- वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने 5 जुलाई, 2019 को अपनी प्रथम घोषणा में कृषि संकट से निपटने के लिए ‘जीरो बजट फार्मिंग’ की वकालत की। वित्त मंत्री की इस घोषणा से कई किसान संघ नाराज हैं। उनके मुताबिक सूखा के समय वे राहत की उम्मीद कर रहे थे परंतु वित्त मंत्री ने उन्हें जीरो बजट फार्मिंग (Zero Budget Natural Farming: ZBNF) के रूप में आर्गेनिक फार्मिंग का खिलौना थमा दिया।
क्या है जीरो बजट फार्मिंग?
- संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के मुताबिक जीरो बजट फार्मिंग खेती की प्राकृतिक पद्धति है और जमीनी किसानी आंदोलन है। यह पद्धति दक्षिण भारत में आज अपनायी जा रही है और इसका विकास भी कर्नाटक से हुआ। जीरो बजट फार्मिंग आंदोलन श्री सुभाष पालेकर एवं कर्नाटक के राज्य रैयथा संघ के बीच सहयोग से आरंभ हुआ।
- जीरो बजट फार्मिंग में जीरो बजट से तात्पर्य है बिना कर्ज की खेती। दरअसल भारतीय अर्थव्यवस्था के नवउदारीकरण के कारण लघु स्तर पर खेती अब लाभकारी नहीं रहा है। बीजों का निजीकरण, अधिक निवेश की आवश्यकता, बाजार पहुंच में कठिनाई जैसी वजहों से किसान कर्ज के जाल में फंसता जा रहा है। इसी के समाधान के रूप में जीरो बजट फार्मिंग का विकल्प लाया गया है।
- इसमें कर्ज पर निर्भरता को समाप्त कर बाह्य निवेश पर भी निर्भरता को समाप्त कर दिया जाता है।
- खेती के लिए बाजार से किसी बीज या रसायनिक उर्वरक या कीटनाशक की खरीद नहीं कर जाती है बल्कि परंपरागत खेती की जाती है।