भारत के पहले स्वदेशी एमआरएनए टीका (mRNA)- एचजीसीओ 19 (HGCO19) को भारतीय औषधि नियामकों से इंसान पर चरण I/II के नैदानिक परीक्षण (ह्यूमन क्लीनिकल ट्रायल) को शुरू करने की मंजूरी मिल गई है।
- नोवल एमआरएनएस संभावित टीका, एचजीसीओ 19 को जेनोवा, पुणे ने बनाया है, जिसे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव-प्रौद्योगिकी विभाग के इंड-सेपीमिशन (IndCEPI mission) के तहत अनुदान मिला हुआ है।
एमआरएनए (mRNA) टीका
- एमआरएनए (mRNA) टीके में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पैदा करने वाले पारंपरिक मॉडल का उपयोग नहीं किया गया है। इसकी जगह पर, एमआरएनए टीके में वायरस के एक सिंथेटिक आरएनए (कृत्रिम आरएनए) के जरिए शरीर में प्रोटीन बनाने वाले आणविक निर्देश को शामिल किया गया है।
- मेजबान (जिसके शरीर में टीका लगाया जाता है) का शरीर इसका उपयोग वायरल प्रोटीन पैदा करने के लिए करता है, जो शरीर को भी स्वीकार्य होता है और इसके परिणामस्वरूप शरीर में रोग के खिलाफ एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया विकसित होने लगती है।
- कम समय सीमा में तैयार होने की वजह से एमआरएनए-आधारित इस टीके को वैज्ञानिक रूप से महामारी से निपटने का एक आदर्श विकल्प है।
- एमआरएनए वैक्सीन को सुरक्षित माना जाता है, क्योंकि यह अपने स्वभाव में गैर-संक्रामक, गैर-एकीकरण वाली होती है और इसे मानकीय जीवकोषकीय प्रक्रिया (स्टैंडर्ड सेलुलर मैकेनिज्म) द्वारा कमजोर किया जाता है।
- सेल साइटोप्लाज्म के भीतर प्रोटीन संरचना में बदलने की स्वाभाविक क्षमता के कारण इसके बहुत अधिक प्रभावशाली होने की उम्मीद है।
- mRNA टीके पूरी तरह से सिंथेटिक हैं और इन्हें बनाने के लिए किसी मेजबान जैसे अंडे या बैक्टीरिया इत्यादि की जरूरत नहीं है। इसलिए सतत आधार पर व्यापक टीकाकरण के लिए “उपलब्धता” और “पहुंच” सुनिश्चित करने के लिए वे सीजीएमपी शर्तों के तहत कम खर्चीले तरीके से बनाए जा सकते हैं।