कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइजेशन (CCU) क्षेत्र में राष्ट्रीय उत्कृष्टता के दो केंद्र तैयार होंगे

भारत में कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइजेशन (Carbon Capture & Utilisation: CCU) के लिए दो राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र (National Centres of Excellence : NCoE) स्थापित किए जा रहे हैं।

  • ये केंद्र नेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइजेशन (एनसीओई-सीसीयू) के नाम से भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे, मुंबई में और जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर) में नेशनल सेंटर इन कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइजेशन, बेंगलुरु में स्थापित किए जा रहे हैं।
  • भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के समर्थन से इन केंद्रों को खड़ा किया जा रहा है।
  • ये केंद्र अपने क्षेत्र में वर्तमान अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) और नवाचार गतिविधियों पर ध्यान रखेंगे और उन्हें विकास की सुविधा प्रदान करेंगे और साझेदार समूहों और संगठनों के बीच समन्वय और तालमेल के साथ शोधकर्ताओं, उद्योगों और हितधारकों के नेटवर्क भी विकसित करेंगे।
  • केंद्र सीसीयू के क्षेत्र में अत्याधुनिक अनुसंधान और अनुप्रयोग-उन्मुख पहल के लिए बहु-अनुशासनात्मक, दीर्घकालिक अनुसंधान, डिजाइन विकास, सहयोगी और क्षमता-निर्माण केंद्र के रूप में कार्य करेंगे।

कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCU)

  • कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण, या (Carbon capture and storage: CCS), उत्सर्जन में कमी की एक महत्वपूर्ण तकनीक है जिसे ऊर्जा प्रणाली में लागू किया जा सकता है।
  • इस टेक्नोलॉजी में कार्बन उत्सर्जन को वातारण में फैलने से पहले रोका जाता है, जिससे वैश्विक ऊष्मा की समस्या को कम किया जा सके। कार्बन कैप्चर टेकनोलॉजी में बड़े कारखानों और पावर प्लांट की चिमनियों से कार्बन डाइ आक्साइड को उत्सर्जित होने से रोका जाता है।
  • मतलब इन्हें कैप्चर करके दूसरी जगह भंडारित किया जाता है, जिससे यह वातारण को नुकसान न पहुंचा सके। इसके लिए कारखानों की चिमनी पर सालवेंट फिल्टर लगाया जाता है। इसके बाद इसे भंडारित करके गहराई में इजेक्ट कर दिया जाता है, जहां से जीवाश्म गैस आती है। इसके अलावा इसका इस्तेमाल प्लास्टिक बनाने, ग्रीन हाउस पौधों को उगाने और कार्बोनेट फिजी पेय बनाने में भी किया जा सकता है।

कार्बन कैप्चर: विभिन्न तरीकों का उपयोग

  • विभिन्न तरीकों का उपयोग करके CO2 को जब्त किया जा सकता है। ये तरीके हैं: दहन के बाद, पूर्व-दहन और ऑक्सीफ्यूल
  • दहन के बाद की तकनीक जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न होने वाली फ्लू गैसों से CO2 को हटाती है।
  • पूर्व-दहन विधियाँ – जीवाश्म ईंधन को जलाने से पहले की जाती हैं – इसमें ईंधन को हाइड्रोजन और CO2 के मिश्रण में परिवर्तित करना शामिल है।
  • ऑक्सीफ्यूल तकनीक लगभग शुद्ध ऑक्सीजन के साथ जीवाश्म ईंधन को जलाकर CO2 और भाप पैदा करती है। दहन के बाद और ऑक्सीफ्यूल उपकरण को नए संयंत्रों में लगाया जा सकता है या पुराने संयत्रों में लगाया जा सकता है।

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