खुरपका और मुंहपका (एफएमडी) तथा ब्रुसेलोसिस को नियंत्रित करने की नई पहल को मंजूरी

  • 31 मई 2019 को केन्द्रीय मंत्रिमंडल की पहली बैठक में मवेशी पालन करने वाले किसानों की सहायता के लिए एक नई पहल को मंजूरी दी गई ।
  • यह पहल मवेशी पालन करने वाले किसानों की सहायता के लिए खुरपका और मुंहपका (एफएमडी-Foot and Mouth Disease : FMD) तथा ब्रुसेलोसिस (Brucellosis) को नियंत्रित करने से संबंधित है।
  • मंत्रिमंडल ने अगले पांच वर्षों में देश से मवेशियों की इन बीमारियों को पूरी तरह नियंत्रित करने और उसके बाद इन्हें जड़ से मिटाने के लिए 13,343 करोड़ रुपये के कुल खर्च को मंजूरी दी है।

खुरपका और मुंहपका (एफएमडी) तथा ब्रुसेलोसिस का खतरा

  • ये बीमारियां मवेशियों- गाय- बैल, भैंस, भेड़, बकरी, सूअर आदि में बहुत आम हैं।
  • यदि गाय या भैंस एफएमडी बीमारी से पीड़ित होती हैं, तो दूध-उत्पादन 100 प्रतिशत तक कम हो जाता है और यह स्थिति 4 से 6 महीनों तक बनी रह सकती है। इसके अलावा ब्रुसेलोसिस से पीड़ित होने की स्थिति में मवेशी के पूरे जीवनचक्र के दौरान दूध-उत्पादन 30 प्रतिशत तक घट जाता है। ब्रुसेलोसिस के कारण पशुओं में बांझपन भी हो जाता है। मवेशियों की देखभाल करने वाले और मवेशियों के मालिक भी ब्रुसेलोसिस से संक्रमित हो सकते हैं। इन दोनों बीमारियों का दूध और अन्य मवेशी उत्पादों के व्यापार पर सीधे नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • एफएमडी की स्थिति में यह योजना बछियों के प्राथमिक टीकाकरण के साथ 30 करोड़ गोजातीय पशुओं (गाय- बैल, भैंस) और 20 करोड़ भेड़/बकरियों तथा एक करोड़ सूअरों का 6 महीने के अंतराल पर टीकाकरण कराने की परिकल्पना करती है, जबकि ब्रुसेलोसिस नियंत्रण कार्यक्रम 3.6 करोड़ बछियों को 100 प्रतिशत का टीकाकरण कवरेज उपलब्ध कराएगा।
  • यह कार्यक्रम अब तक केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच लागत की साझेदारी के आधार पर कार्यान्वित किया जाता रहा है।

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