केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने संसद में आर्थिक समीक्षा 2018-19 पेश की। इसमें कहा गया है कि 02 अक्टूबर,2019 तक सम्पूर्ण स्वच्छता कवरेज के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 2014 में शुरू किये गये स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) के अंतर्गत हुई प्रगति को इस समीक्षा में रेखांकित किया गया है।
यह प्रमुख कार्यक्रम विशालतम स्वच्छता अभियान होने के साथ-साथ विश्व में व्यवहारिक परिवर्तन को प्रभावित करने का एक प्रयास भी है। पिछले चार वर्षों में 99.2 प्रतिशत ग्रामीण भारत एसबीएम के माध्यम से कवर किया गया है।
अक्टूबर, 2014 से देशभर में 9.5 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण किया गया है और 5,64,658 गांवों को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया गया है। 14 जून, 2019 तक 30 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में 100 प्रतिशत व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (आईएचएचएल) कवरेज उपलब्ध कराई जा चुकी है। एसबीएम ने स्वास्थ्य निष्कर्षों में महत्वपूर्ण सुधार किया है।
एसबीएम ने पांच साल से छोटे बच्चों में अतिसार और मलेरिया जैसे रोगों, मृत जन्म लेने वाले शिशुओं और कम वजन वाले शिशु का जन्म (2.5 किलोग्राम से कम वजन वाला नवजात शिशु) जैसे मामलों में कमी लाने में मदद की है। ये प्रभाव खासतौर पर उन जिलों में देखा गया, जहां 2015 में आईएचएचएल कवरेज कम थी। एसबीएम दुनिया के विशालतम स्वच्छता अभियानों में से एक है और इसकी बदौलत जबरदस्त बदलाव और उल्लेखनीय स्वास्थ्य लाभ प्राप्त हुए है। इस मिशन के अंतर्गत केवल शौचालयों के निर्माण पर ही नहीं, बल्कि समुदायों में व्यवहारिक बदलाव को प्रभावित करने पर भी ध्यान केन्द्रित किया गया। इसकी परिणति स्वास्थ्य संबंधी मानकों में महत्वपूर्ण लाभ में हुई है, जैसा कि विभिन्न अध्ययनों में दर्शाया गया है। स्वच्छ भारत से प्राप्त होने वाले लाभ व्यापक आर्थिक विकास के उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूप से महत्वपूर्ण है।
एसबीएम ने बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाया है, जिसमें निम्नलिखित बिन्दु शामिल हैं :-
क. सामुदायिक भागीदारी : स्वामित्व और निरंतर उपयोग को बढ़ावा देने के लिए शौचालयों के निर्माण में वित्तीय या अन्य रूप से लाभार्थियों/समुदायों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करना।
ख. विकल्पों के चयन की छूट : एसबीएम निर्माण कार्य में विकल्पों के चयन की छूट प्रदान करता है, ताकि गरीब/वंचित परिवार अपनी जरूरतों और अपनी वित्तीय स्थिति के मुताबिक अपने शौचालयों को बेहतर बना सकें।
ग. क्षमता निर्माण : एसबीएम मूलभूत स्तर पर व्यवहार में परिवर्तन लाने की दिशा में जिले की संस्थागत क्षमता में वृद्धि करता है और कार्यान्वयन एजेंसियों की क्षमताओं को मजबूती प्रदान करता है, ताकि कार्यक्रम को समयबद्ध रूप से शुरू किया जा सके और सामूहिक निष्कर्षों का आकलन किया जा सके।
घ. व्यवहार में परिवर्तन को मन में बिठाना : समुदाय में व्यवहार में बदलाव लाने की गतिविधियों का कार्यान्वयन करने के लिए राज्य स्तरीय संस्थाओं के प्रदर्शन को प्रोत्साहन देना।
ङ. व्यापक सम्पर्क : एसबीएम ने कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व को प्रोत्साहन देने के लिए स्वच्छ भारत कोष की स्थापना की है और उसके लिए निजी संगठनों, व्यक्तियों और परोपकारी व्यक्तियों से योगदान स्वीकार किया जाता है।
च. प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल : सूचना प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया इस कार्यक्रम के लिए आवश्यक है, क्योंकि ये नागरिकों को भारत में प्रत्येक ग्रामीण परिवार के लिए शौचालयों की उपलब्धता पर नजर रखने का अवसर देता है। समस्त एसबीएम शौचालयों में से लगभग 90 प्रतिशत पहले ही जीओ-टैग्ड से युक्त किये जा चुके है। केवल सरकार द्वारा ही नहीं, बल्कि कुछ नागरिकों द्वारा भी अनेक मोबाइल एप्लीकेशन्स शुरू किये गये है, जो अस्वच्छ स्थानों की ओर नगर निगमों का ध्यान आकृष्ट करते है।
छ. एसबीएम के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में पात्र लाभार्थियों को व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (आईएचएचएल) के निर्माण के लिए 12,000 रुपये के प्रोत्साहन का प्रावधान किया गया है और जल भंडारण के प्रावधान को कवर किया गया है। आईएचएचएल के लिए दिये जाने वाले इस प्रोत्साहन के लिए केन्द्र का अंश 60 प्रतिशत और राज्य का 40 प्रतिशत है। पूर्वोत्तर राज्यों, जम्मू कश्मीर और विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए केन्द्र का अंश 90 प्रतिशत और राज्यों का 10 प्रतिशत है। अन्य स्रोतों से अतिरिक्त योगदान की भी अनुमति है। एसबीएम के लिए वर्ष 2014-15 से कुल 51,314.3 करोड़ रुपये की राशि आबंटित की गई है, जिसमें से 48,902.2 करोड़ रुपये (95.3 प्रतिशत) जारी किये जा चुके हैं। इसके अलावा 15,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त बजटीय संसाधन के लिए प्रावधान किया गया है, जिसमें से 8,698.20 करोड़ रुपये प्राप्त किये जा चुके है।
ज. सरकार के प्रयासों के परिणामस्वरूप अब तक 98.9 प्रतिशत भारत को एसबीएम के दायरे में लाया जा चुका है। 2014 से लेकर 2018 तक निर्माण किये गये घरेलू शौचालयों की कुल संख्या में पिछले कुछ वर्षों में तेजी से प्रगति देखी गई है। शुरूआत में प्रतिवर्ष 50 लाख घरेलू शौचालयों से बढ़कर यह आंकड़ा अब 3 करोड़ शौचालय प्रति वर्ष हो चुका है। एसबीएम में गांवों को खुले में शौच से मुक्त कराने (ओडीएफ) पर मुख्य रूप से ध्यान केन्द्रित किया गया है। ओडीएफ का आशय खुले में मल त्याग समाप्ति है, जिसकी परिभाषा है 1) वातावरण/गांवों में कही भी मल दिखाई न देना, 2) प्रत्येक परिवार साथ ही साथ सार्वजनिक/सामुदायिक संस्था (संस्थाओं) द्वारा मल के निस्तारण के लिए सुरक्षित तकनीक के विकल्प का उपयोग। वर्ष 2015 से ओडीएफ गांवों की संख्या में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। 29 मई, 2019 को 5,61,014 गांवों (93.41 प्रतिशत), 2,48,847 ग्राम पंचायतों (96.20 प्रतिशत) – 6,091 ब्लॉक (88.60 प्रतिशत) और 618 जिलों (88.41 प्रतिशत) को ओडीएफ घोषित किया जा चुका है।
ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन (एसएलडब्ल्यूएम)
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है, ‘ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन (एसएलडब्ल्यूएम) एसबीएम मिशन का एक अन्य प्रमुख संघटक है। बहुत से राज्यों ने अपशिष्ट संग्रह केन्द्रों, मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता के प्रबंधन की गतिविधियां, बायो-गैस संयंत्रों की स्थापना, कम्पोस्ट पिट्स का निर्माण, कूड़ेदान की व्यवस्था, कचरे के संग्रह, पृथककरण और निपटान की प्रणाली, जल निकासी की सुविधा का निर्माण और लीच पिट्स और सोक पिट्स का निर्माण तथा स्थिरीकरण तालाब (स्टेबलाइजेशन पान्ड्स) जैसी गतिविधियों का संचालन किया है।’
भौतिक वातावरण पर एसबीएम के प्रभाव के संदर्भ में यूनिसेफ द्वारा पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के सहयोग से हाल ही में कराये गये एक अध्ययन से संकेत मिलता है कि जल, मिट्टी और भोजन के दूषण से निपटने पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष इस ओर इशारा करते है कि इस दूषण में कमी आने का श्रेय काफी हद तक स्वच्छता और साफ-सफाई के तरीकों में हुए सुधार, साथ ही साथ नियमित निगरानी जैसी सहायक प्रणालियों को दिया जा सकता है।
भविष्य की राह
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है, ‘एसबीएम जबरदस्त बदलाव लाने और कुल मिलाकर समाज को उल्लेखनीय लाभ प्रदान करने में समर्थ रहा है। दुनिया में चलाये गये विशालतम स्वच्छता अभियानों में से एक है। अनेक राज्य 100 प्रतिशत ओडीएफ और आईएचएचएल कवरेज का दर्जा प्राप्त कर चुके है और इस प्रकार लोगों विशेषकर महिलाओं की गरिमा में व्यापक बदलाव आया है। इस मिशन ने स्कूलों, सड़कों और पार्कों जैसे सार्वजनिक स्थानों में महिलाओं के लिए अलग से शौचालय बनवाने के जरिये महिला-पुरूष में भेदभाव को दूर करने के वाहक का कार्य किया है। स्कूलों में दाखिला लेने वाली लड़कियों की संख्या में वृद्धि और स्वास्थ्य संबंधी मानकों में सुधार लाने के जरिये इस जनांदोलन का समाज पर परोक्ष रूप से सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।’
सबके लिए स्वच्छता के प्रति भारत की शानदार यात्रा ने व्यवहार संबंधी परिवर्तन की जड़े लोगों की चेतना में गहराई से जमाते हुए सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ सुनिश्चित किये है। यह मिशन नागरिकों के व्यवहार में बड़ा बदलाव लाया है। यह मिशन महिला-पुरूष समानता और महिला सशक्तिकरण पर ध्यान केन्द्रित करते हुए राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं को प्रतिबिम्बित करता है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि यह मिशन 2030 वैश्विक सतत विकास एजेंडा और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) विशेषकर एसडीजी 6.2 के साथ संरेखित है। ‘2030 तक सबके लिए उपयुक्त और समान साफ-सफाई एवं स्वच्छता तक पहुंच प्राप्त करना और खुले में शौच समाप्त करना, महिलाओं और लड़कियों तथा असुरक्षित स्थितियों में रहने वाली महिलाओं की जरूरतों पर विशेष ध्यान देना।’