- करेंट बायोलॉजी में छपे एक शोध आलेख के मुताबिक विश्व के तापमान में बढ़ोतरी के साथ ही प्रशांत महासागर में रहने वाले ‘हरे कछुओं’ (Green Sea Turtle) पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
- रिपोर्ट के मुताबिक आस्ट्रेलिया के गर्म तटों पर 99 प्रतिशत नर कछुओं को मादा कछुओं में परिवर्तित होने (Feminisation) के प्रमाण प्राप्त हुये हैं।
-आस्ट्रेलिया के पास रेन द्वीप, जहां लगभग 2 लाख हरे समुद्री कछुए अंडा देते हैं, वहां के शोध में यह तथ्य निकलकर सामने आया है। - दरअसल इस वैश्विक तापवृदिृध की वजह से नर कछुए, मादा कछुओं में तब्दिल होते जा रहे हैं।
- इसकी वजह यह है कि हरे कछुओं के लैंगिक निर्धारण में रेत का तापमान महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जीवविज्ञानियों के मुताबिक मनुष्य एवं अन्य स्तनधारियों के विपरीत सेक्स क्रोमोसोम्स हरे समुद्री कछुओं में नर या मादा का निर्धारण नहीं करते। बल्कि समुद्री किनारों का रेत का तापमान उनके अंडों के नर या मादा होना निर्धारित करता है।
- दरअसल कछुए के अंडों से मिली-जुली मात्र में नर और मादा जन्म लेते हैं। बच्चे के जन्म के लिए इन अंडों को 29.3 डिग्री तापमान चाहिए। अगर तापमान इससे ज्यादा होता है, तो सिर्फ मादा जीव पैदा होते हैं और तापमान 29.3 डिग्री से थोड़ा भी कम होता है तो नर जीव जन्म लेते हैं।
- अध्ययन में सामने आया कि ग्रेट बैरियर रीफ के ठंडे दक्षिणी क्षेत्रों में मादा कछुओं की संख्या 65 से 69 फीसद के बीच है, जबकि रीफ के गर्म उत्तरी सिरे में मादा कछुओं की आबादी 87 से 99.8 प्रतिशत के बीच है।
- इन वजहों से कई क्षेत्रें में तो केवल मादा हरे समुद्री कछुएं पाये गये। यही कारण है कि भविष्य में हरे समुद्री कछुओं का अस्तित्व समाप्त हो सकता है।
- इसका मतलब यह है कि हरे समुद्री कछुओं का लिंग निर्धारण पर्यावरण का प्रभाव है।