादि से जुड़ी विभिन्न परियोजनाओं एवं संरचनाओं के कारण नदी का प्रवाह किसी अन्य तरफ मुड़ जाने के बावजूद नदी में जल का न्यूनतम अपेक्षित पर्यावरणीय प्रवाह निश्चित रूप से बरकरार रहेगा। यह नदी के अविरल प्रवाह को बनाये रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
- उपर्युक्त आदेश उद्भव वाले ग्लेशियरों से आरंभ होने वाले और संबंधित संगम से होकर गुजरने के बाद आखिर में देवप्रयाग से हरिद्वार तक मिलने वाले ऊपरी गंगा नदी बेसिन और उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले तक गंगा नदी के मुख्य मार्ग पर लागू होगा। न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह का अनुपालन सभी मौजूदा, निर्माणाधीन और भावी परियोजनाओं के लिए मान्य है। जो वर्तमान परियोजनाएं फिलहाल इन मानकों पर खरी नहीं उतर रही हैं उन्हें तीन वर्षों की अवधि के अंदर निश्चित रूप से अपेक्षित पर्यावरणीय प्रवाह मानकों का अनुपालन करना होगा। ऐसी लघु एवं सूक्ष्म परियोजनाएं जिनके कारण नदी की विशेषताओं अथवा उसके प्रवाह में व्यापक बदलाव नहीं होता है उन्हें इन पर्यावरणीय प्रवाह से मुक्त कर दिया गया है।
- इन नदी विस्तार में प्रवाह की स्थिति पर समय समय पर हर घंटे करीबी नजर रखी जाएगी। केन्द्रीय जल आयोग संबंधित आकड़ों का नामित प्राधिकरण एवं संरक्षक होगा और प्रवाह की निगरानी एवं नियमन की जिम्मेदारी इसी आयोग पर होगी।
सरकार द्वारा अधिसूचित ई-फ्लो कुछ इस तरह से है :
- उद्गम वाले ग्लेशियरों से आरंभ होने वाला और संबंधित संगम से होकर गुजरने के बाद आखिर में देवप्रयाग से हरिद्वार तक मिलने वाला ऊपरी गंगा नदी बेसिन विस्तार:
- शुष्क ऋतु (नवम्बर से मार्च): प्रत्येक पूर्ववर्ती 10 दिवसीय अवधि के दौरान प्रेक्षित मासिक औसत प्रवाह का 10 प्रतिशत
- क्षीण ऋतु (अक्टूबर, अप्रैल और मई ): प्रत्येक पूर्ववर्ती 10 दिवसीय अवधि के दौरान प्रेक्षित मासिक औसत प्रवाह का 25 प्रतिशत
- उच्च प्रवाह ऋतु (जून से सितम्बर ): प्रत्येक पूर्ववर्ती 10 दिवसीय अवधि के दौरान प्रेक्षित मासिक औसत प्रवाह का 30 प्रतिशत
- हरिद्वार, उत्तराखंड से उन्नाव, उत्तर प्रदेश तक गंगा नदी के मुख्य मार्ग का विस्तार :
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क्र.स. बैराज की अवस्थिति बैराजों के सन्निकट निम्न धारा को निर्मुक्त करने वाला न्यूनतम प्रवाह (क्यूमैक्स में)
गैर- मानसून
(अक्टूबर से मई)
बैराजों के सन्निकट निम्न धारा को निर्मुक्त करने वाला न्यूनतम प्रवाह (क्यूमैक्स में)
मानसून
(जून से सितम्बर)
1 भीमगौड़ा (हरिद्वार)
36 57 2 बिजनौर 24 48 3 नरौरा 24 48 4 कानपुर 24 48 ):