आर्थिक समीक्षा 2019-20-मुख्‍य विशेषताएं

केन्‍द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी 2020 को संसद में आर्थिक समीक्षा, 2019-20 पेश की। आर्थिक समीक्षा 2019-20 की मुख्‍य बातें निम्‍नलिखित हैं:

भारत की जीडीपी वृद्धि दर : समीक्षा में कहा गया है कि जोखिम कम होने / बढ़ने दोनों का कुल आंकलन पर, भारत की जीडीपी वृद्धि दर के वर्ष 2020-21 में 6.0 से 6.5 प्रतिशत होने की उम्मीद है और इसमें सरकार से कहा गया है कि वह सुधारों पर तेजी से काम करने के लिए अपने मजबूत जनादेश का इस्तेमाल करे जिससे वर्ष 2020-21 में अर्थव्यवस्था फिर से मजबूत हो जाएगी। पहले अग्रिम अनुमानों के आधार पर वर्ष 2019-20 में भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 5 प्रतिशत दर्ज की जाएगी।

पांच ट्रिलियन अमेरीकी डॉलर जीडीपी: भारत को 2024-2025 तक पांच ट्रिलियन अमेरीकी डॉलर के जीडीपी तक पहुंचने के लिए, अवसंरचना पर इन वर्षों में लगभग 1.4 ट्रिलियन अमेरीकी डॉलर (100 लाख करोड़ रुपये) व्यय करने की आवश्यकता है, ताकि‍ भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में अवसंरचना की कमी होना किसी प्रकार रुकावट न बने। एनआईपी से अवसंरचना संबंधी परियोजनाओं को अच्छी तरह तैयार किया जा सकता है, जिससे रोजगार का सृजन होगा, जीवन स्तर में सुधार होगा और सबके लिए अवसंरचना के क्षेत्र में समान पहुंच कायम होगी। इस प्रकार विकास को और अधिक समावेशी बनाने में मदद मिलेगी।

राजकोषीय घाटे का लक्ष्य: बजट 2019-20 में पेश की गई मध्यावधि राजकोषीय नीति (एमटीएफपी) के तहत 2019-20 के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का 3.3 प्रतिशत किया गया, जिससे बाद में भी अपेक्षा की गई कि 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद के 3 प्रतिशत का लक्षित स्तर कायम रहेगा। समीक्षा में यह भी बताया गया कि एमटीएफपी परियोजनाओं के बल पर 2019-20 में केंद्र सरकार की देनदारियां सकल घरेलू उत्पाद के 48 प्रतिशत तक कम हो जायेंगी। केंद्र सरकार के ऋण के घटते लक्षण से 2020-21 में इसके जीडीपी के 46.2 प्रतिशत तथा 2021-22 में 44.4 प्रतिशत तक पहुंचने की आशा है।

जीएसटी की कुल मासिक वसूली: 2019-20 के दौरान (दिसंबर, 2019 तक), जीएसटी की कुल मासिक वसूली 5 गुणा बढ़कर 1,00,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गई। अप्रैल से नवम्बर, 2019 के दौरान, केंद्र एवं राज्यों के लिए कुल जीएसटी की वसूली 8.05 लाख करोड़ थी, जो पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 3.7 प्रतिशत वृद्धि दर्शाता है।

दिवाला एवं दिवालियापन संहिता (आईबीसी): आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि दिवाला एवं दिवालियापन संहिता (आईबीसी) से भारत में पहले के उपायों की तुलना में समाधान प्रक्रिया में सुधार हुआ है। आईबीसी प्रक्रियाओं में औसतन 340 दिन का समय लगता है, जबकि पहले 4.3 वर्ष का समय लगता था। साथ ही, एसएआरएफएईएसआई ( SARFAESI) अधिनियम के तहत 42.5 प्रतिशत धनराशि की वसूली हुई, जबकि पहले 14.5 प्रतिशत वसूली होती थी।

सामाजिक सेवाओं पर खर्च: आर्थिक समीक्षा के अनुसार केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा सामाजिक सेवाओं पर खर्च वर्ष 2014-15 में 7.86 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर वर्ष 2019-20 (बजट अनुमान) में 15.79 लाख करोड़ रुपये हो गया। सकल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात के रुप में सामाजिक सेवाओं पर खर्च वर्ष 2014-15 से वर्ष 2019-20 के दौरान 1.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 6.2 प्रतिशत से बढ़कर 7.7 प्रतिशत हो गया। शिक्षा पर खर्च वर्ष 2014-15 और वर्ष 2019-20 (बजट अनुमान) के बीच जीडीपी के 2.8 प्रतिशत से बढ़कर 3.1 प्रतिशत हो गया। इसी तरह बजट पूर्व दस्तावेज में बताया गया है कि स्वास्थ्य पर खर्च समान अवधि में जीडीपी के 1.2 प्रतिशत से बढ़कर 1.6 प्रतिशत हो गया है।

नई कंपनियों की कुल संख्‍या के मामले में भारत तीसरे पायदान: आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि विश्‍व बैंक के उद्यमिता आंकड़ों के अनुसार यह पाया गया है कि गठित की गई नई कंपनियों की कुल संख्‍या के मामले में भारत तीसरे पायदान पर रहा है। इन्‍हीं आंकड़ों से यह भी पता चला है कि वर्ष 2014 से ही भारत में नई कंपनियों के गठन में उल्‍लेखनीय तेजी देखी जा रही है। जहां एक ओर वर्ष 2006 से लेकर वर्ष 2014 तक की अवधि के दौरान औपचारिक क्षेत्र में गठित की गई नई कंपनियों की संख्‍या की संचयी वार्षिक वृद्धि दर 3.8 प्रतिशत रही, वहीं दूसरी ओर वर्ष 2014 से लेकर वर्ष 2018 तक की अवधि के दौरान यह वृद्धि दर काफी अधिक 12.2 प्रतिशत दर्ज की गई। इसके परिणामस्‍वरूप वर्ष 2014 में गठित की गई लगभग 70,000 नई कंपनियों की तुलना में यह संख्‍या वर्ष 2018 में लगभग 80 प्रतिशत बढ़कर तकरीबन 1,24,000 के स्‍तर पर पहुंच गई।

कृषि मशीनरीकरण: आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि जमीन, जल संसाधन और श्रम शक्ति में कमी आने के साथ उत्पादन का मशीनरीकरण तथा फसल कटाई के बाद के प्रचालनों पर जिम्मेदारी आ जाती है। कृषि के मशीनरीकरण से भारतीय कृषि वाणिज्यिक कृषि के रूप में परिवर्तित हो जाएगी। कृषि में मशीनरीकरण को बढ़ाने की आवश्यकता पर बल देते हुए आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि चीन (59.5 प्रतिशत) तथा ब्राजील (75 प्रतिशत) की तुलना में भारत में कृषि का मशीनरीकरण 40 प्रतिशत हुआ है।

‘एसेम्बल इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड’ : आर्थिक समीक्षा में यह सलाह दी गई है कि ‘एसेम्बल इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड’ को ‘मेक इन इंडिया’ से जोड़ने पर भारत के निर्यात बाजार का हिस्सा 2025 तक लगभग 3.5 प्रतिशत तथा 2030 तक 6 प्रतिशत तक बढ़ सकता है, जो अत्यधिक व्यवहार्य है। आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि इस प्रक्रिया में, भारत 2025 तक अच्छे भुगतान वाले लगभग 4 करोड़ रोजगार तथा 2030 तक लगभग 8 करोड़ रोजगार का सृजन कर पाएगा। बजट-पूर्व समीक्षा में बताया गया कि नेटवर्क उत्पादों के निर्यातों के लक्षित स्तर से अर्थव्यवस्था में गुणात्मक मूल्य संवर्धन हो सकता है, जिसके 2025 में 248 अरब अमरीकी डॉलर के समतुल्य होने का अनुमान है। इससे 2025 तक भारत को 5 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए आवश्यक धन के लगभग एक-चौथाई का प्रबंध हो जाएगा।

सितंबर 2019 तक भारत के भुगतान संतुलन (Balance of Payment) की स्थिति सुधर कर 433.7 बिलियन डॉलर हो गई। भुगतान संतुलन की स्थिति मार्च 2019 में 412.9 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार था। ऐसा चालू खाता घाटा (सीएडी) के 2018-19 के 2.1 प्रतिशत से घटकर 2019-20 की पहली छमाही में सकल घरेलू उत्पाद के 1.5 प्रतिशत कम होने के कारण हुआ। निवल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह शानदार रही और 2019-20 के पहले आठ महीनों में 24.4 बिलियन डॉलर का निवेश आकर्षित हुआ। यह निवेश 2018-19 की समान अवधि की तुलना से काफी अधिक है। 2019-20 की पहली छमाही में अप्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी गई कुल रकम 2018-19 में कुल प्राप्तियों से 50 प्रतिशत से भी अधिक 38.4 बिलियन डॉलर रही। विश्व बैंक की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार 17.5 मिलियन अप्रवासी भारतीयों ने भारत को 2018 में विदेशों से प्राप्त होने वाली रकम के मामले में शीर्ष पर पहुंचा दिया।

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार संतोषजनक स्थिति में है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 10 जनवरी, 2020 तक 461.2 बिलियन डॉलर रहा। सितंबर 2019 के अंत तक विदेशी ऋण का स्तर जीडीपी के 20.1 प्रतिशत के निचले स्तर पर रहा। सकल घरेलू उत्पाद में भारत की बाहरी ऋण देनदारियां जून 2019 के अंत में बढ़ी हैं। इन देनदारियों में ऋण तथा इक्विटी घटक शामिल हैं। यह वृद्धि एफडीआई, पोर्टफोलियो प्रवाह तथा बाहरी वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) में बढ़ोत्तरी से प्रेरित हुई।

लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक : विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक के अनुसार 2018 में विश्व में भारत का स्थान सुधर कर 44वां हो गया। भारत का स्थान 2014 में 54वां था। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि वैश्विक मानकों के अनुसार भारत की लॉजिस्टिक्स लागत को जीडीपी की तुलना में वर्तमान 13-14 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत पर लाना है। इसके लिए फास्ट-टैग, भारतमाला, सागरमाला तथा डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर जैसे कदम उत्साहवर्धक होंगे।

खुले में शौच से मुक्‍त : आ‍र्थिक समीक्षा के अनुसार 2014 में शुरू हुए स्‍वच्‍छ भारत मिशन–ग्रामीण (एसबीएम-जी) के तहत अब तक ग्रामीण इलाकों में 10 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए गए हैं। इस दौरान 5.9 लाख गांवों, 699 जिलों और 35 राज्‍यों/केन्‍द्र शासित प्रदेशों ने अपने आपको खुले में शौच से मुक्‍त घोषित किया है। भारत के सबसे बड़े ग्रामीण स्‍वच्‍छता सर्वेक्षण स्‍वच्‍छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2019 में देश भर के 698 जिलों के 17,450 गांवों को शामिल किया गया, जिनमें 87,250 सार्वजनिक स्‍थल शामिल हैं।

2022 तक सभी के लिए आवास : आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 2018 में भारत में पेयजल, साफ-सफाई और आवास स्थिति पर एनएसओ के हाल के सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण इलाकों में 76.7 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 96 प्रतिशत लोगों के पास पक्‍का घर है। दो योजनाओं प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) और प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (पीएमएवाई-यू) के तहत 2022 तक सभी के लिए आवास के लक्ष्‍य को हासिल करना है। सर्वेक्षण में बताया गया है कि पीएमएवाई-जी के तहत एक साल में बनने वाले घरों की संख्‍या पहले से चार गुना बढ़ गई है, जो 2014-15 में 11.95 लाख से बढ़कर 2018-19 में 47.33 लाख हो गई है।

सेवा क्षेत्र : सेवा क्षेत्र अर्थव्यवस्था तथा सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) वृद्धि में लगभग 55 प्रतिशत हो गया है। भारत में कुल दो-तिहाई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आवक हुई है और यह क्षेत्र कुल निर्यात का 38 प्रतिशत हो गया है। यह जानकारी आज केन्द्रीय वित्त तथा कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में प्रस्तुत आर्थिक समीक्षा 2019-20 में दी गई है। 33 राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों में से 15 में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी सकल राज्य मूल्यवर्धन के 50 प्रतिशत को पार कर गई है।

भारत की बीओपी (BoP) स्थिति में सुधार हुआ है। मार्च, 2019 में यह 412.9 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार था, जबकि सितंबर, 2019 के अंत में बढ़कर 433.7 बिलियन डॉलर हो गया। चालू खाता घाटा (सीएडी) 2018-19 में जीडीपी के 2.1 प्रतिशत से घटकर 2019-20 की पहली छमाही में 1.5 प्रतिशत रह गया। विदेशी मुद्रा भंडार 10 जनवरी, 2020 तक 461.2 बिलियन डॉलर रहा।

वैश्विक व्यापार: 2019 में वैश्विक उत्पादन में 2.9 प्रतिशत अनुमानित वृद्धि के अनुरूप वैश्विक व्यापार 1.0 प्रतिशत की दर पर बढ़ने का अनुमान है, जबकि 2017 में यह 5.7 प्रतिशत के शीर्ष स्तर तक पहुंचा था। हालांकि वैश्विक आर्थिक गतिविधि में रिकवरी के साथ 2020 में इसके 2.9 प्रतिशत तक रिकवर होने का अनुमान है। वर्ष 2009-14 से लेकर 2014-19 तक भारत की मर्चेंटडाइज वस्तुओं के व्यापार संतुलन में सुधार हुआ है। हालांकि बाद की अवधि में ज्यादातर सुधार 2016-17 में क्रूड की कीमतों में 50 प्रतिशत ज्यादा गिरावट के कारण हुआ। भारत के शीर्ष पांच व्यापारिक साझेदार अमेरिका, चीन, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), सउदी अरब और हांगकांग हैं। 2019-20 (अप्रैल-नवंबर) में सबसे बड़े निर्यात स्थलः अमेरिका, उसके बाद संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), चीन और हांगकांग हैं । भारत का सर्वाधिक आयात चीन से करना जारी रहेगा, उसके बाद अमेरिका, यूएई और सउदी अरब का स्थान हैं ।

भारत का लॉजिस्टिक्स उद्योग: वर्तमान में यह लगभग 160 बिलियन डॉलर का है। शा है कि यह 2020 तक 215 बिलियन डॉलर तक हो जाएगा। विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक के अनुसार 2018 में भारत विश्व में 44वें रैंक पर रहा। 2014 में भारत का रैंक 54वां था।

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