- केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग और नागरिक उड्डयन मंत्री श्री सुरेश प्रभु ने 19 नवंबर, 2018 को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) द्वारा ‘औद्योगिक पार्क रेटिंग प्रणाली’ पर तैयार की गई रिपोर्ट जारी की।
- वाणिज्य मंत्री ने इस अवसर पर कहा कि विनिर्माण क्षेत्र भी भारत के तेज विकास वाले क्षेत्र (सेक्टर) के रूप में उभर कर सामने आया है और यह विश्व बैंक के ‘कारोबार में सुगमता’ सूचकांक (ईओडीबी-2019) में 23 पायदान ऊपर चढ़ गया है। ‘कारोबार में सुगमता’ सूचकांक’ के शीर्ष 50 देशों में भारत को भी शुमार करने के उद्देश्य से मंत्रालय ने विभिन्न राज्यों और 3354 औद्योगिक क्लस्टरों में उपलब्ध बुनियादी ढांचागत सुविधाओं के अध्ययन के लिए ही यह कवायद की है, ताकि औद्योगिक पार्कों में बुनियादी ढांचागत सुविधाओं की गुणवत्ता का आकलन किया जा सके।
- यह नीति निर्माताओं और निवेशकों के लिए एक उपयोगी टूल अथवा साधन होगा। सिर्फ एक बटन को क्लिक करके इसका उपयोग किया जा सकेगा। 3000 पार्क डेटाबेस पर हैं और औद्योगिक पार्कों की रेटिंग इन 4 बिंदुओं अथवा पैमानों पर की गई है: आंतरिक बुनियादी ढांचा, बाह्य बुनियादी ढांचा, कारोबारी सेवाएं व सुविधाएं तथा परिवेश और सुरक्षा प्रबंधन।
- संसाधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने और विनिर्माण क्षेत्र की दक्षता बढ़ाने के लिए डीआईपीपी ने मई, 2017 में औद्योगिक सूचना प्रणाली (आईआईएस) लांच की थी, जो देश भर में फैले औद्योगिक क्षेत्रों और क्लस्टरों के लिए जीआईएस आधारित डेटाबेस है।
- यह पोर्टल कच्चे माल यथा कृषि, बागवानी, खनिजों एवं प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता, महत्वपूर्ण लॉजिस्टिक्स केन्द्रों से दूरी, भू-भाग की परतों और शहरी बुनियादी अवसंरचना सहित समस्त औद्योगिक सूचनाओं की नि:शुल्क एवं आसान पहुंच वाला एकल स्थल केन्द्र है।
- पिछले एक साल के दौरान राज्य सरकारों एवं औद्योगिक विकास निगमों ने सक्रियतापूर्वक इस पोर्टल का उपयोग किया है और उपर्युक्त पैमानों पर इनके आकलन के लिए 200 से भी अधिक पार्कों को नामांकित किया है।
- आईपीआरएस पर हर वर्ष अमल करने का प्रस्ताव है, जिसके तहत देश भर में फैले पार्कों को कवर किया जाएगा। इसका दायरा बढ़ाया जाएगा और इसके साथ ही इसका अद्यतन भी किया जाएगा ताकि गुणात्मक आकलन से संबंधित व्यापक जानकारियों और विभिन्न तकनीकी उपायों को इसमें समाहित किया जा सके। इतना ही नहीं, इसका विकास एक ऐसे साधन के रूप में किया जाएगा जिससे नीति निर्माताओं एवं निवेशकों दोनों को ही मांग एवं आवश्यकता आधारित महत्वपूर्ण उपाय करने में मदद मिलेगी।