सर्वोच्च न्यायालय ने ‘पैसिव यूथेनेसिया’ व ‘लिविंग विल’ के अधिकार को उचित ठहराया

  • मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय खंडपीठ ने 9 मार्च, 2018 को विशेष परिस्थितियोां में मरणासन्न व्यक्ति के ‘पैसिव यूथेनेसिया’ व ‘लिविंग विल’ के अधिकार को उचित ठहराया।
  • दिल्ली स्थित गैर-सरकारी संगठन ‘कॉमन कॉज’ द्वारा वर्ष 2005 में दायर याचिका पर फैसला देते हुये न्यायालय ने ‘एडवांस्ड मेडिकल डायरेक्टिव’ के सृजन (यानी लिविंग विल) के आधार पर निम्नलिखित दशाओं में पैसिव यूथेनेसिया की अनुमति दी;
    • असाध्य बीमारी या जिसमें रिकवरी की कोई संभावना न हो,
    • फिर से वापस न आने लायक कोमा की स्थिति,
    • स्थायी वेजिटेटिव चरण (कोई शारीरिक व मानसिक हरकत नहीं)।
  • सर्वोच्च न्यायालय के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 21 के ‘जीवन व स्वतंत्रता’ के अधिकार में शांतिपूर्वक व सम्मान के साथ मरने का अधिकार भी शामिल है।

लिविंग विल के लिए शर्तें

  • लिविंग विल के लिए शर्तें निम्नलिखित शर्तें रखी गयी हैं;
    • लिविंग विल पर दो गवाहों की मौजूदगी में वसीयतकर्ता का हस्ताक्षर होगा।
    • उस लिविंग विल पर संबंधित क्षेत्रधिकार में आने वाले प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट का हस्ताक्षर होगा।
    • लिविंग विल रजिस्टर्ड होगी और उसकी जानकारी वसीयतकर्ता के परिवार को दी जाएगी।
    • इसे मेडिकल बोर्ड की सिफारिश से ही लागू किया जाएगा। जिस अस्पताल में इलाज चल रहा होगा वहां एक मेडिकल बोर्ड गठित होगा। इसमें 20 साल के अनुभव वाले विभिन्न क्षेत्रों के डॉक्टर शामिल होंगे। वे मरीज का परीक्षण करेंगे। उसके परिवार वालों से विचार-विमर्श करके अपनी राय देंगे।
    • मेडिकल बोर्ड के इजाजत देने से मना करने पर लिविंग विल करने वाला या उसके परिजन हाई कोर्ट जा सकते हैं।

केंद्र सरकार का पक्ष

  • केंद्र सरकार ने लिविंग विल के अधिकार का न्यायालय में विरोध किया, उसके मुताबिक जिस समय कोई व्यक्ति लिविंग विल दे रहा हो, उस समय उसे चिकित्सा क्षेत्र के भावी नये उपचारों या तकनीकों का ज्ञान नहीं हो सकता है जिससे कि उसका जीवन बचाया जा सकता है।

क्या होती है लिविंग विल?

  • किसी व्यक्ति के असाध्य बीमारी (terminally ill) के शिकार हो जाने और वेजिटेटिव स्टेज में चले जाने की दशा में जीवन को समाप्त करने की घोषणा से संबंधित दस्तावेज होता है।

एक्टिव व पैसिव यूथेनेसिया

  • कृत्रिम रूप से जीवन की समाप्ति के लिए दी गई दवा एक्टिव यूथेनेसिया है वहीं लिविंग विल के आधार पर जीवन रक्षक सहायता प्रणालियों को वापस लेना या चिकित्सकीय उपचार को रोक देना पैसिव यूथेनेसिया है।

पृष्ठभूमि

  • भारत में यूथेनेसिया पर चर्चा का आरंभ 25 वर्षीय नर्स अरुणा शानबॉग के मामले से हुयी जो 1973 में बलात्कार का शिकार होने के पश्चात 40 वर्षों से अधिक समय तक वेजिटेटिव स्टेज में रहीं। वर्ष 2009 में उन्हें मर्सी किलिंग देने हेतु सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई किंतु वर्ष 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया था। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने पैसिव यूथेनेसिया की अनुमति जरूर दी परंतु वर्ष 2015 में शानबॉग का देहांत हो गया।

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